नर्मदा के घाट पर
छोटे किसान तकनीक से ले सकते हैं भरपूर फसल
एक गांव ऐसा तत्काल प्लेटफार्म देने वाला नेटवर्क इंटीग्रेटर है जहां सेवा प्रदाता दक्षिण एशिया तथा अफ्रीका के अल्प-सेवित उपभोक्ता सेवा बाजारों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं ‘वनफार्म’ एक ब्रांडेड सेवा पैकेज है जो छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए बड़ा आश्वासन देता है तथा इसके सेवा एवं व्यवसाय मॉडल अन्य चैनल सहभागियों में, मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटरों में अपनी पहुंच बना कर एवं सहभागी बनकर एक मोबाइल महत्व समर्पित से सेवा के रूप में सेवाओं के विस्तार की धारणीय संभावना बनाते हैं। भारत विश्व में सबसे तेजी से फैलने वाला मोबाइल फोन का बाजार बनने जा रहा है।
सभी परिसम्पत्तियों में से भूमि का किसी भी परिवार से लंबे समय से अंतरंग संबंध रहा है, चाहे वह निवास हो, खाद्य हो या जीविका, भूमि से इनके संबंध मजबूत हुए हैं। भूमि से किसानों का पुराना संबंध है और भारतीय समाज में इसे बहुमूल्य माना गया है। किसान कार्य-बल का सबसे बड़ा वर्ग है। 70% से अधिक किसान बड़े पैमाने पर स्व-रोज़गाररत हैं, जो भारत में 1.2 बिलियन से भी अधिक लोगों को खाद्य-सुरक्षा देते हैं। तथापि, नई सहस्त्राब्दि में, एक वर्धमान सार्वभौमिक बाजार स्थान के साथ ही भूमि भोजन दाता के साथ अंतरंग संबंध आयदाता के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं। यह परिवर्तन सार्वभौमिक आर्थिक बलों द्वारा प्रेरित है, जिसका खेतों तथा छोटे किसानों पर व्यवस्थित तथा दूरगामी प्रभाव है।भारत में 70% से भी अधिक किसान 0.7 एकड़ से भी कम भूमि के स्वामी हैं, इसलिए विश्व की तुलना में भारत में छोटे तथा सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक है।
देशी बीजों की खेती
जीएम फूड : जहरीली थाली
केन नदी को प्रदूषित कर रहे बांदा शहर के तीन नाले
मगर शहर को इसी केन नदी से जलापूर्ति करने वाले प्राकृतिक स्रोत में तीन गंदे नाले पेयजल को जहरीला बना रहे हैं। निम्नी नाला, पंकज नाला और करिया नाला का सीवर युक्त पानी बिना जल शोधन प्रक्रिया, वाटर ट्रीटमेंट के खुले रूप में केन में गिरता है।
बंजर बनाया तीर्थ, तीरथ पटेल ने
आज बीस में, कल साठ में सींचेगा हमारा तालाब - रुपेश पटेल
लगभग 18-20 लाख रुपये का निवेश रुपेश पटेल का परिवार अपने तालाब के लिए करेगा। हमारी उत्सुकता थी कि क्या उनका निवेश सुरक्षित है? उनका निवेश कब तक वापस मिलेगा?
