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नाकाफी गंगे

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.नए साल में सरकार ने नमामि गंगे कार्यक्रम को शुरू कर दिया। कई सारे घोषित–अघोषित लक्ष्यों लेकर शुरू किये गए इस कार्यक्रम में रोडमैप और समय सीमा का कोई जिक्र नहीं है। कोई नहीं जानता कि नमामि गंगे कब अपने लक्ष्य तक पहुँचेगा। उमा भारती ने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा वाहिनी सेना तैनात कर इसकी शुरुआत की।

गंगा वाहिनी में पूर्व सैनिकों को जोड़ा गया है जो गंगा में डाले जा रहे प्रदूषण पर नजर रखेंगे। मंत्रालय जल्दी ही कानपुर, वाराणसी और इलाहाबाद में भी गंगा वाहिनी की नियुक्ति करेगा। गंगा किनारे के 200 गाँवों की सीवेज व्यवस्था को सीचेवाल मॉडल की तर्ज पर विकसित किया जाएगा।

सन्त सीचेवाल ने सामुदायिक सहयोग से पंजाब की कालीबेई नदी को गन्दे नाले से पवित्र नदी में तब्दील कर दिया था। डेढ़ साल बाद भी हम काम करने के बजाय प्रतीकों का सहारा ले रहे हैं। जब एक्शन प्लान चरम पर होना चाहिए था तब सरकार पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत कर रही है।

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घोषणाओं से आगे कब बढ़ेगी नमामि गंगे

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.यह सच है कि गंगा की निर्मलता-अविरलता बरस-दो-बरस का काम नहीं है। यह सतत् साधना और संकल्प का दीर्घकालिक काम है, किन्तु यहाँ तो गंगा प्रदूषण मुक्ति अकेले की कामना करते 30 बरस बीत गए; गंगा कार्ययोजना से लेकर नमामि गंगे तक।

नमामि गंगे ने भी नित नए बयान, नई घोषणा, नए सन्देश और नई तारीखें तय करने में डेढ़ बरस गुजार दिया। इस डेढ़ बरस में जल मंत्रालय का नाम बदला गया। लोकसभा चुनाव से पूर्व गंगा किनारे घूम-घूमकर गंगा सन्देश देने में लगी साध्वी सुश्री उमा भारती जी का मंत्रालय का प्रभार दिया गया।

वर्ष 2020 तक गंगा संरक्षण के लिये 20 हजार करोड़ की मंजूरी से ‘नमामि गंगे’ का श्री गणेश किया गया। कार्यक्रम को अंजाम देने के लिये प्रधानमंत्री के अलावा दो श्री नितिन गडकरी और श्री प्रकाश जावड़ेकर को भी इसमें महती भूमिका दी गई।

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गाँवों में मोबाइल वैन से पेयजल मुहैया कराएगी सरकार

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Author: 
अमरनाथ

.दूषित भूजल वाले इलाके में लोगों को उनके दरवाजे पर शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की मोबाइल योजना बिहार सरकार प्रस्तुत करने वाली है। इसके लिये वह बीस मोबाइल वैन खरीदने जा रही है जो गाँवों में जाकर नदी, कुआँ या तालाब का पानी को साफ करके पीने योग्य बनाएगी और मामूली मूल्य लेकर ग्रामीणों को उपलब्ध कराएगी।

परिशोधित जल कई दिनों तक पीने योग्य बना रहेगा। इसमें एक मालवाहक वैन पर वाटर प्यूरीफायर मशीन लगी होगी जिसके संचालन के लिये बिजली की जरूरत नहीं होगी। लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग सचिव अंशुली आर्या ने मोबाइल प्यूरीफायरों को खरीदने के लिये टेंडर निकालने आदि प्रक्रियाएँ शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया है।

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सूखे का संकट स्थायी क्यों है

