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भयावह रिसाव

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Author: 
रवलीन कौर और दिनकर
Source: 
डाउन टू अर्थ

भोपाल गैस कांड पर विशेष


.सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की पॉल्युशन मॉनिटरिंग लैब (पीएमएल) ने विषैले रसायनों की उपस्थिति का पता लगाने के लिये यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड (यूसीआईएल) फ़ैक्टरी के भीतर और इसके आसपास पानी और मिट्टी के नमूनों की जाँच की।

पीएमएल ने यूसीआईएल में विभिन्न कीटनाशकों के उत्पादन के लिये इस्तेमाल की जा रही प्रक्रियाओं की जाँच की और इनके आधार पर मिट्टी तथा पानी के नमूनों की जाँच के लिये रसायनों के चार समूहों का चयन किया। इसने क्लोरिनेटेड बेंज़ीन कम्पाउंड में 1,2 डाइक्लोरोबेंज़ीन, 1,3 डाइक्लोरोबेंज़ीन, 1,4 डाइक्लोरोबेंज़ीन तथा 1,2,3 ट्राइक्लोरोबेंज़ीन की जाँच की।

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अमरीकी कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई में केन्द्र सरकार विफल

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Author: 
रूबी सरकार

भोपाल गैस कांड पर विशेष


.भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे की 31वीं बरसी पर गैस पीड़ित मशाल जुलूस लेकर यूनियन कार्बाइड कम्पनी का विरोध करेंगे। हर बार की तरह इस बार भी गैस पीड़ित मुफ्त इलाज, मुआवजा के साथ-साथ जन्मजात विकलांगता वाले बच्चों की पुनर्वास सुविधाओं की भी माँग करेंगे।

इस तरह का विरोध पहली बार नहीं हो रहा है, बल्कि लगातार 30 वर्षों से गैस पीड़ित इसी तरह यूनियन कार्बाइड के खिलाफ अपना विरोध जताते आ रहे हैं। लेकिन इस दफा मामला इसलिये भी गम्भीर है, क्योंकि पेरिस में 125 देश मिलकर पर्यावरण प्रदूषण के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन पर बहस और दिशा तय करेंगे।

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यूनियन कार्बाइड के खिलाफ प्रदर्शन करते लोग

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भोपाल गैस कांड पर विशेष


.आज से 31 वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2-3 दिसम्बर की रात को एक गैस त्रासदी हुई। जिसमें हजारों लोगों की सोते समय ही मौत हो गई। उनके बचे खुचे परिजन आज भी न्याय की फरियाद करते हुए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। यूनियन कार्बाइड सत्ता के गलियारों में अपनी पहुँच और दौलत के बदौलत पीड़ित परिजनों के प्रति जिम्मेदारी से बचता रहा है।

भोपाल गैस त्रासदी एक औद्योगिक दुर्घटना थी जो भारत के मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर में घटी थी। भोपाल में यूनियन कार्बाइड कम्पनी का एक कीटनाशक संयंत्र था। कम्पनी में गैस रिसाव पहले से ही हो रहा था। लेकिन कम्पनी के उच्च पदाधिकारियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

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नहीं बीते भोपाल गैस कांड से पीड़ितों के बुरे दिन

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साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे, पैगम्बर मरिहैं
मरिहैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी...
-कबीर


. 2 दिसम्बर,1984 की रात यूनियन कार्बाइड से रिसी जहरीली गैस ने हजारों को मौत की नींद सुला दिया था। जो लोग बचे हैं वे फेफड़े, आँख, दिल, गुर्दे, पेट और चमड़ी की बीमारी झेल रहे हैं। सवा पाँच लाख ऐसे गैस पीड़ित हैं, जिन्हें किसी तरह की राहत नहीं दी गई है। साथ ही 1997 के बाद से गैस पीड़ितों की मौत दर्ज नहीं की जा रही है।

सरकार भी यह मान चुकी है कि कारखाने में और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कचरा ज़मीन में दबा हुआ है। अभी तक सरकारी स्तर पर इसे हटाने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई है। खुले आसमान के नीचे जमा यह कचरा बीते कई सालों से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 14 बस्तियों की 40 हजार आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है।

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गंडक क्षेत्र और जल-जमाव का घाव