एक-तिहाई खुदे तालाब से इस बार उनके 20 एकड़ खेत की सिंचाई हुई है। 20 एकड़ खेत से उनको लगभग 3 लाख रुपये का अतिरिक्त फायदा होगा। उनका अंदाजा है कि दो साल में उनका तात्कालिक निवेश वापस हो जाएगा। और पूरे निवेश के बाद तालाब बन जाने के बाद तो उनका अनुमान है कि लगभग 10-12 लाख रुपये का अतिरिक्त फायदा होगा। दो साल में निवेश वापस होगा। तालाब तो आजीवन फायदा देता रहेगा।
रुपेश पटेल कहते हैं कि हमें शौक है खेतों में काम करने का। हमने तालाब के लिए जी-जान लगा दिया। अपने उपलब्ध सभी संसाधनों का पूरा इस्तेमाल किया और किराए पर भी कई वाहन ले आए।
संपर्क –
रुपेश पटेल, छेवला, पटौंहा, दमोह।
मो. 09977520801
‘मिसिंग शौचालय’ बांदा में
भूजल प्रबंधन : बूंदों पर टिकी बुनियाद
हकदारी-जवाबदारी की बाट जोहता पानी प्रबंधन
पानी के स्थानीय, अंतरराज्यीय व अंतरराष्ट्रीय विवाद हैं। इसी के कारण लोग पानी प्रबंधन के लिए एक-दूसरे की ओर ताक रहे हैं। इसी के कारण सूखती-प्रदूषित होती नदियों का दुष्प्रभाव झेलने के बावजूद समाज नदियों के पुनर्जीवन के लिए व्यापक स्तर पर आगे आता दिखाई नहीं दे रहा। बाजार भी इसी का लाभ उठा रहा है। याद रखने की जरूरत यह भी है कि कुदरत की सारी नियामतें सिर्फ इंसान के लिए नहीं हैं, दूसरे जीव व वनस्पतियों का भी उन पर बराबर का हक है। अतः उपयोग की प्राथमिकता पर हम इंसान ही नहीं, कुदरत के दूसरे जीव व वनस्पतियों की प्यास को भी सबसे आगे रखें।
हम अक्सर दावा करते हैं कि भारत में जलप्रबंधन की परंपरागत प्रणालियां अति उत्तम थे। आप पूछ सकते हैं कि यदि ये प्रणालियां और प्रबंधन इतने ही सुंदर और उत्तम थे, तो टूट क्यों गए ? समाज व सरकारें इन्हें जीवित क्यों नहीं रख सका? ये फिर कैसे जीवित होंगे?क्यों टूटा साझा प्रबंधन?
अतीत गवाह है कि पानी का काम कभी अकेले नहीं हो सकता। पानी एक साझा उपक्रम है। अतः इसका प्रबंधन भी साझे से ही संभव है। वैदिक काल से मुगल शासन तक सामिलात संसाधनों का साझा प्रबंधन विशः, नरिष्ठा, सभा, समिति, खाप, पंचायत आदि के नाम वाले संगठित ग्राम समुदायिक ग्राम्य संस्थान किया करते थे। अंग्रेजी हुकूमत ने भूमि-जमींदारी व्यवस्था के बहाने नए-नए कानून बनाकर ग्राम पंचायतों के अधिकारों में खुला हस्तक्षेप प्रारंभ किया। इस बहाने पंचों को दण्डित किया जाने लगा। परिणामस्वरूप साझे कार्यों के प्रति पंचायतें धीरे-धीरे निष्क्रिय होती गईं। नतीजा यह हुआ कि सदियों की बनी-बनाई साझा प्रबंधन और संगठन व्यवस्था टूट गई।
मुंगेर जिले के खैरा गाँव में फ्लोराइड का प्रबंधन (एकीकृत-समेकित तरीका)
1 परिचय
