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बुन्देलखण्ड - तालाबों की खुदाई में ही खुदाई है

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Author: 
मीनाक्षी अरोरा और केसर

चरखारी का जय सागर, रौनक लोट आई हैचरखारी का जय सागर, रौनक लोट आई हैबुन्देलखण्ड में जलसंकट कोई नया नहीं है। आज के हजार साल पहले से सूखे से निपटने के लिये बुन्देलखण्ड का समाज कोशिश करता रहा है। तब के राजाओं ने पानी के संकट से जूझने के लिये बड़े-बड़े तालाब बनाए थे। जल संकट से निजात के लिये बुन्देलखण्ड में आठवीं शताब्दी के चन्देल राजाओं से लेकर 16वीं शताब्दी के बुन्देला राजाओं तक ने खूब तालाब बनाए।

चन्देल राजकाल से बुन्देला राज तक चार हजार से ज्यादा बड़े-विशाल तालाब बनाए गए। समाज भी पीछे नहीं रहा। बुन्देलखण्ड के लगभग हर गाँव में औसतन 3-5 तालाब समाज के बनाए हुए हैं। पूरे बुन्देलखण्ड में पचास हजार से ज्यादा तालाब फैले हुए हैं।

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ਜੀਨ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਫਸਲਾਂ: ਅਸੁਰੱਖਿਅਤ, ਅਣਚਾਹੀਆਂ ਅਤੇ ਅਣਲੋੜੀਂਦੀਆਂ

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Author: 
ਕੇ ਵੀ ਐਮ

ਸਮੁੱਚੇ ਖੇਤੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਤਕਨੀਕ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਇੰਨਾ ਵਿਵਾਦ ਜਾਂ ਮੁਖਰ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਜਿੰਨਾ ਕਿ ਜੈਨੇਟੀਕਲੀ ਮੋਡੀਫਾਈਡ/ਜੀਨ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਫਸਲਾਂ ਦਾ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਹ ਫਸਲਾਂ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਇੰਜ਼ਨੀਅਰਿੰਗ ਦੁਆਰਾ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ। ਇਹਦੇ ਤਹਿਤ ਇੱਕ ਜੀਵ ਦੇ ਗੁਣਸੂਤਰ ਕਿਸੇ ਦੂਸਰੇ ਜੀਵ ਅੰਦਰ ਪਾ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਪਰੰਤੂ ਇੰਨਾਂ ਕਹਿਣਾ ਹੀ ਕਾਫੀ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇਸ ਤਕਨੀਕ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਕੇ ਦੋ ਅਲਗ ਪ੍ਰਜਾਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਾਂ ਤੋਂ ਨਵੀਂ ਉਤਪਤੀ ਦੇ ਗ਼ੈਰ ਕੁਦਰਤੀ ਵਰਤਾਰੇ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਉਦਾਹਰਣ ਵਜੋਂ ਪੌਦਿਆਂ ਅੰਦਰ ਬੈਕਟੀਰੀਅਲ/ਵਾਇਰਲ/ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੇ ਗੁਣਸੂਤਰ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਪਾ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਕਿ ਚੁਣੇ ਹੋਏ ਪੌਦੇ ਅੰਦਰ ਸਬੰਧਤ ਗੁਣਸੂਤਰਾਂ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਨਜ਼ਰ ਆਉਣ।

ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਬਦਲਾਅ (ਜੀ. ਐੱਮ.) ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਇੱਕ ਤਕਨੀਕ ਵਜੋਂ ਅਪਰਿਵਰਤਨਸ਼ੀਲ, ਅਣਕਿਆਸੀ ਅਤੇ ਅਨਿਸ਼ਚਿਤਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਗੁਣਸੂਤਰ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਫਸਲਾਂ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਵਿਗਿਆਨਕ ਅਧਿਐਨ ਇਹਨਾਂ ਫਸਲਾਂ ਦੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਵਾਤਾਵਰਣ ਨੂੰ ਸੰਭਾਵਿਤ ਖ਼ਤਰਿਆਂ ਵੱਲ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਅਜਿਹੇ ਵਿੱਚ ਦੁਨੀਆਭਰ ਵਿੱਚ ਇਸ ਗੱਲ 'ਤੇ ਗੰਭੀਰ ਬਹਿਸ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿ ਆਖਿਰ ਸੰਭਾਵਿਤ ਖ਼ਤਰਿਆਂ ਵਾਲੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਫਸਲਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ਵੀ ਜਾਂ ਨਹੀਂ? ਇਸਦੇ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਤਕਨੀਕ ਰਾਹੀਂ ਖੇਤੀ ਦੀ 'ਬੁਨਿਆਦ'ਅਰਥਾਤ ਬੀਜਾਂ ਉੱਤੇ ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਕਾਬਿਜ਼ ਹੋ ਜਾਣਗੀਆਂ। ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਦਰਭ ਵਿੱਚ ਨਦੀਨਨਾਸ਼ਕ ਪ੍ਰਤਿਰੋਧੀ ਜੀ. ਐੱਮ. ਫਸਲਾਂ ਦੀ ਕਾਸ਼ਤ ਕਾਰਣ ਖੇਤੀ 'ਚੋਂ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਵੱਡ ਪੱਧਰੇ ਉਜਾੜੇ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹੈ। ਜੀ. ਐੱਮ. ਫਸਲਾਂ ਸਾਡੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸਿਹਤ, ਵਾਤਾਵਰਣੀ, ਸਮਾਜਕ-ਆਰਥਿਕ ਅਤੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰਕ ਤਾਣੇ-ਬਾਣੇ, ਖੇਤੀ, ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨੂੰ ਦਰਪੇਸ਼ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਖ਼ਤਰਿਆਂ 'ਚੋਂ ਇੱਕ ਹੈ।

ਜੀ. ਐੱਮ. ਫਸਲਾਂ ਅਸੁਰੱਖਿਅਤ ਹਨ
ਜੀ. ਐੱਮ. ਫਸਲਾਂ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਵਾਤਾਵਰਣ ਉੱਤੇ ਮਾਰੂ ਅਸਰਾਂ ਦੇ ਸਬੂਤ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਉਪਲਭਧ ਹਨ। ਅਲਾਇੰਸ ਫਾਰ ਸਸਟੇਨੇਬਲ ਐਂਡ ਹੋਲਿਸਟਿਕ ਐਗਰੀਕਲਚਰ (ਆਸ਼ਾ) ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ 'ਤੇ ਕਾਫੀ ਸਮੀਖਿਆ ਉਪਰੰਤ 400 ਤੋਂ ਜਿਆਦਾ ਖੋਜ਼ ਪੱਤਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਇਹ ਖੋਜ਼ ਪੱਤਰ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹਨ ਕਿ ਜੀ. ਐੱਮ. ਫਸਲਾਂ ਖੁੱਲੀ ਆਮਦ ਕਾਰਣ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਵਾਤਾਵਰਣ ਅਨੇਕਾਂ ਅਣਕਿਆਸੀਆਂ ਅਲਾਮਤਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰ ਜਾਣਗੇ।

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सिंधु जल-संधि को औजार बनाने की जरूरत

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सिंधु नदी बेसिनसिंधु नदी बेसिनअमानुशिक दगाबाजी की मंशा से किये गए उरी हमले के बावजूद पाकिस्तान न केवल अपनी सीमा लाँघ रहा है, बल्कि दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात उत्पन्न कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जिस तरह से आतंकी बुरहान बानी को कश्मीरी अलगाववादियों का नायक बताने की कोशिश की है।

इस सफाई ने भारत के घावों पर नमक छिड़कने का काम किया है। यह हरकत उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे जैसी है। लिहाजा भारत ने पाकिस्तान के साथ 56 साल पहले हुए सिंधु जल-समझौते को तोड़ने के जो संकेत दिये हैं।

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कावेरी विवाद : समाधान की तलाश

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कुक्करहल्ली झीलकुक्करहल्ली झीललगभग 124 सालों से कावेरी नदी के पानी के बँटवारे को लेकर दक्षिण भारत के हितग्राही राज्य खासकर तमिलनाडु और कर्नाटक बुरी तरह उलझे हुए हैं। उल्लेखनीय है, आजादी के पहले मैसूर रियासत और मद्रास प्रेसीडेंसी और अब कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी असहमति की बिसात पर भले ही आमने-सामने हैं लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु की असहमति देशव्यापी चिन्ता का कारण है।