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.पिछले कुछ सालों से किसानों को बार-बार सूखे से जूझना पड़ रहा है और अब लगभग यह हर साल बना रहने वाला है। वर्ष 2009 में सबसे बुरी स्थिति रही है। पहले से ही खेती-किसानी बड़े संकट के दौर से गुज़र रही है। कुछ सालों से किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला रुक नहीं रहा है। इस साल भी सूखा ने असर दिखाया है, एक के बाद एक किसान अपनी जान दे रहे हैं।

सूखा यानी पानी की कमी। हमारे यहाँ ही नहीं बल्कि दुनिया में नदियों के किनारे ही बसाहट हुई, बस्तियाँ आबाद हुईं, सभ्यताएँ पनपीं। कला, संस्कृति का विकास हुआ और जीवन उत्तरोत्तर उन्नत हुआ।

आज बड़ी नदियों को बाँध दिया गया है। औदयोगीकरण और शहरीकरण को बढ़ावा दिया गया। पहाड़ों पर खनन किया जा रहा है, जो नदी-नालों के स्रोत हैं।

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आखिर काम आये वही पुराने तालाब

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Author: 
राजीव चंदेल

मेजा के एक गाँव में 90 से अधिक तालाब



.इलाहाबाद। कमजोर बारिश से इस साल खरीफ व रबी, दोनों सीजन में किसानों के लिये थोड़ा सा भी जल आशा की किरण नजर आ रहा है। पानी की कीमत क्या हो सकती है? इलाके में पानी का अतिभोग करने वाले किसानों को अब इसका ज्ञान हो रहा है।

यही नहीं जब इस साल पानी के तमाम स्रोत जवाब दे गए तो किसानों की नजर गाँव के पुराने, जर्जर तालाबों पर पड़ी। सूखे के संकट के समय भी तालाबों में पर्याप्त पानी देख गाँव वाले अचम्भित हुए।

कई वर्षों से किसी का भी ध्यान इन तालाबों की तरफ नहीं जा रहा था। किसानों ने पहली बार महसूस किया कि वास्तव में ये तालाब तो बड़े काम के हैं। ऐसे में जब चारों तरफ जल के तमाम स्रोत सूख रहे हैं, इस गाँव के तालाब जल ही जीवन है का अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

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मकर संक्रान्ति, फिर बने राष्ट्र विमर्श का नदी पर्व

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मकर सक्रान्ति पर विशेष



.मकर सक्रान्ति ही वह दिन है, जब सूर्य उत्तरायण होना शुरू करता है और एक महीने, मकर राशि में रहता है; तत्पश्चात सूर्य, अगले पाँच माह कुम्भ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में रहता है। एक दिन का हेरफेर हो जाये, तो अलग बात है, अन्यथा मकर सक्रान्ति का यह शुभ दिन, हर वर्ष अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से 14 जनवरी को आता है।

पंचांग के मुताबिक, इस वर्ष सूर्य 14 जनवरी की आधी रात के बाद प्रातः एक बजकर, 26 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेगा।

अब चूँकि मकर राशि में प्रवेश के बाद का कुछ समय संक्रमण काल माना जाता है; अतः सूर्योदय के सात घंटे, 21 मिनट के बाद यानी दिन में एक बजकर, 45 मिनट से संक्रान्ति का पुण्यदायी समय शुरू होगा। इस नाते इस वर्ष मकर सक्रान्ति स्नान 15 जनवरी को होगा।

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भारी-भरकम बजट : तब गंगा एक्शन प्लान अब क्लीन गंगा अभियान

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.गंगा एक्शन प्लान को लेकर सरकारों ने सबक नही ले पाया, पर निर्मल गंगा को लेकर सरकारें जिस तरह से संवेदनशील हो चुकी हैं उस तरह वे वैज्ञानिको की रिपोर्टों पर गौर नहीं कर पा रही हैं।

बता दें कि गंगा पर एक तरफ जल विद्युत परियोजनाएँ निर्माणाधीन व निर्मित हैं तो दूसरी तरफ गंगा में उड़ेले जा रहे सीवर इत्यादि के कारण गंगा का प्रवाह भी अनियमित हो रहा है और साथ ही बाधित भी हो रहा है।