अच्छे स्वास्थ हेतु शुद्ध जल एक मूलभूत अवश्यकता है तथा बिहार राज्य के लिए इसके 8.3 करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना आज भी एक समस्या है। पिछले कई सालों से PHED ईमानदारी के साथ लोगों को शुद्ध जल उपलब्ध कराने में लगी है परंतु समस्याएँ लगातार बढ़ ही रहे हैं। भूजल का संक्रमित होना लगातार बढ़ ही रहा है तथा राज्य के विभिन्न जिलों में भूजल में फ्लोराइड की समस्या देखने को मिल रही है।अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन से समान्यतः पीने वाले पानी के द्वारा फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है जो दाँतों तथा हड्डियों को प्रभावित करती है। निर्धारित सीमा से कुछ अधिक फ्लोराइड के सेवन द्वारा दंतीय फ्लोरोसिस तथा अधिक समय तक अत्यधिक मात्रा में फ्लोराइड का सेवन करने पर खतरनाक कंकालीय समस्याएँ उत्पन्न होती है। इसलिए फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिए पीने वाले पानी की गुणवत्ता सही होनी चाहिए फ्लोरोसिस के तरीके एवं प्रकार लोगों के द्वारा सेवन की गई फ्लोराइड की मात्रा पर निर्भर करता है, दंतीय फ्लोरोसिस अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन के द्वारा कम समय में ही दिखने लगती है, जबकि कंकालीय प्रभाव अत्यधिक फ्लोराइड के सेवन से होता है। चिकित्सा विज्ञान में दंतीय फ्लोरोसिस के लक्षण दाँतों में लाल, पीले, भूरे तथा काले रंग के धब्बे एवं अधिक खतरनाक अवस्था में दाँतों के एनामेल तक नष्ट हो जाते है।
तीस साल बाद
सीरिया का सबक
वैज्ञानिक हमें बराबर चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले बीस-तीस बरस में हमारे देश के भूजल भंडार का कोई 60 प्रतिशत भाग इस बुरी हालत में नीचे चला जाएगा कि फिर हमारे पास ऊपर से आने वाली बरसात, मानसून की वर्षा के अलावा कुछ बचेगा नहीं। हमारा समाज ऐसी किसी प्राकृतिक विपदा को सहने के लिए और भी ज्यादा मजबूत हो चला है। लेकिन इससे बेफ्रिक तो नहीं ही हुआ जा सकता। धरती गरम हो रही है। मौसम, बरसात का स्वभाव बदल रहा है। इसलिए बिना सोचे समझे भूजल भंडारों के साथ ऐसा जुआ खेलना हमें भारी पड़ सकता है।अपने ही लोगों पर जहरीले रासायनिक हथियारों से हमला करने वाले सीरिया को सबक सिखाना चाहता है अमेरिका। उस पर हमला कर। पर अमेरिका के ही संगी साथी देश उसे इस हमले से रोकने में लगे हैं। लेकिन बाकी दुनिया अभी भी ठीक से समझ नहीं पा रही कि सीरिया के शासक बशर अल-असद ने आखिर अपने लोगों पर यह क्रूर अत्याचार भला क्यों किया है। तुर्की के पुराने उसमानी साम्राज्य के खंडहरों में से कांट-छांट कर बनाया गया था यह सीरिया देश। इसमें रहने वाले अलाविया और सुन्नियों, दुरूजी और ईसाइयों के बीच पिछले कुछ समय से चला आ रहा वैमनस्य निश्चित ही इस युद्ध का एक कारण गिनाया जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि अभी कुछ ही समय पहले अरब में बदलाव की जो हवा बही थी और जो छूत के रोग की तरह आसपास के कई देशों में फैल चली थी, उसी हवा ने अब सीरिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है।
शहरीकरण ने बर्बाद किया जलस्रोत
हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट नामक एनजीओं की एक भारीभरकम रिपोर्ट आई। इस रिपोर्ट में कुछ ऐसे तथ्यों को उजागर किया गया है जो किसी भी भारतीय शहर के वजूद के लिए बेहद जरूरी है। ये रिपोर्ट हमें बताती है कि किस तरह से भारतीय शहरों ने अपने पानी के स्रोतों को बर्बाद कर दिया है।