कावेरी नदी तंत्र का पानी मुख्य रूप से खेती, पेयजल, औद्योगिक आवश्यकताओं और पनबिजली पैदा करने के काम में आता है। राज्यों के बीच पानी का बँटवारा हो चुका है पर जिस साल मानसून धोखा देता है या नदी तंत्र में पानी की कमी हो जाती है विवाद उग्र हो जाता है। मानसून की भूमिका या पानी की कमी के कारण लम्बे समय से यह विवाद अन्तहीन असहमति का शिकार है।

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नदियों से मित्रता का मिला ईनाम

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Author: 
उमेश कुमार राय

थीस इंटरनेशनल रीवर प्राइज लेते बफेलो नियाग्रा रीवर कीपर के पदाधिकारीथीस इंटरनेशनल रीवर प्राइज लेते बफेलो नियाग्रा रीवर कीपर के पदाधिकारीबफेलो नियाग्रा रीवरकीपर एक सामुदायिक संगठन है। इस संगठन को इस साल थीस इंटरनेशनल वाटरप्राइज अवार्ड दिया गया है। इंटरनेशनल रीवर फाउंडेशन की ओर से आयोजित तीन दिवसीय 19वें इंटरनेशनल रीवर सिम्पोजियम में संगठन के प्रतिनिधि जे. बर्नोस्की और सुजैन कोर्नाकी को यह पुरस्कार सौंपा गया। संगठन को यह अवार्ड नदियों और नदियों के बेसिन के संरक्षण, उनकी सुरक्षा के लिये दिया गया है। बतौर पुरस्कार 2 लाख अमेरिकी डॉलर दिया गया। पिछले वर्ष इस संगठन को नॉर्थ अमेरिकन रीवरप्राइज अवार्ड दिया गया था।

यहाँ यह भी बताते चलें कि इंटरनेशनल रीवर फाउंडेशन ने इस पुरस्कार की शुरुअात 1999 से की थी और अब तक 15 संगठनों को यह पुरस्कार मिल चुका है।

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पिथौरागढ़ के नौले-धारे, इतिहास बनने की राह पर

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Author: 
कोमल मेहता

पिथौरागढ़ में नौलापिथौरागढ़ में नौलामैदान में रहने वाले लोगों के लिये पहाड़ों में बने नौले-धारे हमेशा से ही इस प्रकार के स्थान रहे हैं जिसको ये लोग बड़े आश्चर्यजनक तरीके से निहारते हैं। आखिर नौले-धारे जो कभी पहाड़ों की जान और शान हुआ करते थे, आज अपने अन्तिम दिनों की साँस ले रहे हैं। नौले-धारों की इस दुर्दशा के लिये जितनी दोषी सरकारें रही हैं वही इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जवाबदेही भी इस दुर्दशा के लिये कम नहीं है।

मैदान की बावड़ियों में जिस प्रकार से नीचे पानी और ऊपर सीढ़ियों का निर्माण होता था ठीक उसी प्रकार से चन्द शासनकाल में बावड़ी स्थापत्यकला का शिल्पकारों ने पहाड़ों में नौलों का निर्माण किया। जो आज हम नौलों का स्वरूप देखते हैं वो आज से 300 साल पहले चंद शासनकाल में बने थे। चंद शासनकाल में पूरे कुमाऊँ क्षेत्र में इस प्रकार से नौलों का निर्माण हुआ था।

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भारत पाकिस्तान की साझा नदियों के पानी का उपयोग

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सिंधु नदी बेसिनसिंधु नदी बेसिनभारत ने उसके और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी घाटी में प्रवाहित पानी के बँटवारे की समीक्षा का निर्णय लिया है। वैसे तो कश्मीर को हो रहे नुकसान को लेकर सालों से घाटी में असन्तोष था पर हाल की घटनाओं ने मामले को मुख्य धारा में ला दिया है।

विदित हो, 19 सितम्बर, 1960 को भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रेसिडेंट जनरल अयूब खान के बीच कराची में, सिन्धु घाटी की नदियों के पानी का बँटवारा, दो भाइयों के बीच जायदाद के बँटवारे की तर्ज पर हुआ था। इस बँटवारे में पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब और भारत को रावी, व्यास और सतलज नदियाँ मिली थीं।

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तोड़ना ठीक नहीं; टोंटी कसें

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Author: 
प्रो. स्वर्ण सिंह
Source: 
राजस्थान पत्रिका, 27 सितम्बर, 2016

