Quantcast
Channel: Front Page Feed
Viewing all 2534 articles
Browse latest View live

सदी का सबसे बड़ा पलायन

0
0

.गंगाराम के नाम में गंगा और राम दोनों हैं लेकिन उनका भरोसा इन दोनों से ही उठ चुका है। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के तिवारीटोला निवासी गंगाराम अपने परिवार के अकेले सदस्य हैं जो अपने पुस्तैनी घर में रह रहे हैं।

महज एक दशक पहले तक उनके संयुक्त परिवार में सत्तर लोग रहते थे, सामूहिक खेती होती, दिन में भले ही लोग अपने कामों में व्यस्त रहें लेकिन रात का खाना साथ में खाने का रिवाज था। आसपास के कई गाँवों में उनकी खुशहाली की चर्चा होती। पहले कुएँ में मोटर लटकाकर सिंचाई की जाती थी फिर बोरिंग यानी जमीन में पाइप डालकर सीधे पानी खींचा जाने लगा और कुआँ देखते-ही-देखते पिछड़ेपन की निशानी हो गया।

read more


पेयजल में नाइट्रेट का कहर भी घातक

0
0
Author: 
डॉ डीडी ओझा

.प्रत्येक जीव की सभी शारीरिक क्रियाएँ जलाधारित होने के कारण जल को जीवन की संज्ञा दी गई है। जल के दोनों रूप हैं, यथा-रोगकारक और रोगशामक। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार शरीर के अनेक रोग जल की गुणवत्ता में कमी के कारण होते हैं, तो आयुर्वेद के अनुसार शरीर में कई रोगों का शामक भी जल ही होता है। अतः जल की गुणवत्ता का हमारे स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है।

जल की गुणवत्ता निर्धारण में इसके भौतिक रासायनिक एवं जैविक गुणों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वस्तुतः जल में कोई स्वाद एवं गंध नहीं होती है। परन्तु स्थान एवं भूमि के अनुसार उसमें जो खनिज लवण एवं क्षार आदि मिल जाते हैं, वे ही जल का स्वाद उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार जल में गंध भी कुछ वनस्पतियों तथा अन्य पदार्थों के जलस्रोतों में मिल जाने के कारण ही होती है।

read more

टीकमगढ़ जिले के तालाब एवं जल प्रबन्धन व्यवस्था

0
0
Author: 
डॉ. काशी प्रसाद त्रिपाठी
Source: 
‘बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबन्धन का इतिहास,’ 2011 कॉपीराइट काशी प्रसाद त्रिपाठी

.प्राचीन काल में चन्देलों एवं बुन्देलों के राजत्वकाल के पहले समूचा बुन्देलखण्ड क्षेत्र, विन्ध्यपर्वत की श्रेणियों, पहाड़ियों एवं टौरियों वाला पथरीला, कंकरीला वनाच्छादित भूभाग था। टौरियों, पहाड़ियों के होने से दक्षिणी बुन्देलखण्ड विशेषकर ढालू, ऊँचा-नीचा पथरीला, मुरमीला राँकड़ भूभाग रहा है।

टौरियों, पहाड़ियों एवं पठारों के बीच की पटारों, वादियों, घाटियों और खन्दकों में से बरसाती धरातलीय जल प्रवाह से निर्मित नाले-नालियाँ थीं। जो पथरीली पठारी भूमि होने से गहरी कम, चौड़ी छिछली-सी मात्र चौमासे (वर्षाकाल) में ही जलमय रहती थीं।

read more

खुलने लगा है गंगा का बाजार

0
0

.डाक द्वारा गंगाजल आपके द्वार पर भेजने की ‘सुविधा’ सरकार शुरू करने जा रही है और इस सुविधा की आड़ में गंगा को बेचने की पहली कोशिश को साकार किया जा रहा है। साधु सन्तों ने इस सरकारी कोशिश के खिलाफ बिगुल बजा दिया है जिससे ये भ्रम पैदा होता है कि गंगा को अर्थ स्वरूप में बदले जाने की सबसे ज्यादा चिन्ता इन्हें ही है।