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Author: 
दिनेश कुमार मिश्र
.गंडक उत्तर प्रदेश तथा बिहार की एक महत्त्वपूर्ण नदी है जो कि हिमालय पर्वतमाला से नेपाल के भैरवा जिले में त्रिवेणी नाम के कस्बे के पास मैदानों में उतरती है। इसका उद्गम स्थान 7,620 मीटर की ऊँचाई पर धौलागिरि पर्वत पर है। यह नदी पश्चिमी चम्पारण में वाल्मीकि नगर के पास नेपाल से बिहार (भारत) में प्रवेश करती है और 265 किलोमीटर दक्षिण पूर्व दिशा में बहती हुई हाजीपुर के पास गंगा में मिल जाती है।

वाल्मीकि नगर के नीचे लगभग 18.5 किलोमीटर लम्बाई में यह नदी नेपाल बिहार की सीमा के रूप में तथा उसके नीचे प्रायः 80 किलोमीटर लम्बाई में उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा बनाते हुए बहती है। यदि केवल घाटी या जल ग्रहण क्षेत्र की बात की जाय तो इस नदी का विस्तार भारत में बहुत ज्यादा नहीं है।

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आदिवासियों की खेती से सीखें

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.देश के कई इलाकों में आदिवासी परम्परागत रूप से अब भी खेती कर रहे हैं। इनमें एक है ओडिशा का नियमगिरी पहाड़ का इलाका। सितम्बर महीने में वहाँ गया था। आदिवासियों की मिश्रित खेती से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। वहाँ देखकर और आदिवासियों से उनके अनुभव सुनकर मेरा यह विश्वास और भी पक्का हो गया।

कुन्दुगुड़ा के आदि नाम के आदिवासी ने अपने आधे एकड़ खेत में 76 प्रकार की फसलें लगाई हैं जिसमें अनाज, मोटे अनाज, दलहन, तिलहन, साग- सब्जियाँ और फलदार पेड़ भी शामिल हैं।

नियमगिरी पहाड़ की तलहटी में एक आदिवासी आदि का खेत है। उसमें विविध प्रकार की रंग-बिरंगी फसलें लहलहा रही हैं।

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क्या है चेन्नई की बाढ़ की हकीक़त

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.देश का चौथा सबसे बड़ा महानगर चेन्नई जो कभी केरल का प्रवेश द्वार तक कहा जाता था और समूची दुनिया में पर्यटन की दृष्टि से आकर्षक शहरों की सूची में 52 जगहों में एक था, आज अप्रत्याशित कहें या अभूतपूर्व बारिश के कारण पानी-पानी हो गया है।

असलियत यह है कि चेन्नई में हुई बीते दिनों की बारिश ने पिछले 100 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। नवम्बर के महीने में इस साल चेन्नई में कुल 1025 मिलीलीटर बारिश हुई जबकि 1918 में 1089 मिलीलीटर बारिश दर्ज की गई थी। जाहिर है इस साल बारिश ने बीते सालों के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। वहाँ बारिश से जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त है।

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नदी संसद से सीखें पंचायती राज

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.जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव कह रहे हैं कि काम पानी का हो, खेती या ग्राम स्वावलम्बन का; साझे की माँग जल्द ही आवश्यक हो जाने वाली है। सहकारी खेती, सहकारी उद्यम, सहकारी ग्रामोद्योग, सहकारी जलोपयोग प्रणाली के बगैर, गाँवों का अस्तित्व व विकास, एक अत्यन्त कठिन चढ़ाई होगी।

दुर्योग कहें या सुयोग, आर्थिक स्वावलम्बन के बाद से साझे के कार्यों की जगह गाँवों में भी कम होती जा रही है। साझे के नाम पर आज हमारे पास ग्राम पंचायत, शहरी मोहल्ला समितियों के अलावा स्वयंसेवी संगठन ही बचे हैं।

संवैधानिक तौर पर इनमें ग्राम पंचायतों को ही सबसे अधिक अधिकार प्राप्त है। इन्हें औजार बनाकर, हम अपने गाँवों का नक्शा बदल सकते हैं। 24 नवम्बर, 2015 को अपने नए पंचायती राज की उम्र 22 साल, सात महीने की हो गई है।

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पानी का अपव्यय खतरे की घंटी

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Author: 
दीपक रंजन
.जल ही जीवन है, चाहे बात पेयजल की हो या खेतों में सिंचाई की जरूरत को पूरा करने की हो। सामान्य तौर पर देखने से ऐसा लगता है कि भारत में खेती, पीने के लिये पानी की कमी नहीं है। किन्तु वास्तविकता यह है कि बड़ा क्षेत्र सिंचाई के लिये भूजल पर निर्भर है और भूजल स्तर लगातार तथा तेजी से नीचे गिरते हुए चिन्ताजनक ​स्थिति में पहुँच गया है।