सिंधु नदी बेसिनसिंधु नदी बेसिनसिंधु जल-संधि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध और खटास के दौर में भी बनी रही है। उरी आतंकी हमले के बाद अब इस संधि को तोड़ने अथवा पुनर्विचार की सियासी चर्चाएँ हैं। संधि तोड़ने की सूरत में फायदे भी हैं तो नुकसान भी। ऐसे में हमारे पास वैकल्पिक उपाय भी हैं।

उरी आतंकी हमले के बाद से देश में इस बात को लेकर काफी चर्चा है कि भारत, पाकिस्तान के खिलाफ क्या कदम उठाएगा? तमाम विकल्पों में से एक सिंधु जल समझौते पर पुनर्विचार का भी सामने आया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, विदेश मंत्रालय और जलसंसाधन मंत्रालय के सचिवों के साथ इस मसले पर लम्बी बैठक भी की।

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खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते – नरेंद्र मोदी

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Source: 
राज्यसभा टीवी

करीब 56 साल पहले भारत ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को दोस्ती का पैगाम दिया था। ये पैगाम हिन्दुस्तान से पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पानी पर तैरता हुआ सरहद पार पहुँचा। उस वक्त पाकिस्तान के लोगों की भूख और प्यास बुझाने के लिये भारत ने अपने नदियों का पानी दिल खोलकर दिया।

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इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है नैनीताल की खूबसूरत झील

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Author: 
प्रयाग पाण्डे

गर्मी के मौसम में सूखी नैनीताल झीलगर्मी के मौसम में सूखी नैनीताल झीलनैनीताल। देश-दुनिया के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र नैनीताल की खूबसूरत झील इस दौरान अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। एक दौर में बारहों महीने पानी से लबालब भरे रहने वाली नैनी झील अब पर्याप्त पानी के लाले पड़ गए हैं। इस साल की बरसात बीतने को है, पर नैनी झील अभी तक पूरी तरह पानी से भरी नहीं है।

झील में मानक के मुताबिक पानी नहीं होने के चलते इस बार झील के निकास गेटों को खोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी। नैनी झील का बेहद महत्त्वपूर्ण जल संग्रहण समझे जाने वाली बरसाती झील सूखाताल इस साल सूखी ही रही। नैनीताल में रहे-बचे करीब डेढ़ दर्जन प्राकृतिक जलस्रोतों में भी अबकी बरसात में अपेक्षित मात्रा में पानी नजर नहीं आया।

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महानदी विवाद : कुदरत की लक्ष्मण रेखा की अनदेखी करता विकास

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महानदीमहानदीमहानदी की पहचान, मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्यों की पानी की माँग की पूर्ति के सबसे बड़े स्रोत के रूप में है। तकनीकी लोगों के अनुसार इसका लगभग 50.0 घन किलोमीटर पानी ही उपयोग में लाया जा सकता है। कहा जा सकता है कि महानदी, पानी के मामले में सम्पन्न और दो राज्यों के बीच प्रवाहित होने के कारण अन्तरराज्यीय नदी है।

महानदी, भारत की सर्वाधिक गाद वाली नदी के रूप में पहचानी जाती है। गाद की मौजूदगी का कारण उसका मन्द ढाल है। यह ढाल लगभग एक मीटर प्रति किलोमीटर है। ढाल के कम होने के कारण, गाद बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। नदी उसकी कुछ मात्रा को फ्लड-प्लेन में तथा उसकी सबसे अधिक मात्रा को डेल्टा में जमा करती है।

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चीन के बाँध से तिब्बत को होगा अधिक नुकसान

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Author: 
जयदीप गुप्ता
Source: 
दथर्डपोल.नेट

138 करोड़ आबादी वाले देश चीन की जरूरतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। चीन अपने हर नदी पर सिंचाई और बिजली की जरूरतों के लिये बाँध बना रहा है। यह काम वह पिछले दो दशक से कर रहा है। चीन की तेरहवीं पंचवर्षीय योजना में भी ब्रह्मपुत्र की मुख्यधारा पर कई बड़ी पनबिजली परियोजनाएँ बननी हैं। चीन ने सफाई दी है कि इससे भारत के हित प्रभावित नहीं होंगे। एक बात याद कर लेने की है कि चीन अपनी जरूरतों के लिये ब्रह्मपुत्र का अधिकतम इस्तेमाल करेगा। लेकिन सिक्किम, आसाम और अरुणाचल से आने वाली नदियों के कारण अभी फिलहाल तो ब्रह्मपुत्र नदी कोई सूखने नहीं जा रही है- कार्यकारी सम्पादक।
ब्रह्मपुत्र नदीब्रह्मपुत्र नदीउरी हमले में 18 सैनिकों की शहादत के बाद भारत की ओर से संकेत दिये गए कि वह पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता रद्द करने पर गम्भीरता से विचार कर रहा है। ऐसा संकेत मिलते ही सिंधु जल समझौते को लेकर तरह-तरह की व्याख्या की जाने लगी।