तालाब सही जगह नहीं, तो फायदा नहीं
09 दिसम्बर 2013 ग्राम नोहटा-नयांगांव, ब्लॉक जबेरा, दमोह। रामनारायण रावत जो नयांगांव कुलुआ में अपनी निजी 5 एकड़ भूमि पर खेती करते हैं। उनने बताया कि वर्ष 2008-09 में बलराम तालाब योजना से अपनी लगभग एक एकड़ भूमि पर तालाब निर्माण कराया, तालाब 6 फीट गहरा हुआ, और कड़े पत्थर के रूप में समस्या खड़ी हो गई। जैसे तैसे मशीनों का उपयोग कर पत्थर को तोड़कर तालाब की गहराई एक फीट और बढ़ाई गई और तालाब 7 फीट गहरा किया जिसमें लगभग एक लाख सोलह हजार रुपयें
जल संग्रहण एवं प्रबंध
भूमिका
‘हमारी पृथ्वी अन्य ज्ञात खगोल-पिंडों में अनूठी है: यहां जल है।’
पिछले कुछ वर्षों में विकास और विकास प्रक्रियाओं में जल की महत्ता की चेतना बढ़ी है। भूत, वर्तमान, भविष्य के समस्त समाजों विकास और जीवन के लिए पर्याप्त स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। साथ-ही-साथ स्वच्छ जल की उपलब्धता भौगोलिक और मौसमी कारणों से प्रभावित होती रही है और मानवीय सभ्यताओं ने इस पारिस्थितिकी को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है, उनका अनेक प्रकार से दोहन किया है। इसकी जानकारी के लिए कि किस तरह स्वच्छ जल की कमी ने विकास के सामने अनेक बाधाएं खड़ी की हैं, विकासशील देशों की विकास नीतियों के अध्ययन की आवश्यकता है।प्रकृति के पांच उपादानों में जल सबसे महत्वपूर्ण है जो पृथ्वी पर जीवन को संभव करने में मदद करता है। जल का उपयोग बुनियादी मानवीय जीवन और विकास के लिए किया जाता है, साथ ही वह सारे जीवन-चक्र के लिए महत्वपूर्ण है। पानी हमेशा से सभ्याताओं का अवलंब रहा है। लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं, जिनमें से हमारी भी निकली है, जल के नज़दीक पली-बढ़ी हैं। पानी सदा से अपरिहार्य रहा है, न केवल मानवीय विकास के संदर्भ में बल्कि कृषि और मानवीय गतिविधियों के विकास में भी। पृथ्वी को अक्सर जल ग्रह कहा जाता है क्योंकि इसके 71 प्रतिशत भाग पर महासागरों का राज है। वर्षा के माध्यम से जल घटता भी है और फिर बढ़ता भी रहता है। इसलिए पानी के लिए चिंता करने की फिर क्या जरूरत है?
वास्तव में विश्व के जल-भंडार का केवल एक प्रतिशत हमारे उपयोग योग्य है। लगभग 97 प्रतिशत जल समुद्री खारा जल है और पृथ्वी के कुल जल-भंडार का 2.7 प्रतिशत ही स्वच्छ जल है। उस 2.7 प्रतिशत का भी काफी हिस्सा हिमनदों और पहाड़ों की चोटियों पर जमा हुआ है।
जल - एक संसाधन
उपलब्ध जल के अपरोधन, या संचयन के लिए निर्मित गड्ढों के जल से भर जाने एवं भू-सतह पर वर्षा की तीव्रता, मृदा की अंतःस्यंदन क्षमता से अधिक होने पर पृथ्वी की सतह पर जल प्रवाह होने लगता है। यह सतही प्रवाह के रूप में अपना रास्ता नदियों, झीलों या समुद्र की ओर करता है जो सतही अपवाह के रूप में जाना जाता है। फिर यह अन्य प्रवाह घटकों के साथ मिलकर संपूर्ण अपवाह बनाता है। अपवाह शब्द का उपयोग साधारणतया जब अकेले होता है तो इसे सतही अपवाह ही कहा जाता है।
