Quantcast
Channel: Front Page Feed
Viewing all 2534 articles
Browse latest View live

मानव अपशिष्ट : कचरा नहीं, उपयोगी भी

$
0
0
Author: 
सुरेश रोहिल्ला, भितुष लुथरा, शान्तनु कुमार पाढी, अनिल यादव, जिज्ञासा वतवानी, राहुल एस. वर्मा
Source: 
डाउन टू अर्थ, 15 अप्रैल 2016

.देश की राजधानी दिल्ली के बहुतेरे मकान ऐसे हैं जिनके सेप्टिक टैंक ड्रेनेज से जुड़े हुए नहीं है। इन मकानों से निकलने वाला मानव अपशिष्ट (मल) कहाँ जाता है इसकी फिक्र किसी को नहीं है और भला हो भी क्यों। मल कहाँ जाता है यह जानकर लोग क्या करेंगे लेकिन अब वक्त आ गया है इसकी पड़ताल होनी चाहिए क्योंकि कहीं-न-कहीं यह यहाँ के लोगों को ही प्रभावित कर रहा है।

वैसे यहाँ के लोग भले ही न जानते हों लेकिन मनोज कुमार भली प्रकार इससे अवगत हैं। मनोज कुमार इसलिये अवगत हैं क्योंकि वे इन सेप्टिंग टैकों में भरे मल को बाहर निकालकर दूसरे जगह फेंकने के काम में लगे हुए हैं।

read more


अपनी दुर्बलता और नमामि गंगे को कोसते निराश स्वामी सानंद

$
0
0

स्वामी सानंद उत्तर संवाद


.21वें कथन के साथ ‘स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला’ सम्पन्न हुई, तो अलग-अलग सवाल कई के मन में उठे; गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के आदरणीय रमेश भाई, यमुना जिये अभियान के श्री मनोज मिश्र, नदियों के हालात से निराश डॉ. ओंकार मित्तल व कई अन्य समेत स्वयं मेरे मन में भी। यह स्पष्ट है कि स्वामी जी ने पुरी के शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी के आश्वासन पर अपना पूर्व अनशन सम्पन्न किया था।

स्वामी श्री निश्चलानंद जी ने स्वामी सानंद को आश्वस्त किया था कि यदि भाजपा सत्ता में आई, तो वह गंगा के पक्ष में निर्णय करेगी। अनशन सम्पन्न करते हुए स्वामी सानंद ने कहा था कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद तीन महीने प्रतीक्षा करुँगा। यदि तीन महीने में प्रधानमंत्री ने अनुकूल घोषणा नहीं की, तो अपने निर्णय पर पुनः विचार करुँगा।

read more

बूँद बूँद से घड़ा भरना होगा

$
0
0

.पानी का संकट मौसमी नहीं, स्थायी हो गया है। कुछ समय पहले तक सतपुड़ा अंचल में पानी की बहुत समस्या नहीं थी। कुएँ, तालाब, बावड़ियाँ, झरने जैसे परम्परागत स्रोत सदानीरा थे। लेकिन अब मैदानी क्षेत्र में पानी हर साल नीचे चला जा रहा है और यहाँ के परम्परागत स्रोत सूख गए हैं।

अगर हम सतपुड़ा अंचल को दो भागों में विभक्त करें तो समझने में सुविधा होगी। एक पहाड़ी और जंगल वाला इलाका और दूसरा मैदानी क्षेत्र। पहाड़ी क्षेत्र जहाँ ज्यादातर बारिश पर आधारित खेती होती है। यानी असिंचित। और दूसरा मैदानी क्षेत्र जहाँ सिंचाई के लिये नलकूप और तवा की नहरें हैं। मैदानी क्षेत्र में पानी का संकट ज्यादा गहरा रहा है।

read more

कैसे रुके बाढ़

$
0
0
Author: 
उमेश चतुर्वेदी

जल भोजन है और अग्नि भोजन का भक्षक है!
अग्नि जल में और जल अग्नि में विद्यमान है।


.तैत्तरीय उपनिषद की इन पंक्तियों का अर्थ समझने के लिये हमें 2008 में बिहार की कोसी में आई बाढ़ और जुलाई 2005 में मुम्बई में हुई मूसलधार बारिश के बाद मची तबाही को देखना होगा।