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सरकार को पश्चिमी घाटों के स्प्रिंग्स की फिक्र नहीं

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Author: 
उमेश कुमार राय

अकोले के एक स्प्रिंग से पानी के लिये जद्दोजहद करती महिलाअकोले के एक स्प्रिंग से पानी के लिये जद्दोजहद करती महिलानौले धारे या स्प्रिंग पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के लिये पानी का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भारत के कम-से-कम 20 राज्य पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित हैं। निलगिरि से हिमालय तक अनुमानतः 50 लाख स्प्रिंग्स हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों लोग पीने और दैनिक इस्तेमाल के पानी के लिये स्प्रिंग पर निर्भर हैं।

उत्तर-पूर्व और उत्तरी भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित स्प्रिंग पर काफी हद तक काम किया गया है। यही वजह है कि उत्तराखण्ड, मेघालय, सिक्किम जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में अब भी स्प्रिंग ही पेयजल का एकमात्र साधन है। हिमालयी क्षेत्रों में स्प्रिंग के संरक्षण पर जितना काम किया गया है उतना पश्चिमी घाट में काम नहीं हुआ है।

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ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਝੋਨੇ ਦੀ ਸਫਲ ਕਾਸ਼ਤ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਉਪਰਾਲੇ…

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ਪਿਆਰੇ ਕਿਸਾਨ ਸਾਥੀਓ, ਹਥਲੇ ਲੇਖ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਆਪਜੀ ਨਾਲ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਤਹਿਤ ਝੋਨੇ ਦੀ ਲਵਾਈ ਬਾਰੇ ਲੋੜੀਂਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਸਾਂਝੀ ਕਰਨ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਲੈ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਸੋ ਇੱਥੇ ਅਸੀਂ ਪਨੀਰੀ ਬੀਜਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੀ ਖੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਝੋਨੇ ਦੀ ਲਵਾਈ ਅਤੇ ਕਟਾਈ ਤੱਕ ਦੇ ਪੂਰੇ ਫਸਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਾਂਗੇ।

ਝੋਨੇ ਦੀ ਪਨੀਰੀ ਲਈ ਬੀਜ ਚੋਣ: ਕਿਸਾਨ ਵੀਰੋ ਬੀਜ ਕਿਸੇ ਵੀ ਫ਼ਸਲ ਦੀ ਬੁਨਿਆਦ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਸਾਡੇ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਹਮੇਸ਼ਾ ਜਾਨਦਾਰ ਅਤੇ ਰੋਗ ਰਹਿਤ ਬੀਜ ਹੀ ਬੀਜੇ ਜਾਣ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਖਾਸ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਤਹਿਤ ਝੋਨੇ ਅਤੇ ਬਾਸਮਤੀ ਦੀ ਕਾਸ਼ਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਜਾਨਦਾਰ ਬੀਜਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ

ਬੀਜ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਬਰਤਨ ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ ਭਰ ਲਵੋ
ਹੁਣ ਇਸ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਆਲੂ ਪਾ ਦੇਵੋ, ਆਲੂ ਡੁੱਬ ਜਾਵੇਗਾ।
ਹੁਣ ਇਸ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਨਮਕ (ਲੂਣ) ਮਿਲਾਉਂਦੇ ਜਾਓ ਜਦੋਂ ਤੱਕ ਆਲੂ ਪਾਣੀ ਉੱਤੇ ਤੈਰਨ ਨਹੀਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ।
ਹੁਣ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚੋਂ ਆਲੂ ਕੱਢ ਦਿਓ ਅਤੇ ਝੋਨੇ ਦਾ ਬੀਜ ਪਾ ਦਿਓ, ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਬੀਜ ਪਾਣੀ ਉੱਤੇ ਤੈਰ ਜਾਵੇਗਾ।
ਪਾਣੀ ਉੱਤੇ ਤੈਰ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਬੀਜ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਦਿਓ, ਇਹ ਸਾਰਾ ਰੋਗੀ, ਕਮਜ਼ੋਰ ਅਤੇ ਫੋਕਾ ਬੀਜ ਹੈ।
ਹੁਣ ਬਰਤਨ ਵਿੱਚ ਡੁੱਬੇ ਹੋਏ ਬੀਜ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਿਲਾਓ ਅਤੇ ਜਿੰਨਾਂ ਵੀ ਬੀਜ ਪਾਣੀ ਉੱਤੇ ਤੈਰ ਜਾਵੇ ਉਸਨੂੰ ਫਿਰ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਦਿਓ। ਇਹ ਕਿਰਿਆਂ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ 3 ਵਾਰ ਦੁਹਰਾਓ। ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਤੁਹਾਡੇ ਕੋਲੇ ਸਿਰਫ ਤੇ ਸਿਰਫ ਰੋਗ ਰਹਿਤ, ਸਿਹਤਮੰਦ ਅਤੇ ਜਾਨਦਾਰ ਬੀਜ ਬਚ ਜਾਵੇਗਾ।
ਹੁਣ ਇਸ ਬਚੇ ਹੋਏ ਰੋਗ ਰਹਿਤ, ਤੰਦਰੁਸਤ ਅਤੇ ਜਾਨਦਾਰ ਬੀਜ ਨੂੰ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ 3 ਵਾਰੀ ਸਾਦੇ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਧੋ ਕੇ ਲੂਣ ਰਹਿਤ ਕਰ ਲਵੋ ਅਤੇ ਛਾਂਵੇ ਸੁਕਾਉਣ ਉਪਰੰਤ ਬੀਜ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਲਾ ਕੇ ਪਨੀਰੀ ਬੀਜ ਦਿਓ।
ਇਸ ਢੰਗ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਰੋਗ ਰਹਿਤ, ਤੰਦਰੁਸਤ ਅਤੇ ਜਾਨਦਾਰ ਬੀਜ ਤੁਹਾਡੇ ਖੇਤ ਵਿੱਚ ਰੋਗ ਰਹਿਤ, ਤਾਕਤਵਰ ਅਤੇ ਜਾਨਦਾਰ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਨਮ ਲੈਣਗੇ ਜਿਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੀਟ ਜਾਂ ਰੋਗ ਨਾਲ ਲੜਨ ਦੀ ਅਦਭੁਤ ਸ਼ਕਤੀ ਹੋਵੇਗੀ। ਸੋ ਸਮੂਹ ਕਿਸਾਨ ਵੀਰ ਪ੍ਰਯੋਗਸ਼ੀਲ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਇਸ ਤਜ਼ਰਬੇ ਦਾ ਲਾਭ ਜ਼ਰੂਰ ਉਠਾਉਣ 100 ਫੀਸਦੀ ਫਾਇਦਾ ਹੋਵੇਗਾ।
ਨੋਟ:ਉਪ੍ਰੋਕਤ ਵਿਧੀ ਨਾਲ ਝੋਨੇ ਦੇ 4 ਕਿੱਲੋ ਬੀਜ ਪਿੱਛੇ 300 ਤੋਂ 500 ਗ੍ਰਾਮ ਰੋਗੀ, ਕਮਜ਼ੋਰ ਅਤੇ ਫੋਕਾ ਬੀਜ ਅਲੱਗ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਕਿ ਸਾਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਨਿਤਾਰਨ ਨਾਲ ਸਿਰਫ ਫੋਕ ਹੀ ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੀ ਏ।

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ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਤਜਰਬੇ - ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਪਹਿਲੇ ਹੀ ਵਰ੍ਹੇ ਤੋਂ ਪੂਰਾ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇਣ ਦੇ ਸਮਰੱਥ

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ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਬਾਰੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਰਾਜੀਵ ਦੀਕਸ਼ਤ ਜੀ ਨੂੰ ਸੁਣਿਆ, ਮੈਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ। ਇਹਨੀਂ ਦਿਨੀਂ ਵੱਡੇ ਭਾਈ ਸਾਬ ਤੋਂ ਡਾ. ਸੁਰਿੰਦਰ ਦਲਾਲ ਹੁਣਾਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਮਿਲੀ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰੇਰਤ ਹੋ ਕੇ ਅਪ੍ਰੈਲ 2012 ਤੋਂ ਨਰਮਾ-ਕਪਾਹ 'ਚ ਅਸੀਂ ਕੀੜੇਮਾਰ ਜ਼ਹਿਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤੀ। ਸਿਰਫ 'ਡਾ. ਦਲਾਲ ਘੋਲ'ਦੀ ਸਪ੍ਰੇਅ ਕੀਤੀ। ਇਸ ਸਦਕਾ ਖਰਚ ਘਟਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਝਾੜ ਵੀ ਹੋਰਨਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਮਿਲਿਆ।