अर्थात गंगा को स्वच्छ रखने के लिये सीवेज ट्रिटमेंट प्लांट से ज्यादा जल प्रवाह की निरन्तरता बनाए रखना जरूरी बताया जा रहा है। क्योंकि प्रवाह ही नदी की सफाई करता है। ऐसा संकेत अपनी-अपनी रिपोर्टों में कई बार गंगा पर ‘क्लीन गंगा’ को लेकर गंगा बेसिन में काम कर रहे वैज्ञानिको ने दिये हैं।

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ऐसे तो नहीं सुधरेगी नदियों की सेहत

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.आजकल देश में सबसे ज्यादा राष्ट्रीय नदी गंगा और उसके बाद यमुना की सफाई को लेकर चर्चा है। अभी तक इन दोनों नदियों की सफाई को लेकर बीते दशकों में हजारों करोड़ की राशि स्वाहा हो चुकी है लेकिन उनके हालात में कोई बदलाव नहीं आया है। हकीक़त यह है कि यह दोनों नदियाँ पहले से और ज्यादा मैली हो गई हैं।

केन्द्र सरकार ने भले ही गंगा नदी की सफाई को लेकर अभियान चलाया हुआ है, पर देश की बहुतेरी नदियाँ ऐसी हैं जो गंगा से भी बदतर हालात में हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नमामि गंगे मिशन का परिणाम जब आएगा, तब आएगा। वह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन ताज़ा अध्ययन बताता है कि देश की तमाम नदियाँ प्रदूषण की चपेट में हैं।

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जैविक खेती का रसायनिक किसान

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Author: 
सोपान जोशी

.ज्यादा पुरानी बात नहीं है। देश में खाने की किल्लत थी और सीमा पर हमले का डर था। तब जय जवान, जय किसान का नारा लगा। देश को किसानों की जरूरत थी, इसलिये प्रगति के नाम पर उनसे अपने पुराने तरीके छोड़ आधुनिक खेती करने को कहा गया।

कई इलाकों के किसानों को जोर डाल कर कहा गया कि उत्पादन बढ़ाएँ। इसके लिये उन्हें कई तरह के उन्नत कहे जाने वाले बीज और नई तरह के कीटनाशक और खाद दिये गए।

उत्पादन बढ़ा भी। गोदाम भर गए। हमारे समाज के सत्तासीन लोग जो लोग अपना भोजन नहीं उगाते, उनकी चिन्ता दूर हुई। किसान का महत्त्व स्वतः ही कम हो गया। कई इलाकों में भुखमरी फिर भी दूर नहीं हुई।

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‘गंगा कोई नैचुरल फ्लो नहीं’ : स्वामी सानंद

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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद- प्रथम कथन


सन्यासी बाना धारण कर प्रो जीडी अग्रवाल जी से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का नामकरण हासिल गंगापुत्र का संकल्प किसी परिचय के मोहताज नहीं। जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक संगम की तरह जानते हैं। माँ गंगा के सम्बन्ध में अपनी माँगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा किये कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ‘नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किन्तु माँगों को अभी भी पूर्ति का इन्तजार है। इसी इन्तजार में हम पानी, प्रकृति, ग्रामीण विकास एवं लोकतांत्रिक मसलों पर अत्यन्त संवेदनशील लेखक व पत्रकार श्री अरुण तिवारी जी द्वारा स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी से की लम्बी बातचीत को सार्वजनिक करने से हिचकते रहे, किन्तु अब स्वयं बातचीत का धैर्य जवाब दे गया है। अब समय आ गया है कि इस बातचीत को सार्वजनिक करें। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी), प्रत्येक रविवार आपको इस शृंखला का अगला कथन उपलब्ध कराता रहेगा; यह पोर्टल टीम का निश्चय है।

इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित संवाद परिचय को पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें...