पानी शीतलता का प्रतीक होता है, लेकिन हाल के दिनों में हुई बाढ़ की तबाही की ये घटनाएँ हमारी स्मृतियों में अब भी चुभन पैदा कर देती है। इस चुभन को इस साल भी महसूस किया जा रहा है, जब देश के अधिकांश हिस्से अब भी मानसूनी बारिश की बाट जोह रहे हैं, असम के तेजपुर जिले के कुछ हिस्से बाढ़ जून की तपती दोपहरी में डूबने के लिये मजबूर हो गए।

read more

हाईटेक शहरों में बारिश का कहर

$
0
0

.गुरूग्राम बनाम गुड़गाँव समेत देश के दिल्ली-मुम्बई बंगलुरु और हैदराबाद जैसे हाईटेक शहर बारिश की चपेट में हैं। आफत की बारिश के चलते डूब में आने वाले इन शहरों ने संकेत दिया है कि तकनीकी रूप से स्मार्ट सिटी बनाने से पहले शहरों में वर्षाजल के निकासी का समुचित ढाँचा खड़ा करने की जरूरत है। लेकिन हमारे नीति नियंता हैं कि इन संकेतों को उत्तराखण्ड में देवभूमि की तबाही तथा कश्मीर एवं चेन्नई में आ चुकी प्रलंयकारी बाढ़ के बावजूद नजरअन्दाज कर रहे हैं।

बाढ़ की यह स्थिति शहरों में ही नहीं है, इस त्रासदी को असम व बिहार जैसे वे राज्य भी झेल रहे हैं, जहाँ बाढ़ दशकों से आफत का पानी लाकर हजारों ग्रामों को डुबो देती है। इस लिहाज से शहरों और ग्रामों को कथित रूप से स्मार्ट व आदर्श बनाने से पहले इनमें ढाँचागत सुधार के साथ ऐसे उपाय करने की जरूरत है, जिससे ग्रामों से पलायन रुके और शहरों पर आबादी का दबाव न बढ़े?

read more

जहाँ न पहुँची सरकार, वहाँ पहुँची वसुंधरा

$
0
0
Author: 
उमेश कुमार राय

.वसुंधरा दाश प्राइम मिनिस्टर रूरल डेवलपमेंट फेलोशिप (अध्येतावृत्ति) के तहत मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के गाँवों में काम कर रही हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलोशिप तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन सरकार के समय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की पहल पर शुरू हुई थी। सम्प्रति 226 युवा इस फेलोशिप के तहत 18 राज्यों के 111 जिलों में काम कर रहे हैं। ये लोग स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर काम करते हैं। वसुंधरा दाश वर्ष 2014 से काम कर रही हैं।

छिंदवाड़ा में काम करते हुए उन्होंने कई ऐसे गाँवों के बारे में पता लगाया जो फ्लोराइड से प्रभावित हैं लेकिन प्रशासन को इसकी खबर नहीं। इन गाँवों में वे स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर कई तरह के काम कर रही हैं।

read more

गंगा के सवाल पर निर्णायक लड़ाई

$
0
0

.भले ही 07 जुलाई 2016 को ‘मिशन फॉर क्लिन गंगा’ कार्य योजना का उद्घाटन केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती, केन्द्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी हरिद्वार पहुँचकर कर गए हों मगर गंगा की अविरलता और सांस्कृतिक, आध्यात्मिक के सवाल आज भी खड़े हैं। मोदी सरकार की ‘गंगा मिशन’ कार्य योजना कब परवान चढ़ेगी यह तो समय ही बता पाएगा परन्तु वर्तमान का ‘विकास मॉडल’ गंगा की स्वच्छता और अविरलता को लेकर नए सिरे से सवाल खड़ा कर रहा है।

सवाल यह है कि मौजूदा विकास के मॉडल में क्या गंगा अविरल बहेगी? क्या गंगा का पानी स्वच्छ हो जाएगा? यहाँ आम राय यह बताती है कि यदि गंगा अविरल बहेगी तो गंगा का पानी स्वतः ही स्वच्छ हो जाएगा।

read more

बाढ़ से तबाह चीन

$
0
0

.‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात विश्व बन्धुत्व की भारतीय अवधारणा प्राकृतिक सम्पदा के सीमित उपभोग के साथ वैष्विक सामुदायिक हितों से जुड़ी थी, लेकिन भूमण्डलीकरण बनाम आर्थिक उदारवाद की धारणा से उपजी ‘विश्व-ग्राम’ की कथित अवधारणा ने इंसान को सहुलियत की जिन्दगी देने से कहीं ज्यादा, प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा देने का काम किया है।