बहरहाल जो डाक घर चिट्ठी ठीक से नहीं पहुँचा सकते वे आपके घर गंगाजल पहुँचाएँगे इसमें सन्देह है। एक काँच की बोतल जो विशेष तौर पर डाक विभाग गंगाजल के लिये डिजाइन करवाएगा (प्लास्टिक की बोतल या पानी का पाउच जैसी पैकिंग से पर्यावरणविदों को एकदम नया कष्ट होगा।) इस बोतल के खर्चे के अलावा गंगाजल स्टोरेज का खर्चा आदि मिलाकर 251 रुपए से कम में गंगाजल आपके घर तक नहीं पहुँचेगा।

read more

ये तो गंगा के व्यापारी निकले

0
0

.उन्होंने कहा- “मैं आया नहीं हूँ, माँ गंगा ने बुलाया है।’’लोगों ने समझा कि वह गंगा की सेवा करेंगे। बनारसी बाबू लोगों ने उन्हें बनारस का घाट दे दिया; शेष ने देश का राज-पाट दे दिया। उन्होंने ‘नमामि गंगे’ कहा; जल मंत्रालय के साथ ‘गंगा पुनर्जीवन’ शब्द जोड़ा; एक गेरुआ वस्त्र धारिणी को गंगा की मंत्री बनाया। पाँच साल के लिये 20 हजार करोड़ रुपए का बजट तय किया। अनिवासी भारतीयों से आह्वान किया। नमामि गंगे कोष बनाया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की स्थापना की।

राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का पुनर्गठन किया। बनारस के अस्सी घाट पर उन्होंने स्वयं श्रमदान किया। गंगा ने समझा कि यह उसके प्रति भारतीय संस्कृति की पोषक पार्टी के प्रतिनिधि और देश के प्रधानमंत्री की आस्था है।

read more

कैसे होता है आगमन मनमौजी मानसून का

0
0
Author: 
अनामिका प्रकाश श्रीवास्तव
Source: 
विज्ञान प्रगति, जुलाई 2016

.मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार मानसून ऐसी सामयिक हवाएँ हैं जिनकी दिशाओं में प्रत्येक वर्ष दो बार उलट-पटल होती है। उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम में मानसूनी हवाओं की दिशाओं में बदलाव वैज्ञानिक भाषा में कोरिओलिक बल के चलते होता है। यह बल गतिशील पिंडों पर असर डालता है।

हमारी पृथ्वी भी गतिशील पिंड है जिसकी दो गतियाँ हैं- दैनिक गति और वार्षिक गति। नतीजन, उत्तरी गोलार्द्ध में मानसूनी हवाएँ दाईं ओर मुड़ जाती हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध में बाईं ओर। वायुगति के इस परिवर्तन की खोज फेरल नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसीलिये इस नियम को ‘फेरल का नियम’ कहते हैं।

read more

नलगोंडा ने सीख लिया है फ्लोराइड के साथ जीना

0
0

फ्लोराइड से बुरी तरह प्रभावित नलगोंडा में सरकार सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने में सफल रही है, लेकिन स्थानीय भूजल में फ्लोराइड का स्तर इतना अधिक है कि उससे पूरी निजात सम्भव नहीं। खेती के लिये भी यह चिन्ता का विषय बना हुआ है।

.केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक नव-निर्मित राज्य तेलंगाना की करीब 1200 बस्तियाँ फ्लोरोसिस की समस्या से ग्रस्त हैं। इसमें भी सबसे बुरी स्थिति नलगोंडा जिले की है।