पहला कथन आपके समर्थ पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :


.तारीख 01 अक्टूबर, 2013: देहरादून का सरकारी अस्पताल। समय सुबह के 10.36 बजे हैं। न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री अरविंद पांडे आकर जा चुके हैं। लोक विज्ञान संस्थान से रोज कोई-न-कोई आता है। श्री रवि चोपड़ा भी आये थे। मैं पहुँचा, कमरे में दो ही थे, नर्स और स्वामी सानंद जी। 110 दिन के उपवास के पश्चात भी चेहरे पर वही तेज, वही दृढ़ता!

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भूगर्भीय जल संसाधन की सम्भाल करना जरूरी

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.1970 और 2008 के बीच भारतवर्ष में लगभग 250 लाख हेक्टेयर असिंचित कृषि भूमि को सिंचाई योग्य बनाया गया, जिसमें भूजल का योगदान 85 प्रतिशत रहा।

सिंचित क्षेत्र में से 62 फीसदी सिंचाई भूजल से हो रही है। नहरों से 26 प्रतिशत, तालाबों से 4 प्रतिशत और अन्य साधनों से 8 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई हो रही है। कुल सिंचित क्षेत्र लगभग 570 लाख हेक्टेयर है। 1964 से ट्यूबवेल सिंचाई में लगातार वृद्धि हुई है। यानी हरित क्रान्ति के साथ-साथ इसका तीव्र गति से विकास हुआ है।

ट्यूबवेल सिंचाई का हिस्सा उस समय 3 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया है। दूसरे कुओं से सिंचाई का हिस्सा, जो 1964 में 27 प्रतिशत था, अब घटकर 20 फीसदी रह गया है। इस तरह कुल भूजल द्वारा सिंचित हिस्सा 62 प्रतिशत हो गया है।

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ਨਵੇਂ ਸਿਰਿਓਂ ਲਿਖਣਾ ਤਕਦੀਰਾਂ ਨੂੰ

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ਜ਼ਹੀਰਾਬਾਦ ਵਿੱਚ ਸਥਾਨਕ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਸਮੁਦਾਇ ਆਪਣੀਆਂ ਬੰਜਰ ਪਈਆਂ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਨੂੰ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋਏ ਹਨ ਅਤੇ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਉੱਪਰ ਉਹ ਅਨਾਜਾਂ ਦੀਆਂ ਅਣਗਿਣਤ ਰਵਾਇਤੀ ਕਿਸਮਾਂ ਉਗਾ ਰਹੇ ਹਨ|ਉਹ ਨਾ ਸਿਰਫ ਉਸ ਭੋਜਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਜੋ ਕਿ ਹਜਾਰਾਂ ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁਦਰਤੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਈ ਹੈ, ਨੂੰ ਮੁੜ ਸਹੇਜਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਏ ਹਨ ਬਲਕਿ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਆਪਣੇ ਉਪਭੋਗ ਦੇ ਲਈ ਕਾਫੀ ਪੌਸ਼ਟਿਕ ਭੋਜਨ ਵੀ ਹੈ|
ਆਂਧਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦੇ ਜਿਲ੍ਹਾ ਮੇਦਕ ਵਿੱਚ ਜ਼ਹੀਰਾਬਾਦ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਖੇਤਰ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਪ੍ਰੰਪਰਿਕ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮੂਲ ਅਨਾਜਾਂ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਿਸਮਾਂ ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਜਵਾਰ, ਬਾਜਰਾ, ਕੰਗਨੀ, ਕੁਟਕੀ ਸਮੇਤ ਕਈ ਹੋਰ ਕਿਸਮਾਂ ਭੋਜਨ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਖਾਧੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ|ਹਾਲਾਂਕਿ, ਸਾਰਵਜਨਿਕ ਵਿਤਰਣ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਤਹਿਤ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਸਸਤੇ ਚੌਲ ਮਿਲਣ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕਰਕੇ ਕਈ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰੰਪਰਿਕ ਅਨਾਜਾਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਹੋ ਗਏ, ਕਿਉਂਕਿ ਚੌਲ ਪਕਾਉਣ ਵਿੱਚ ਆਸਾਨ ਸਨ, ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀ ਨਹੀਂ ਸੀ| ਕਈ ਔਰਤਾਂ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਲਈ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਅਸੀਸ ਮੰਨਿਆ|ਹਾਲਾਂਕਿ, ਇਹ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਪਸ਼ਟ ਹੋਇਆ ਕਿ ਭੋਜਨ ਵਿੱਚ ਇਸ ਬਦਲਾਅ ਦੇ ਕੀ ਕੀ ਅਸਰ ਆਏ|
ਇਹਨਾਂ ਸਮੁਦਾਇਆਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪ੍ਹੋਣ ਵਿੱਚ ਆਈ ਗਿਰਾਵਟ ਨੂੰ ਦਰਜ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ|ਚੌਲਾਂ ਤੋਂ ਕਾਫੀ ਵੱਡੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡ੍ਰੇਟ ਤਾਂ ਮਿਲਦੇ ਸਨ ਪਰ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤ ਜਿਵੇਂ ਲੋਹਾ, ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ, ਖਣਿਜ, ਰੇਸ਼ੇ ਆਦਿ ਬਹੁਤ ਹੀ ਘੱਟ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਮਿਲ ਰਿਹਾ ਸੀ|ਪ੍ਰੰਤੂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸ਼ਰੀਰ ਵੱਡੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤਾਂ ਦੀ ਮੰਗ ਕਰਦੇ ਸਨ ਜੋ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰੰਪਰਿਕ ਮੂਲ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਹੋਰ ਅਨਾਜ ਦੇਣ ਵਿੱਚ ਸਮਰੱਥ ਸਨ|