अमेरिकी पूँजी से निकली यह अवधारणा औद्योगिक-प्रौद्योगिक विस्तार के बहाने ऐसे हितों की नीतिगत पोषक बन गई है, जिसमें प्रकृति का व्यावसायिक दोहन वैयक्तिक व इन्द्रिय सुखों के क्षणिक भोग-विलास में अन्तर्निहित हो गया है। इसके दुष्परिणाम भारत और चीन जैसे देशों में मानसूनी प्राकृतिक आपदा के रूप में स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।

read more


अस्तित्व बचाने की जंग लड़ता जनकल्याण तालाब

$
0
0
Author: 
प्रताप बहादुर सिंह
Source: 
पूर्वापोस्ट, 2-8 अगस्त 2016

.वाराणसी। कभी कई बीघे में फैले इस तालाब का रकबा आज सिमटकर लगभग 10 बिस्वा में ही शेष रह गया है। सरकारी दस्तावेजों में कहने को तो यह जगह आज भी जनकल्याण तालाब के नाम से दर्ज है जिसमें इसका रकबा 23 बिस्वा प्रदर्शित होता है। लेकिन वर्तमान में ना तो वहाँ कोई तालाब जैसी जगह दिखलाई पड़ती है और ना ही आसपास कही पानी की एक बूँद।

वे तालाब जो कभी लोगों के पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे, आज खुद अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करते दिख रहे हैं। वाराणसी में कभी सैकड़ों की संख्या में पोखरे, तालाब, कुण्ड, जलाशय और बावलियाँ हुआ करती थीं लेकिन वर्तमान में ज्यादातर या तो अवैध अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी हैं या फिर भू-माफियाओं द्वारा पाट दी गई हैं।

read more

मैले पानी से मछुआरों का ऋषि कर्म

$
0
0
Author: 
अमरनाथ

.पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकला विष पीने वाले भगवान शिव तरह-तरह के प्राणियों के साथ शान्त वातावरण में रहना पसन्द करते हैं। भोलेनाथ का अगर कैलाश या काशी या काठमांडु में आने वाले भक्तों और पर्यटकों से जी उकता जाये, तो मुदियाली उनके रहने योग्य जगह है।

यह पशुपतिनाथ का सजीव मन्दिर है, भले उनकी मूर्ति यहाँ हो या न हो। - ये हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘जल-थल-मल’ में लेखक सोपान जोशी के शब्द हैं। विशाल कलेवर की पुस्तक में मुदियाली सहकारी समिति से सम्बन्धित उद्धरण को मामूली जोड़-घटाव के साथ यहाँ दिया जा रहा है। मकसद इसे रेखांकित करना है कि देश भर के लिये समस्या बनी शहरी मलजल और औद्योगिक कचरे को निपटाने में यह कुछ मछुआरों द्वारा प्रस्तुत उदाहरण अनुकरणीय हो सकता है।

read more

हरित न्याय का भारतीय नायक

$
0
0

.मैंने उनका बैंक बैलेंस नहीं देखा। न मैंने उनकी बहस सुनी है और न अदालती मामलों में जीत-हार की सूची देखी है। मैंने सिर्फ उनकी सादगी और पर्यावरण के प्रति समर्पण देखा है। मैंने उन्हें कई सभाओं में आकर अक्सर पीछे की कुर्सियों में बैठते हुए देखा है।

पैंट से बाहर लटकती सादी कमीज, हल्की सफेद दाढ़ी, चेहरे पर शान्ति, बिन बिजली बैठकर बात करने में न कोई इनकार और न चेहरे पर खीझ। यूँ वह मितभाषी हैं, लेकिन पर्यावरण पर बात कीजिए, तो उनके पास शब्द-ही-शब्द हैं; चिन्ताएँ हैं; समाधान हैं। 69 की उम्र में भी पर्यावरण को बचाने के लिये कुछ कर गुजरने की बेचैनी है और जीत का भरोसा है। वह प्रतीक हैं कि कोई एक व्यक्ति भी चाहे, तो अपने आस-पास की दुनिया में बेहतरी पैदा कर सकता है।

read more

संकट में ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स

$
0
0
Author: 
उमेश कुमार राय

.तीन सौ साल से भी पुराने शहर कोलकाता के पूर्वी क्षेत्र में विशाल आर्द्रभूमि है। इसे ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स (पूर्व कोलकाता आर्द्रभूमि) कहा जाता है। इस आर्द्रभूमि के पीछे गगनचुम्बी ईमारतों की शृंखला देखी जा सकती है।