जिले के 17 मण्डल फ्लोराइड की अधिकता के कारण फ्लोरोसिस से बुरी तरह जूझ रहे हैं। फ्लोरोसिस वह स्थिति है जो शरीर में फ्लोराइड की अधिकता से उत्पन्न होती है। यह फ्लोराइड पेयजल तथा अन्य माध्यमों से हमारे शरीर में जाता है। इसकी वजह से लोगों के शरीर में अस्थि विकृतियाँ तथा अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं।

read more

दवा भी है पानी

0
0
Author: 
डॉ. राजीव रस्तोगी
Source: 
कादम्बिनी, मई 2016
पानी सिर्फ पानी नहीं है। वह एक औषधि भी है। इसीलिये उसे अमृत कहा जाता है। प्राकृतिक जल-चिकित्सा पानी के इसी गुण पर आधारित है। इसमें पानी का इस्तेमाल कैसे किया जाये इस पर जोर दिया जाता है ताकि वह औषधीय रूप में रोगों से हमारी रक्षा करे। पानी का ठीक से उपयोग इसी विचार का हिस्सा है।


.हवा के बाद पानी का हमारे जीवन में दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान है। बिना हवा और पानी के हम जीवित नहीं रह सकते हैं। हमारे शरीर में भी पानी की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत है। हमारा शरीर और यह ब्रम्हांड पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश से बना है अर्थात हमारे जीवन में जल का महत्त्वपूर्ण स्थान माना जाता है।

सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम अनेकानेक रूपों में जल का प्रयोग करते हैं, चाहे वह बाहरी रूप से हो या आन्तरिक रूप से। दैनिक स्नान से लेकर पानी पीने तक हम हमेशा जल के सम्पर्क में रहते हैं, पर क्या कभी आपने सोचा है कि यही जल हमारे लिये ‘संजीवनी’ का काम कर सकता है? हमारे रोगों के निवारण में हमारी मदद कर सकता है और इतना ही नहीं कई रोगों से हमारा बचाव भी कर सकता है।

read more


हानिकारक रसायन - जवाबदेही समझे सरकार

0
0

.पोटेशियम ब्रोमेट एक ऐसा रसायन है, जिसके कारण इंसान में पेट का कैंसर, गुर्दे में ट्युमर, थायोराइड सम्बन्धी असन्तुलन तथा तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी बीमारियाँ होने की सम्भावना रहती है। इसे कैंसर सम्भावित रसायनों की 2बी श्रेणी में रखा गया है। पोटेशियम आयोडेट से थायोरायड सम्बन्धी असन्तुलन पैदा होने का खतरा होता है; बावजूद इन ज्ञात खतरों के भारत में पोटेशियम ब्रोमेट का इस्तेमाल बेकरी उत्पादों को ज्यादा मुलायम, ताजा और दिखने में बेहतर बनाने के लिये किया जाता रहा है।

भारतीय निर्माता कम्पनियाँ अब तक तर्क देती रहीं कि अन्तिम तैयार बेकरी उत्पाद में पोटेशियम ब्रोमेट के अंश मौजूद नहीं होते। नई दिल्ली स्थित सीएसई नामक एक गैर सरकारी संस्था ने इस तर्क का झूठ सार्वजनिक कर दिया। उसने बाजार से बेकिंग उत्पादों के तैयार नमूने उठाए; उनकी जाँच की और बताया कि 84 प्रतिशत नमूनों में पोटेशियम ब्रोमेट और पोटेशियम आयोडेट मौजूद हैं।

read more

संकट में ग्लेशियर और तबाही का कारण बनती झीलें

0
0

.जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया पर मँडराते संकट को नकारा नहीं जा सकता। यह भी सच है कि आज ग्लेशियरों के अस्तित्व पर जलवायु परिवर्तन के चलते हो रही तापमान में बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप भयावह संकट मँडरा रहा है। नतीजन वे पिघल रहे हैं। सबसे बड़ी दुखदाई और खतरनाक बात यह है कि उनके पिघलने की रफ्तार दिनोंदिन तेजी से बढ़ती ही जा रही है।