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ਸਿਹਤਮੰਦ ਮਿੱਟੀ ਲਈ ਬਾਇਓਚਾਰ

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ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤਾਂ ਦੀ ਕਮੀ ਵਾਲੀ ਮਿੱਟੀ ਵਿੱਚ ਕਾਰਬਨ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਤਾਮਿਲਨਾਡੂ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੇ ਪਰੀਖਣ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਬਾਇਓਚਾਰ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਕੇ ਦੇਖਿਆ| ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਪਾਇਆ ਕਿ ਮਿੱਟੀ ਵਿੱਚ ਬਾਇਓਆਚਾਰ ਪਾਉਣ ਨਾਲ, ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਭੌਤਿਕ ਢਾਂਚੇ ਅਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਗੁਣਾਂ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਆਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਅਸਰ ਤਿੰਨ ਫਸਲ ਚੱਕਰਾਂ ਤੱਕ ਬਣਿਆ ਰਿਹਾ| ਇਸ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਵਿੱਚ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਲਾਇਤੀ ਕਿੱਕਰ ਨੂੰ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨ ਦਾ ਵੀ ਤਰੀਕਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ਜੋ ਕਿ ਓਹਨਾਂ ਦੇ ਖੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਫੈਲ ਰਹੀ ਸੀ|