इस वेटलैंड्स की खासियत यह है कि इसमें शहर से निकलने वाले गन्दे पानी का परिशोधन प्राकृतिक तरीके से होता है लेकिन इन दिनों यह आर्द्रभूमि संकट में है। पता चला है कि इस जलमय भूखण्ड को बचाए रखने के लिये जितनी मात्रा में गन्दा पानी डाला जाना चाहिए उतना नहीं डाला जा रहा है।

read more

केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना क्या वाकई उपयोगी है

$
0
0

.कृत्रिम रूप से जीवनदायी नर्मदा और मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदियों को जोड़ने के बाद केन और बेतवा नदियों को जोड़ने की तैयारी में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारें हैं। किन्तु इस परियोजना में वन्य जीव समिति बड़ी बाधा के रूप में पेश तो आ ही रही है, यह आशंका भी जताई जा रही है कि इस परियोजना पर क्रियान्वयन होता है तो नहरों एवं बाँधों के लिये जिस उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, वह नष्ट हो जाएगी।

इस भूमि पर फिलहाल जौ, बाजरा, दलहन, तिलहन, गेहूँ, मूँगफली, चना जैसी फसलें पैदा होती हैं। इन फसलों में ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती हैं। जबकि ये नदियाँ जुड़ती हैं, तो इस पूरे इलाके में धान और गन्ने की फसलें पैदा करने की उम्मीद जताई जा रही है। इन दोनों ही फसलों में पानी अत्यधिक लगता है।

read more

देहरादून में एक और गंधकयुक्त पानी का चश्मा

$
0
0

.वैसे तो हिमालय के शिवालिक क्षेत्र में गंधकयुक्त पानी के चश्मे मिलते ही है परन्तु उत्तराखण्ड की अस्थायी राजधानी देहरादून में इन चश्मों ने अपनी सुन्दरता के बरख्त लोगों को सरेआम अपनी ओर आकर्षित किया है। अब हालात इस कदर है कि ये गंधकयुक्त पानी के चश्में अपने प्राकृतिक स्वरूप खोते ही जा रहे हैं। भले देहरादून से 10 किमी के फासले पर सहस्त्रधारा जैसे पर्यटन स्थल पर्यटकों को वर्ष भर यहाँ आने के लिये आमंत्रण क्यों न देता हो पर वर्तमान में सहस्त्रधारा की ‘गंधकयुक्त जल धारा’ प्रतिवर्ष कम होती ही जा रही है।

सहस्त्रधारा के अलावा देहरादून से लगभग 30 किमी के फासले पर एक गंधकयुक्त पानी का चश्मा है जिसे स्थानीय लोग ‘घुत्तू गंधक पानी’ कहते हैं। यानि घुत्तू नामक स्थान पर यह गंधक के पानी का चश्मा इन दिनों प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहा है।

read more

बिहार के गाँवों में पानी पर टैक्स लगाने की तैयारी

$
0
0
Author: 
अमरनाथ

.पानी का प्रबन्ध पंचायत करेगी। पहली नजर में यह खबर सराहनीय लगती है। पंचायतों को पानी का प्रबन्धन करने के लिये बड़ी रकम दी जाएगी। 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्य को जो रकम मिलने वाली है, उसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के प्रबन्धन के लिये आवंटित रकम पंचायतों को दे दी जाएगी।

पानी का मसला लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के बजाय पंचायती राज विभाग को सौंप दिया जाएगा। पूरा खाका राज्य कैबिनेट को सौंप दिया गया है। लेकिन इस योजना में तालाब और कुओं का कहीं उल्लेख भी नहीं है। नलकूप, मोटरपम्प, पाइपलाइन, जलमीनार, जल-परिशोधन यंत्र इत्यादि के प्रावधान जरूर किये गए हैं। यहीं असली पेंच है जिससे खटका होता है।

read more


नदी-जोड़ हठधर्मिता : केंद्रीय मंत्री की नियामकों, मीडिया और नागरिकों को धमकी

$
0
0
Author: 
हिमांशु ठक्कर
Source: 
सिविल सोसाइटी से अनुवादित

.नदी-जोड़ परियोजना को लेकर केंद्रीय मंत्री 'उमा भारती'की हठधर्मिता की कहानी भी बहुत ही अजीब है। 'उमा भारती'किसी भी कीमत पर 'केन-बेतवा नदी-जोड़ परियोजना'को पूरा करना चाहती हैं।