वैज्ञानिक इसके बारे में दशकों से चेता रहे हैं। इससे भी बड़ा संकट ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों से है जो कभी भी भारी तबाही का कारण बन सकती हैं। उत्तराखण्ड में साल 2013 में केदारनाथ में आई भीषण प्राकृतिक आपदा का मुख्य कारण भी केदारनाथ के ऊपर स्थित चौराबाड़ी ग्लेशियर झील का फटना ही रहा था।

read more

प्रलय की चेतावनी है टूटते हिमखण्ड

0
0

.गोमुख के विशाल हिमखण्ड का एक हिस्सा टूटकर हाल ही में भागीरथी, यानी गंगा नदी के उद्गम स्थल पर गिरा था। हिमालय के हिमखण्डों का इस तरह से टूटना प्रकृति का अशुभ संकेत है। इन टुकड़ों को गोमुख से 18 किलोमीटर दूर गंगोत्री के भागीरथी के तेज प्रवाह में बहते देखा गया।

गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के वनाधिकारी ने इस हिमखण्ड के टुकड़ों के चित्र लिये और टूटने की पुष्टि की। ग्लेशियर वैज्ञानिक इस घटना की पृष्ठभूमि में कम बर्फबारी होना बता रहे हैं। इस कम बर्फबारी की वजह धरती का बढ़ता तापमान बताया जा रहा है।

read more

प्राकृतिक आपदा के लिये मानवजनित कारनामें

0
0

.ऐसा लगता है कि उत्तराखण्ड और आपदा का चोली दामन का साथ हो गया है। साल 2010 से लगातार बरसात आरम्भ होने से ही आपदाओं का डर लोगों को सदमें में डाल देता है। अभी मानसून पूर्ण रूप से आया ही नहीं था कि राज्य के पहाड़ी जिले पिथौरागढ़, चम्पावत, चमोली, उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, अल्मोड़ा एवं देहरादून व नैनीताल जिलों के पहाड़ी क्षेत्र आपदा की चपेट में आ गए।

आश्चर्य इस बात का है कि हमेशा की तरह इस दौरान भी पहाड़ी जिलों के सीमान्त क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। बताया जा रहा है कि जो क्षेत्र राज्य का चीन और तिब्बत सीमाओं से लगा है उन क्षेत्रों में आपदाओं की घटनाएँ अधिकांश हो रही हैं।

read more

पानी दूर हुआ या हम

0
0

.ग्लेशियर पिघले। नदियाँ सिकुड़ी। आब के कटोरे सूखे। भूजल स्तर तल, वितल, सुतल से नीचे गिरकर पाताल तक पहुँच गया। मानसून बरसेगा ही बरसेगा; अब यह गारंटी भी मौसम के हाथ से निकल गई है।

इस बार अधिक वर्षा की सम्भावना बताई गई है; बावजूद इसके हमारे कई इलाके मानसून की पारम्परिक तिथि निकल जाने के बाद भी सूने पड़े आकाश की ओर निहार रहे हैं। हम क्या करें? वैश्विक तापमान वृद्धि को कोसें या सोचें कि दोष हमारे स्थानीय विचार-व्यवहार का भी है ? दृष्टि साफ करने के लिये यह पड़ताल भी जरूरी है कि पानी, हमसे दूर हुआ या फिर पानी से दूरी बनाने के हम खुद दोषी हैं?

read more

अंजुरी में उतारना बादलों को

0
0
Author: 
अरुणेश नीरन
Source: 
राष्ट्रीय सहारा, 10 जुलाई, 2016

.कृष्ण जब जन्मे तब रात अन्धेरी थी लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अन्धेरा उनसे मिल कर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं।