ਮੈਂ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਕਰਨ ਲੱਗਾ, ਮੈਨੂੰ ਬੜੀ ਨਿਰਾਸ਼ਾ ਹੱਥ ਲੱਗੀ। ਸਭ ਦਾ ਇਹੀ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਖੇਤੀ ਰਸਾਇਣਾਂ ਦੇ ਬਗ਼ੈਰ ਇੱਕ ਦਾਣਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਅਤੇ ਜੇਕਰ ਥੋੜਾ-ਬਹੁਤ ਹੋ ਵੀ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਕੀਟ ਖਾ ਜਾਣਗੇ।

ਇੱਕ ਦਿਨ ਮੈਨੂੰ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ ਕਿ ਮਾਰਚ 2014 ਨੂੰ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਵਿਖੇ ਸੁਭਾਸ਼ ਪਾਲੇਕਰ ਜੀ ਦਾ ਕੈਂਪ ਲੱਗ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਉੱਥੇ ਗਿਆ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ। ਉੱਥੇ ਤਿੰੰਨ ਦਿਨ ਰਿਹਾ। ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ 'ਚ ਮੇਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਹੋਰ ਪਕੇਰਾ ਹੋ ਗਿਆ। ਸ਼੍ਰੀ ਪਾਲੇਕਰ ਅਤੇ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਉੱਥੋਂ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਦੇ ਦ੍ਰਿੜ ਨਿਸ਼ਚੇ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਨਾਲ ਵਾਪਸ ਆਇਆ। ਉਥੋਂ ਮੇਰੇ ਹੱਥ ਇੱਕ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਕਿਤਾਬ ਵੀ ਲੱਗੀ 'ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਬਿਨਾ ਕਰਜ਼ ਬਿਨਾ ਜ਼ਹਿਰ'ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਪੜ ਕੇ ਮੈਂ ਡਾ. ਰਾਜੇਂਦਰ ਚੌਧਰੀ ਜੀ ਨਾਲ ਸੰਪਰਕ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਇੱਕ ਏਕੜ ਜ਼ਮੀਨ 'ਤੇ ਗ਼ੈਰ-ਬੀਟੀ ਨਰਮੇ ਤੋਂ ਜੈਵਿਕ ਖੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ। ਨਰਮੇ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ ਫ਼ਸਲ ਵਜੋਂ ਮੂੰਗੀ ਲਾਈ। ਘਣ-ਜੀਵ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਜੀਵ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ। ਖੱਟੀ ਲੱਸੀ ਦਾ ਛਿੜਕਾਅ ਕੀਤਾ ਪਰੰਤੂ ਅੰਤ 'ਚ ਪੈਦਾਵਾਰ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੋਈ। ਬਾਵਜੂਦ ਇਸਦੇ ਮੇਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਅਤੇ ਨਿਸ਼ਚਾ ਬਰਕਰਾਰ ਰਿਹਾ। ਉਸ ਵਰ੍ਹੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਬੀਟੀ ਨਰਮੇ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ 'ਚ ਭਾਰੀ ਗਿਰਾਵਟ ਆਈ ਸੀ।

ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ ਡਾ. ਰਜੇਂਦਰ ਚੌਧਰੀ ਤੋਂ ਇੱਕ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤੀ ਟ੍ਰੇਨਿੰਗ ਕੈਂਪ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ। ਉੱਥੇ ਬਹੁਤ ਕੁੱਝ ਸਿੱਖਿਆ ਅਤੇ ਇੱਕ ਏਕੜ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿੱਚ ਕਣਕ ਦਾ ਝਾੜ 29 ਮਣ ਰਿਹਾ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਜੀਵ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪਾਉਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਖੱਟੀ ਲੱਸੀ ਦੀ ਸਪ੍ਰੇਅ ਵੀ ਕੀਤੀ ਸੀ।