कल्पना करें एक ऐसी बाल्टी की जिसके पेंदे में एक छेद हो। इस बाल्टी में रखा है पृथ्वी का संपूर्ण जलः सतही जल, भू-जल और वायुमंडल की आर्द्रता। यदि इसे ज्यों का त्यों छोड़ देंगे तो बाल्टी जल्दी ही खाली हो जाएगी। इस बाल्टी में जलस्तर बनाए रखने हेतु आवश्यक है कि जितनी मात्रा में इसका जल रिस रहा है, उतनी ही मात्रा में वह वापस आए। अनेक प्रक्रियाएं साथ-साथ चलते रहकर पृथ्वी के जल चक्र को गतिशील बनाए रखती हैं। यह सतत चक्र जलीय चक्र कहलाता है।जलीय चक्र
जलीय शास्त्र पृथ्वी के विज्ञान का वह अंग है जो संपूर्ण पृथ्वी के ऊपर और नीचे व्याप्त जल एवं उसके प्रवाह के बारे में जानकारी देता है। संपूर्ण वर्षा पृथ्वी के जलीय चक्र का परिणाम होती है।
देवास के भगीरथ
साल 2005 तक देवास जिले के खेत-खलिहान सब सूखे पड़े थे। लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे थे तथा किसान अपने घरों से पलायन कर रहे थे। देवास जिले के पारंपरिक जलस्रोतों को पाट दिया गया और उन पर मकान, कल-कारखाने खुल गए। पानी का कोई स्रोत नहीं बचा तो शहर को ट्रेन से पानी मंगाना पड़ा।
तालाबों का कोई विकल्प नहीं : उमाकांत उमराव
इस शहर का क्या करें
शहरीकरण से कृषि और जंगलों पर संकट बढ़ रहा है। नए-नए शहरों के बसने के कारण खेती की जमीन खत्म हो रही है। जिससे सदियों से कृषि आधारित जीवनचर्या खत्म होती जा रही है। वनों के कटने से पर्यावरण का नुकसान हो रहा है। शहरीकरण से विश्व में प्रति वर्ष 1.1 करोड़ हेक्टेयर वन काटा जाता है। अकेले भारत में 10 लाख हेक्टेयर वन काटा जा रहा है। वनों के विनाश के कारण हमारे देश का आदिवासी समाज खतरे में हैं और तमाम वन्यजीव लुप्त हो रहे हैं। वनों के क्षेत्रफल में लगातार होती कमी के कारण भूमि का कटाव और रेगिस्तान का फैलाव बड़े पैमाने पर होने लगा है।गांव उजाड़ हो रहे हैं और शहरों में इंसानी भीड़ बढ़ती जा रही है। भारतमाता ग्रामवासिनी से शहरवासिनी होती जा रही हैं। यह बदलाव इस मायने में घातक है कि सब कुछ अंधाधुंध और अनियोजित है। शहरों के भीतर ऐसे गांव पनप रहे हैं जो परंपरागत गांवों की तुलना में कई गुना बदतर हैं। मलिन बस्तियों और अवैध बस्तियों में इंसानी जीवन जैसे सड़ांध मार रहा हो। नब्बे के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन ने देश में ऐसे वातावरण बनाना शुरू किया मानों शहरीकरण ही सारे रोगों का इलाज हो। शहरीकरण के साथ ही सत्ता से लेकर रोजगार तक के केंद्रीयकरण ने हर किसी को शहर भागने के लिए उकसा दिया। आज हालत यह है कि मुंबई हो या दिल्ली, तमाम बड़े शहरों से लोगों को मारपीट कर भगाया जा रहा है। कहीं कानून बनाकर, कहीं डंडा लेकर। अब गांवों में रोजगार के साधन कम हो गए हैं। परंपरागत काम धंधे भी बंद हो चुके हैं। किसी जमाने में खेती-किसानी के काम आने वाले छोटे-मोटे औजार गांव के कारीगरों द्वारा तैयार किए जाते थे। उनका एक बड़ा बाजार था।