ਅਰਧ- ਖੁਸ਼ਕ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਖੇਤੀ ਉਤਪਾਦਨ ਨੂੰ ਬਣਾਏ ਰੱਖਣ ਲਈ ਬੜੀ ਹੀ ਘੱਟ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ|ਦੇਸੀ ਬਨਸਪਤੀ ਵਿੱਚ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਜਾਤੀਆਂ ਜਿਵੇਂ ਘਾਹ ਅਤੇ ਘਾਹ ਜਿਹੇ ਹੋਰ ਪੌਦੇ, ਝਾੜੀਆਂ ਅਤੇ ਰੁੱਖ ਆਦਿ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ|ਸਾਲਾਨਾ ਵਰਖਾ 200-250 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 500-600 ਮਿਲੀਮੀਟਰ ਤੱਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ|ਪਿਛਲੇ ਤਿੰਨ ਦਹਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ, ਵਿਰੁਧੂਨਗਰ, ਰਾਮਨਾਥਪੁਰਮ ਅਤੇ ਸਿਵਾਗੰਗਈ ਜਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਅਨਿਯਮਿਤ ਵਰਖਾ ਅਤੇ ਵਿਲਾਇਤੀ ਕਿੱਕਰ ਦੇ ਲਗਾਤਾਰ ਫੈਲਾਅ ਕਰਕੇ ਖੇਤੀ ਯੋਗ ਭੂਮੀ ਘਟਦੀ ਗਈ ਅਤੇ ਖਾਲੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ|ਸਾਂਝੀਆਂ ਚਰਾਗਾਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਕਮੀ ਆਉਣ ਕਰਕੇ ਸਥਾਨਕ ਪਸ਼ੂਧਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਮੀ ਆਈ ਜੋ ਕਿ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਆਉਂਦਾ ਸੀ|ਇਸਦੇ ਕਰਕੇ ਗੋਬਰ ਦੀ ਖਾਦ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਅਤੇ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਪਾਉਣ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਕਮੀ ਆਈ ਜੋ ਕਿ ਪ੍ਰੰਪਰਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ|

ਬਾਇਓਚਾਰ ਕੀ ਹੈ? ਬਾਇਓਚਾਰ ਬਾਇਓਮਾਸ ਦੇ ਕਾਰਬਨੀਕਰਨ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਇੱਕ ਠੋਸ ਸਮੱਗਰੀ ਹੈ|ਬਾਇਓਚਾਰ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਕਰਨ ਦੇ ਇਰਾਦੇ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਵਿੱਚ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਬਾਇਓਮਾਸ ਵਿੱਚੋਂ ਗਰੀਨ ਹਾਊਸ ਗੈਸਾਂ ਦੇ ਨਿਕਾਸ ਨੂੰ ਵੀ ਘੱਟ ਕਰਦਾ ਹੈ|

ਆਰਗਨਾਈਜੇਸ਼ਨ ਆਫ ਡਿਵਲਪਮੈਂਟ ਐਕਸ਼ਨ ਐਂਡ ਮੈਂਟੇਨਨੈਂਸ (ਓ ਡੀ ਏ ਐਮ), ਇੱਕ ਐਨ ਜੀ ਓ ਜੋ ਇਸ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੀ ਸੀ, ਨੂੰ ਟੈਰਾ ਪਰੇਟਾ, ਜਿਸਦਾ ਪੁਰਤਗਾਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਅਰਥ ਹੈ ਕਾਲੀ ਮਿੱਟੀ, ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਸੀ ਕਿ ਇਸਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ|ਇਸਦੇ ਇਲਾਵਾ ਇਹ ਵੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਕਿ ਇਸ ਵਿਕਲਪ ਰਾਹੀ ਵਿਲਾਇਤੀ ਕਿੱਕਰ ਨੂੰ ਕੋਲੇ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਕੇ ਉਸਦੇ ਪਸਾਰ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ|

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पेयजल में फ्लोराइड की अधिकता से मानव शरीर पर कुप्रभाव

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Author: 
शशिरंजन कुमार
Source: 
जल चेतना तकनीकी पत्रिका, सितम्बर, 2011
.फ्लोरोसिस आधुनिक भारतीय समाज (खासकर ग्रामीण समाज) का वह अभिशाप है जो सुरसा की तरह मुॅंह फैलाए जा रही है और हजारों लोग प्रतिवर्ष इसकी चपेट में आकर वैसा ही महसूस कर रहे हैं जैसा कोई अजगर की गिरफ़्त में आकर महसूस करता है।

फ्लोरोसिस मनुष्य को तब होता है जब वह मानक सीमा से अधिक घुलनशील फ्लोराइड-युक्त पेयजल को लगातार पीने के लिये व्यवहार में लाता रहता है।