काले मेघों की उज्जवल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य, संस्कृति और जीवन में बार-बार छलका। जब-जब हम अनुर्वर हुए-वे बार-बार बरस कर हमें उर्वर बनाते रहे। राष्ट्रजीवन की पुण्य सलिलाओं का अमृत कुम्भ भरते रहे। मेघों की वर्षा में निसर्ग तो उतरता ही था, पूरा-का-पूरा सर्ग भी उसमें भीग कर पुनर्नवा होता रहता था।

read more

उमा दीदी द्वारा गोद लिया हुआ गाँव अनाथ हो गया है

0
0
Author: 
जीशान अख्तर

.ललितपुर : गाँव सामान्य नहीं है, लेकिन जब फायर ब्रांड जैसे कई नामों से जानी-पहचानी जाने वाली केन्द्रीय मंत्री उमा भारती गाँव को गोद ले लेती हैं तो यह गाँव कुछ खास हो जाता है। उमा भारती देश की बड़ी नेताओं में शुमार हैं। वीआईपी हैं। इसलिये गाँव को उसी नजर से देखने का ख्याल आना भी स्वाभाविक है। उमा के गोद लेने से असामान्य हुआ ये गाँव पहली, दूसरी, तीसरी हर नजर से देखने की कोशिश करते हैं, लेकिन गाँव सामान्य ही लगता है। कुछ असामान्य नजर नहीं आता। उमा के गोद लेने के बाद गाँव में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं।

केन्द्रीय संसाधन मंत्री व झाँसी, ललितपुर क्षेत्र की सांसद उमा भारती ने ललितपुर के पवा गाँव को गोद लेने की घोषणा की तो लोगों को लगा कि उनके गाँव की तस्वीर अब बदल जाएगी। लोगों को उम्मीद थी कि गाँव में विकास होगा।

read more


जीर्णोंद्धार की बाट जोह रही आदिगंगा

0
0
Author: 
उमेश कुमार राय

.पश्चिम बंगाल के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी आदिगंगा तिल-तिल अपना अस्तित्व खो रही है लेकिन इसे बचाने के लिए न तो केंद्र और न ही पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से कोई कारगर कदम उठाया जा रहा है।

आदिगंगा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना गंगा का। गोमुखी से निकलने वाली गंगा जब पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है तो उसे हुगली कहा जाता है। इसी हुगली नदी की एक शाखा को आदिगंगा कहा जाता है। हेस्टिंग्स के निकट से यह शाखा निकली है जो दक्षिण कोलकाता के कालीघाट, टालीगंज, कूदघाट, बांसद्रोणी, नाकतल्ला, न्यू गरिया से होते हुए विद्याधरी नदी में मिल जाती है।

read more

प्रकृति के करीब है पहाड़ का लोक पर्व हरेला

0
0
Author: 
चंद्रशेखर तिवारी

.“तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिलेे आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा जमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो...” - पहाड़ के लोक पर्व हरेेला पर जब सयानी और अन्य महिलाएँ घर-परिवार के सदस्यों को हरेला शिरोधार्य कराती हैं तो उनके मुख से आशीष की यह पंक्तियाँ बरबस उमड़ पड़ती हैं।

घर परिवार के सदस्य से लेकर गाँव समाज के खुशहाली के निमित्त की गई इस मंगल कामना में हमें जहाँ एक ओर ‘जीवेद् शरद शतंम्’ की अवधारणा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर इस कामना में प्रकृति व मानव के सह अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण की दिशा में उन्मुख एक समृद्ध विचारधारा भी साफ तौर पर परिलक्षित होती दिखाई देती है।

read more

बावड़ियों का शहर

0
0
Source: 
‘मध्य प्रदेश में जल संरक्षण की परम्परा’ किताब से साभार

इन्दौर का परम्परागत जल संरक्षण लोक रुचि का विषय रहा है। कभी यहाँ बीच शहर से दो सुन्दर नदियाँ बहती थीं। यह शहर चारों ओर से तालाबों से घिरा था। यहाँ बावड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसे बावड़ियों का शहर कहा जाता था। यहाँ घर-घर में कुण्डियाँ भी थीं। ऐसे शहर में परम्परागत जल प्रबन्धन की एक झलक।

.मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और देश में ‘मिनी बाॅम्बे’ के रूप में ख्यात शहर इंदौर की तुलना- यहाँ के बाशिंदे किसी समय खूबसूरत शहर पेरिस से किया करते थे।

वजह थी..... जिस तरह पेरिस के बीचों-बीच शहर से नदी बहती है, उसी तरह यहाँ भी शहर के बीच में ‘नदियाँ’ निकलती थीं...!