भारतीय भूभाग के 51 फीसदी ज़मीन पर फसलें बोई जाती हैं। वर्तमान में देश में शुद्ध बोया गया क्षेत्र 16.2 करोड़ हेक्टेयर है। देश का समस्त सिंचित क्षेत्र 8 करोड़ हेक्टेयर है लेकिन 4.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर ही सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है, 56 प्रतिशत कृ​षि योग्य भूमि अभी भी वर्षाजल पर निर्भर है। यह स्थिति तब है ​जब कृषि से 60 फीसदी से अधिक आबादी जुड़ी हुई है।

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गैस रिसाव और प्रदूषित भूजल से तीसरी पीढ़ी के ढाई हजार बच्चे जन्मजात विकृत

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Author: 
रूबी सरकार
.2-3 दिसम्बर 1984 की रात को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड इण्डिया लिमिटेड की कीटनाशक कारखाने की टंकी से रिसी 40 टन मिथाइल आयसोसायनेट (एमआईसी) गैस (जो एक गम्भीर रूप से घातक ज़हरीली गैस है) के कारण एक भयावह हादसा हुआ।

कारखाने के प्रबन्धन की लापरवाही और सुरक्षा के उपायों के प्रति गैर-ज़िम्मेदाराना रवैए के कारण एमआईसी की एक टंकी में पानी और दूसरी अशुद्धियाँ घुस गईं जिनके साथ एमआईसी की प्रचंड प्रतिक्रिया हुई और एमआईसी तथा दूसरी गैसें वातावरण में रिस गईं।

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पेरिस जलवायु सम्मलेन और भारत की चिन्ता

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.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ मिलकर पेरिस में अन्तरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन का शुभारम्भ किया और विकसित व विकासशील देशों को साथ लाने वाली इस पहल के लिये भारत की ओर से तीन करोड़ डालर की सहायता का वादा किया।

मोदी ने कहा कि भारत कम कार्बन छोड़ने की हर कोशिश कर रहा है, विकसित देशों को बड़ी जिम्मेदारी लेनी होगी। पेरिस के जलवायु सम्मेलन में कई देशों ने ज्यादा कार्बन छोड़ने वाले देशों पर टैक्स लगाने की माँग की।

जलवायु सम्मेलन में सौ देशों ने मिलकर सोलर अलायंस बनाया व सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये 180 करोड़ रुपए की राशि देने का भी एलान किया। साथ ही 2030 तक 35 फीसदी कार्बन उत्सर्जन कटौती की बात कही। कार्बन उत्सर्जन भारत के लिये बड़ी समस्या है।

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छिनता जल-जंगल-जमीन

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विश्व मानवाधिकार दिवस, 10 दिसम्बर पर विशेष


.1950 के दशक में विश्व के अधिकांश देशों से औपनिवेशिक शासन का खात्मा हो गया। पूरे विश्व में स्वतंत्रता की किरण ने नया सन्देश दिया। अब देशों की स्वतंत्रता के साथ ही मानव मात्र की स्वतंत्रता का उद्घोष शुरू हुआ। 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 'विश्व मानवाधिकार दिवस'मनाने का निर्णय लिया।

अब हर व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसके जीने के लिये न्यूनतम साधनों पर बहस चलने लगी। सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार और जीने के लिये साधनों को सुनिश्चित करना सरकारों का कर्तव्य माना गया। प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल-जंगल और ज़मीन पर सारे लोगों का नैसर्गिक अधिकार हो गया।

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प्रकृति विदोहन के साथ-साथ मानवाधिकारों का हनन

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विश्व मानवाधिकार दिवस, 10 दिसम्बर पर विशेष


.मनुष्य और प्रकृति का वैसे तो चोली दामन का साथ है पर वर्तमान में मनुष्य प्रकृति के साथ अपने स्वार्थवश क्रूर हो गया है। कारण इसके मानवकृत आपदाएँ सर्वाधिक बढ़ रही है। अर्थात् विश्व मानव अधिकार दिवस की महत्ता तभी साबित होगी जब मनुष्य फिर से प्रकृति प्रेमी बनेगा। ऐसा अधिकांश लोगों का मानना है।