7 जून 2016 को मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार केंद्रीय जल-संसाधन मंत्री 'उमा भारती'ने 'केन-बेतवा नदी-जोड़ परियोजना'में और देर होने पर भूख हड़ताल करने की धमकी दी है। ‘बिजनेस स्टैण्डर्ड’ अखबार के अनुसार उन्होंने पर्यावरणविदों द्वारा परियोजना का विरोध किये जाने को 'राष्ट्रीय अपराध'करार दिया है। यह धमकी उन सभी लोगों के लिये है जो जल-संसाधन मंत्रालय की 'केन-बेतवा नदी-जोड़ परियोजना'पर सवाल उठा रहे हैं।

read more

अपाहिज जिन्दगी

$
0
0
Author: 
मीनाक्षी अरोरा व उमेश कुमार राय

मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ ने लिखा है-
जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा (कपड़ा) है जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं।
.फैज़ ने ये पंक्तियाँ किन हालातों में लिखी होंगी पता नहीं लेकिन ऐतिहासिक शहर आगरा से लगभग 20-25 किलोमीटर दूर स्थित गाँव पचगाँय के लोगों की जिन्दगी सचमुच उस गरीब के कपड़ों जैसी है जिनमें हर पल दर्द के पैबन्द लगते हैं।

गाँव की आबादी तकरीबन 900-1000 होगी। गाँव पक्की सड़क से जुड़ा हुआ भी है। आमतौर पर पक्की सड़क से जुड़ाव विकास का पैमाना होता है। इस गाँव के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया खेती है पर कई परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं। कुल मिलाकर यहाँ समृद्ध और दरिद्र दोनों तरह के परिवार रहते हैं। इसी तथाकथित विकसित गाँव में दर्जनों लोगों को फ्लोराइड हर घड़ी दर्द दे रहा है। यह फ्लोराइड कहीं और से नहीं बल्कि जिन्दगी देने वाले पेयजल से उनके शरीर में जा रहा है।

read more

सुसवा नदी के पानी से कैंसर होने की प्रबल सम्भावना

$
0
0

.मसूरी की पहाड़ियों से निकलनी वाली सभी छोटी-बड़ी नदियाँ देहरादून से होकर गुजरती हैं। यही वजह थी कि देहरादून का मौसम वर्ष भर सुहावना ही रहता था। हालांकि यह अब बीते जमाने की बात हो चुकी है। इसलिये कि देहरादून की सभी छोटी-बड़ी नदियाँ अतिक्रमण और प्रदूषण की भेंट चढ़ गई हैं।

देहरादून के क्लेमॉनटाउन से एक छोटी नदी निकलती है सुसवा, अर्थात सुर-सुर सरिता गाकर और अपने आबाद के बहाव क्षेत्र में सुसवा घास की पैदावार करके मथुरावाला में रिस्पना और बिन्दाल नदी से संगम बनाती हुई वह 20 किमी बहकर सौंग नदी में मिल जाती है। इस अन्तराल में सुसवा नदी के पानी की महत्ता ही बेजोड़ थी।

read more

जीर्णोंद्धार की बाट जोह रही आदिगंगा

$
0
0
Author: 
उमेश कुमार राय

.पश्चिम बंगाल के इतिहास और संस्कृति से जुड़ी आदिगंगा तिल-तिल अपना अस्तित्व खो रही है लेकिन इसे बचाने के लिए न तो केंद्र और न ही पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से कोई कारगर कदम उठाया जा रहा है।

आदिगंगा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना गंगा का। गोमुखी से निकलने वाली गंगा जब पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है तो उसे हुगली कहा जाता है। इसी हुगली नदी की एक शाखा को आदिगंगा कहा जाता है। हेस्टिंग्स के निकट से यह शाखा निकली है जो दक्षिण कोलकाता के कालीघाट, टालीगंज, कूदघाट, बांसद्रोणी, नाकतल्ला, न्यू गरिया से होते हुए विद्याधरी नदी में मिल जाती है।

read more

प्रकृति के करीब है पहाड़ का लोक पर्व हरेला

$
0
0
Author: 
चंद्रशेखर तिवारी

.“तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिलेे आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा जमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो...” - पहाड़ के लोक पर्व हरेेला पर जब सयानी और अन्य महिलाएँ घर-परिवार के सदस्यों को हरेला शिरोधार्य कराती हैं तो उनके मुख से आशीष की यह पंक्तियाँ बरबस उमड़ पड़ती हैं।

घर परिवार के सदस्य से लेकर गाँव समाज के खुशहाली के निमित्त की गई इस मंगल कामना में हमें जहाँ एक ओर ‘जीवेद् शरद शतंम्’ की अवधारणा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर इस कामना में प्रकृति व मानव के सह अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण की दिशा में उन्मुख एक समृद्ध विचारधारा भी साफ तौर पर परिलक्षित होती दिखाई देती है।

read more

Viewing all 2534 articles
Browse latest View live




Latest Images