भारत में फ्लोरोसिस सर्वप्रथम सन् 1930 के आस-पास दक्षिण भारत के राज्य आन्ध्र प्रदेश में देखा गया था। लेकिन आज भारत के विभिन्न राज्यों में यह बिमारी अपने पाँव पसार चुकी है और दिन-प्रतिदिन इसका स्वरूप विकराल ही होता चला जा रहा है।

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बुन्देलखण्ड : किसान के कुओं और सरकार की आँख का सूखा पानी

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.बुन्देलखण्ड के जुड़वा गाँव खिसनी बुजुर्ग और खिसनी खुर्द इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि प्रशासनिक लापरवाही किस तरह मौसम की मार के असर को कई गुना बढ़ा सकती है।

इतिहास की किताबों में जब हम पढ़ते कि अंग्रेजों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पूरी आबादी को कहीं और स्थानान्तरित करने की सिफारिश की थी तो हमें उनकी समझ पर रश्क होता है।

अगर कल्पना साथ नहीं दे तो एक बार बुन्देलखण्ड होकर आइए। पहले से ही भीषण जलसंकट का शिकार बुन्देलखण्ड इलाक़ा साल-दर-साल नई त्रासदियों का शिकार होता जा रहा है।

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साल-दर-साल होता मौसम का गर्म मिज़ाज

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.इस बार जनवरी माह का औसत तापमान पिछले सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। यदि इसकी तुलना पिछले 15 सालों के जनवरी माह के औसत तापमान से की जाये तो यह साबित होता है कि इस बार जनवरी सबसे अधिक गर्म बना हुआ है।

जबकि इस सबके बीच यह आँकड़ा भी हमारे सामने है कि पिछले साल जून में गर्मी ने 48 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुँच कर सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये थे। जिससे हमारे देश में दलहन, तिलहन और चावल की खेती प्रभावित हुई।

अब मौसम की मार से इस बार देश में 20 लाख हेक्टेयर कम गेहूँ की बुआई हुई है। कम ठंड से रबी की प्रमुख फसल गेहूँ के खराब होने का खतरा बना हुआ है। जबकि पिछले साल गर्मी ने खूब रुलाया था।

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मन्त्रियों की कबड्डी लीग

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.यह साफ हो चुका है कि पर्यावरण मन्त्री प्रकाश जावड़ेकर और गंगा संरक्षण मन्त्री उमा भारती के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। इसे यूँ समझिए कि गंगा दशा–दुर्दशा पर कोई भी सवाल उमा भारती की ओर ही उछाला जाता है क्योंकि उनके मन्त्रालय का नाम गंगा संरक्षण मन्त्रालय है।

लेकिन गंगा पर सबसे ललचाई नजर पर्यावरण मन्त्रालय की है। पिछले दिनों जब पर्यावरण मन्त्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में लिखकर दिया कि वह गंगा पर बाँध परियोजनाओं पर आगे बढ़ना चाहता है। (इस कॉलम में काफी पहले ही ये आशंका जताई गई थी) तो उमा भारती का सब्र का बाँध टूट गया, इसका हरगीज ये मतलब नहीं कि गंगा मन्त्रालय बाँध विरोध में है।

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क्या मैं भागीरथी का सच्चा बेटा हूँ

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दूसरा कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है...

स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद- दूसरा कथन



.तारीख : 30 सितम्बर, 2013।अस्पताल के बाहर खाने-पीने की दुकानों की क्या कमी, किन्तु उस दिन सोमवार था; मेेरे साप्ताहिक व्रत का दिन। एक कोने में जूस की दुकान दिखाई दी। जूस पी लिया; अब क्या करूँ?