यहाँ हम उत्तराखण्ड राज्य में जो मानवकृत आपदाएँ घटित हो रही हैं उसका जिक्र करने जा रहे हैं कि किस तरह आपदाओं के कारण मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।

प्राकृतिक आपदाओं से मानवाधिकारों के हनन के लिये उत्तरकाशी शहर में गंगा किनारे बसे बाल्मीकी समुदाय के 65 परिवार ही काफी हैं।

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मानवाधिकार, मायने और पानी

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विश्व मानवाधिकार दिवस, 10 दिसम्बर पर विशेष


.क्या गजब की बात है कि जिस-जिस पर खतरा मँडराया, हमने उस-उस के नाम पर दिवस घोषित कर दिये! मछली, गोरैया, पानी, मिट्टी, धरती, माँ, पिता...यहाँ तक कि हाथ धोने और खोया-पाया के नाम पर भी दिवस मनाने का चलन चल पड़ा है। यह नया चलन है; संकट को याद करने का नया तरीका।

यूँ अस्तित्व में आया मानवाधिकार दिवस


संकट का एक ऐसा ही समय तक आया, जब द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। वर्ष 1939 -पूरे विश्व के लिये यह एक अंधेरा समय था। उस वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रुजावेल्ट ने अपने एक सम्बोधन में चार तरह की आज़ादी का नारा बुलन्द किया: अभिव्यक्ति की आज़ादी, धार्मिक आजादी, अभाव से मुक्ति और भय से मुक्ति।

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मैं अड्यार बोल रही हूँ

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Author: 
अभय मिश्र
.मैं अड्यार नदी हूँ, दक्षिण के महानगर चेन्नई की जीवनरेखा भी कहते हैं मुझे। मैं भी जीवनरेखा ही बनी रहना चाहती हूँ लेकिन लोग हैं कि अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिये मेरी रेखा को ही छोटा करते रहे हैं।

कभी भी नहीं चाहा था मैंने कि हवाई जहाज और ट्रेनें नावों की तरह मुझ पर बहती नजर आये। वे तो आसमान में और मुझ पर बनाए गए पुलों के ऊपर से गुजरती ही ठीक लगतीं हैं। मैनें कभी नहीं चाहा था कि यह महानगर टापू में तब्दील हो जाये और समुद्र का आर्थिक दोहन करते–करते सागर का ही एक हिस्सा नजर आने लगे।

आज हर शख्स मुझे देख कर डर रहा है, अपनी माँ को देखकर डर रहा है? मेरे इन बच्चों को मुझ पर तब दया नहीं आई जब मेरे पाट पर ही पूरा हवाई अड्डा तैयार किया जा रहा था। क्या स्मार्ट सिटी के रास्ते पर तेजी से दौड़ते इस शहर को नहीं पता कि पूरा महानगर ही नमभूमि और कच्छभूमि पर बसा है?

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चेन्नई बड़ी चेतावनी है

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.चेन्नई व उसके आसपास के शहरी इलाकों की रिहायशी बस्तियों के जलमग्न होने का जो हाहाकर आज मचा है, असल में वहाँ ऐसे हालात बीते एक महीने से थे। यह सच है कि वहाँ झमाझम बारिश ने सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, लेकिन यह भी बड़ा सच है कि मद्रास शहर के पारम्परिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी कि 15 मिमी तक पानी बरसने पर भी शहर की जल निधियों में ही पानी एकत्र होता और वे उफनते तो पानी समुद्र में चला जाता।

वैसे गम्भीरता से देखें तो देश के वे शहर जो अपनी आधुनिकता, चमक-दमक और रफ्तार के लिये जग-प्रसिद्ध हैं, थोड़ी सी बारिश में ही तरबतर हो जाते हैं।

चाहे दिल्ली हो या मुम्बई या फिर बंगलुरु या इन्दौर, बादल बरसे नहीं कि पूरा महानगर ठिठक सा जाता है। विडम्बना यह है कि गंगा जैसी बड़ी नदी या समुद्र के किनारों के शहर भी अब गलियों में जल-प्लावन का शिकार बन रहे हैं।

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जलवायु परिवर्तन समस्या नहीं, समाधान की ओर कदम बढ़े