......शहर के आस-पास और बीच में भी तालाब आबाद रहते रहे हैं।

.....कल्पना कीजिए- इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी से भरी नालियाँ हुआ करती थीं.... जो लालबाग, कागदीपुरा व राजवाड़ा तक आती थीं......! जिसे पानी चाहिए- वह घर के पास से बह रही नाली से ले लें.....!!

read more

जल समाधि का मन बनाकर गया था - किशोर कोडवानी

0
0

.सवाल अकेले पीपल्याहाना तालाब का भी नहीं है, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले इन्दौर शहर के हवा और पानी पर ही संकट खड़ा हो गया है। यही हालात रहे तो 2021 के बाद शहर में साफ हवा और शुद्ध पानी के लिये भी लोग तरसने लगेंगे। हालात यहाँ तक बिगड़ सकते हैं कि इन्दौर के लोगों को हवा और पानी के लिये पलायन करना पड़े।

यह दावा प्रकृति के जानकार विशेषज्ञ कर रहे हैं। हम किस तरह के विकास की बातें कर रहे हैं, यह कौन सा विकास है। हम किस दिशा में जा रहे हैं। क्या हम सामूहिक आत्महत्याओं की दिशा में बढ़ रहे हैं।

read more

बदरंग आगरा

0
0
Author: 
उमेश कुमार राय

लगभग 4 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला उत्तर प्रदेश का आगरा चार जिलों धौलपुर, मथुरा, फिरोजाबाद और भरतपुर से घिरा हुआ है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ की आबादी लगभग 44 लाख है। यहाँ मुख्यतः ब्रजभाषा बोली जाती है। आगरा विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के साथ ही दूसरी तारीखी इमारतों के लिये मशहूर है लेकिन फ्लोराइड का कहर इसकी लोकप्रियता में सेंध लगा रहा है। हाल के कई सर्वेक्षणों में आगरा में फ्लोराइड के कहर पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त की गई है। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) आगरा में फ्लोराइड के असर को लेकर विस्तृत कवरेज देने जा रहा है जिसमें हर पहलू पर रोशनी डाली जाएगी। पेश है इस कवरेज का पहला भाग...

.उत्तर प्रदेश के आगरा का जिक्र आता है तो सबसे पहले सफेद मार्बल से बने 384 वर्ष पुराने ताजमहल की तस्वीर जेहन में उभरती है। रोज हजारों लोग प्रेम की निशानी इस ताजमहल का दीदार करने आते हैं।

मुगल वंश और लोधी वंश के कई शासकों ने आगरा को अपना घर बनाया। कहा जाता है कि आधुनिक आगरा की स्थापना लोधी वंश के शासक सिकंदर लोधी ने सोलहवीं शताब्दी में की थी। वैसे आगरा ताजमहल के अलावा दूसरी ऐतिहासिक इमारतों के लिये भी जाना जाता है। यहाँ के महलों, मकबरों और मस्जिदों की नक्काशी आकर्षण का केन्द्र है।

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया के अनुसार अकबर के दरबारी इतिहासकार अबु फजल ने अपनी किताब में लिखा था कि यहाँ 5000 से अधिक बंगाली और गुजराती स्थापत्य शैली की बिल्डिंगें थीं लेकिन अधिकांश बिल्डिंगों को जहाँगीर ने तोड़ दिया और सफेद मार्बल से महल बनवा दिये।

read more

Viewing all 2534 articles
Browse latest View live




Latest Images