स्वामी जी को आराम का पूरा वक्त देना चाहिए। इस विचार से थोड़ी देर देहरादून की सड़क नापी; थोड़ी देर अखबार पढ़ा और फिर उसी अखबार को अस्पताल के गलियारे में बिछाकर अपनी लम्बाई नापी। किसी तरह समय बीता। दरवाज़े में झाँककर देखा, तो स्वामी के हाथ में फिर एक किताब थी।

समय था -दोपहर दो बजकर, 10 मिनट। किताब बन्द की। स्वामी जी ने पूछा कि क्या खाया और फिर बातचीत, वापस शुरू।

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ਵਿਦਰਭ ਵਿੱਚ ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਬਹਾਲ ਕਰਨਾ

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ਵਿਦਰਭ, ਜੋ ਕਿ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਵਿੱਚ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਅਜਿਹੇ ਕਿਸਾਨ ਹਨ ਜਿੰਨਾਂ ਨੇ ਜੈਵਿਕ ਤਰੀਕਿਆਂ ਰਾਹੀ ਆਪਣੀ ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਬਹਾਲ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਹਾਸਿਲ ਕੀਤੀ ਹੈ| ਸੁਭਾਸ਼  ਸ਼ਰਮਾ ਜੀ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਇੱਕ ਕਿਸਾਨ ਹਨ|<br><br>

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ਖੇਤ ਤੋਂ ਥਾਲੀ ਤੱਕ -ਸਹਿਜਾ ਆਰਗੈਨਿਕਸ ਦੀ ਇੱਕ ਪਹਿਲ

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ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਬਾਜ਼ਾਰ ਤੱਕ ਸਿੱਧੇ ਪਹੁੰਚ ਉਪਲਬਧ ਕਰਵਾਉਣਾ ਆਰਥਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੈ|ਕਿਸਾਨ ਬਾਜ਼ਾਰ ਗ੍ਰਾਮੀਣ- ਸ਼ਹਿਰੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅਭਿੰਨ ਅੰਗ ਹਨ ਅਤੇ ਖਪਤਕਾਰਾਂ ਦੇ ਸਿੱਧੇ ਖੇਤ ਤੋਂ ਤਾਜਾ ਉਤਪਾਦ ਲੈਣ ਦੀ ਵਧਦੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਵਿੱਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ| ਸਹਿਜਾ  ਸਮਰੁੱਧਾ, ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਮਾਹਿਰਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਾਲੀ ਇੱਕ ਸੰਸਥਾ ਆਪਣੀ ਇੱਕ ਪਹਿਲ ਦੁਆਰਾ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਖਪਤਕਾਰਾਂ ਦਰਮਿਆਨ ਪਾੜੇ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ| <br><br>ਸਹਿਜਾ ਸਮਰੁੱਧਾ, ਭਾਵ ‘ਭਰਪੂਰ ਕੁਦਰਤ’ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨਾਲ ਫਸਲਾਂ ਦੀਆਂ ਦੇਸੀ ਕਿਸਮਾਂ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਕਰਨ, ਅਤੇ ਅਮੀਰ ਜੈਵ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਇੱਕ ਲੋਕ ਲਹਿਰ ਖੜ੍ਹੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕੰਮ ਰਹੀ ਸੰਸਥਾ ਹੈ| ਇਹ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ’ਤੇ ਵਿਚਾਰਾਂ, ਬੀਜਾਂ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਅਤੇ ਟਿਕਾਊ ਖੇਤੀ ਬਾਰੇ ਗਿਆਨ ਸਾਂਝਾ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਪਹਿਲ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ| <br><br>ਕਿਉਂਕਿ ਕਰਨਾਟਕ ਵਿੱਚ ਜੈਵਿਕ ਉਤਪਾਦ ਵੇਚਣ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਇਸ ਲਈ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਉਤਪਾਦ ਵੇਚਣ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀ ਆਉਂਦੀ ਸੀ|ਸੋ ਉਹ ਆਪਣਾ ਉਤਪਾਦ ਆਮ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਵੇਚਦੇ ਸਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਸਾਰਾ ਉਦੇਸ਼ ਹੀ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਸੀ|<br><br>ਸਹਿਜਾ

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