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.पेरिस में जो भी निर्णय बुद्धिजिवी व जिम्मेदार लोग लेंगे वह स्वागत योग्य ही होगा। मगर आज तक के पर्यावरण सम्मेलनों में भी बहुत सारे निर्णय लिये गए हैं उन पर कितना अमल हुआ है यह भी अहम सवाल है। पेरिस में भी इस पर मंथन होना चाहिए।

यहाँ हम भारतीय हिमालय की बात यदि कर रहे हैं तो आज भी भारत का वन क्षेत्र प्रचुर मात्रा में देश को स्वच्छ व स्वस्थ पर्यावरण उपलब्ध करा रहा है। परन्तु भारतीय हिमालय पर विकास के नाम पर लगातार राजनीतिक हमले हो रहे हैं जिसका जवाब शायद ही ये जिम्मेदार लोग दे पाये।

इसका कारण यह माना जाता रहा है कि पर्यावरण संरक्षण की बात को करने वाले लोग विकास विरोधी कहे जाने लगे हैं। फलस्वरूप इसके पर्यावरण संरक्षण का कार्य सिर्फ-व-सिर्फ संघर्षों की गाथा बनती जा रही हैं।

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चेन्नई आपदा का दोषी कौन

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.चेन्नई का पानी अब धीरे-धीरे उतरने लगा है। अब इस भयावह प्राकृतिक आपदा के वजह की तलाश की जा रही है। इस तलाश में यह बात अब धीरे-धीरे स्पष्ट हो गई है कि चेन्नई में आई बाढ़ प्राकृतिक आपदा नहीं थी। यह मानव निर्मित आपदा थी।

यह सच है कि कई दशकों से चेन्नई में इतनी बारिश नहीं हुई थी। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं था कि जलाशय और नदियों की ज़मीन पर अनधिकृत कॉलोनियों का निर्माण बिना रोक-टोक के होने दिया जाये? बहुमंजिली इमारतों की कतार खड़ी कर दी जाये? और एक-एक करके चेन्नई में जलनिकासी के सभी रास्ते अवरुद्ध कर दिये जाएँ।

चेन्नई में हुई भारी बारिश के दबाव ने ही अधिकारियों को मजबूर किया कि उन्हें 30,000 क्यूसेक पानी चेम्बरक्कम जलाशय से अड्यार नदी में छोड़ना पड़ा। बताया जा रहा है कि यह छोड़ा गया पानी भी आपदा की एक वजह बना।

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जलवायु परिवर्तन अब भी एक बड़ी चुनौती

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.जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के उपायों पर विचार करने के लिये पेरिस में हुआ दुनिया के 190 से अधिक देशों का जमावड़ा अब खत्म हो चुका है। इस सम्मेलन को जलवायु परिवर्तन रोकने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि करार दिया जा रहा है।

सम्मेलन के अन्त में हुए समझौते को जहाँ अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा पृथ्वी को बचाने के लिये मानवता के समक्ष सर्वश्रेष्ठ अवसर प्रस्तुत करने वाला करार दे रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून लोगों और हमारे गृह के लिये एक महत्त्वपूर्ण सफलता की संज्ञा दे रहे हैं जो गरीबी के अन्त, शान्ति को बढ़ावा देने और सभी के लिये सम्मान एवं अवसरों वाला जीवन सुनिश्चित करने का मंच तैयार करने वाला साबित होगा। उनके अनुसार प्रकृति हमें आपातकालीन संकेत दे रही है।

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बिहार में तालाबों और आहर-पइन प्रणाली अपनाने की जरूरत

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Author: 
अमरनाथ
.सूखे से निपटने की नायाब योजना लेकर आई है बिहार सरकार। वह ग्रामीण क्षेत्रों में जो तालाब सूख गए हैं, उनमें नलकूप से पानी भरने जा रही है। गर्मी के मौसम में सूखे तालाबों को नलकूपों के पानी से भरने की यह योजना मत्स्यपालन को बढ़ावा देने के लिहाज से तैयार की गई है। मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने कहा कि तालाबों में नलकूप से पानी भरने के लिये 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा।

मत्स्यपालन से जुड़ी सहकारी समितियों को प्राथमिकता दी जाएगी। सूखे की हालत को देखते हुए यह योजना आकर्षक लगती है। इससे मत्स्यपालन और पशुओं के पेयजल की समस्या का फौरी समाधान भी हो सकता है। परन्तु प्रश्न यह है कि सूखाड़ की वजह से उत्पन्न समस्याओं का वास्तविक समाधान ऐसी योजनाओं से हो सकता है?

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