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ਵਾਪਸ ਖੇਤੀ ਵੱਲ

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ਔਰਤਾਂ, ਜੋ ਕੇਰਲ ਵਿੱਚ ਖਾਧ ਉਤਪਾਦਨ ਉੱਪਰ ਆਪਣਾ ਨਿਯੰਤ੍ਰਣ ਗੁਆ ਚੁੱਕੀਆ ਸਨ, ਹੁਣ ਸਥਾਨਕ ਲੋੜਾਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ, ਸਾਧਾਰਨ ਜੈਵਿਕ ਤਰੀਕੇ ਅਪਣਾ ਕੇ ਖੇਤੀ ਵੱਲ ਵਾਪਸ ਆ ਰਹੀਆਂ ਹਨ|ਇਸ ਪਰਿਸਥਿਤਕੀ ਤੰਤਰ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਵਿੱਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਦਿਖਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਕਈ ਕਿਸਾਨ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ‘ਖੇਤੀ ਜੈਵ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਹੋਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇ’ ਬਾਰੇ ਸਿੱਖ ਰਹੇ ਹਨ|

ਨਾਰੀਅਲ, ਰਬੜ, ਕੋਕੋ ਅਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਆਦਿ ਦੀ ਖੇਤੀ ਦਾ ਹੜ੍ਹ ਆਉਣ ਕਾਰਨ ਕੇਰਲ ਨੇ ਆਪਣਾ ਜੈਵ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਆਧਾਰਿਤ ਖੇਤੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਫਾਰਮ ਹਾਊਸ ਖੇਤੀ ਵੀ ਸ਼ਾਮਿਲ ਸੀ, ਗਵਾ ਲਿਆ|ਇਸ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਔਰਤਾਂ ਉੱਪਰ ਪਿਆ ਜਿੰਨਾਂ ਨੇ ਭੋਜਨ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਸਿਹਤ ਸੰਭਾਲ ਦੇ ਕੁਦਰਤੀ ਤਰੀਕਿਆਂ ਉੱਪਰ ਵੀ ਆਪਣਾਂ ਨਿਯੰਤ੍ਰਣ ਖੋਹ ਦਿੱਤਾ|ਭੂਮੀ ਦੀ ਮਾਲਕ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਵਜ਼ੂਦ ਔਰਤਾਂ ਆਪਣੇ ਭੋਜਨ ਲਈ ਬਾਜਾਰ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਹੋਣ ਲੱਗੀਆਂ| ਇਸ ਰੁਝਾਨ ਨੇ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਸੂਬੇ ਅਤੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਗੁਣਵੱਤਾ ਅਤੇ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਵਿੱਚ ਭੋਜਨ ਅਸੁਰੱਖਿਆ ਵੱਲ ਧਕੇਲ ਦਿੱਤਾ|

ਤ੍ਰਿਵੇਂਦ੍ਰਮ ਜਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਵਿਜ੍ਹੀਨਜਮ ਅਤੇ ਵੇਂਗਾਨੂਰ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ, ਸੈਰ-ਸਪਾਟਾ ਉਦਯੋਗ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਆਪਣੀ ਰੋਜ਼ੀ-ਰੋਟੀ ਲਈ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਤੇ ਮੱਛੀ ਪਾਲਣ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ| ਇਹਨਾਂ ਦੋਵੇਂ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਰਵਾਇਤੀ ਕਿਸਾਨ ਪੁਰਸ਼ ਹਨ ਅਤੇ ਸਬਜੀਆਂ, ਕੇਲੇ ਅਤੇ ਟੇਪਿਓਕਾ ਜੋ ਕਿ ਇੱਥੋਂ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਫਸਲਾਂ ਹਨ, ਵਿੱਚ ਰਸਾਇਣਿਕ ਖਾਦਾਂ ਅਤੇ ਕੀਟਨਾਸ਼ਕਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ| ਬਹੁਗਿਣਤੀ ਕਿਸਾਨ ਰਸਾਇਣਾਂ, ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਸਿਹਤ ਜਾਂ ਖੇਤੀ ਦੇ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਲਈ ਟਿਕਾਊਪਣ ਜਿਹੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਪ੍ਰਤਿ ਸੰਵੇਦਨਸ਼ੀਲ ਨਹੀਂ ਹਨ| ਇਹ ਸਾਲ 2002 ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਜਦੋਂ ਤਿਰੂਵਨੰਤਪੁਰਮ ਦੀ ਵਾਤਾਵਰਣ ਦੇ ਮੁੱਦਿਆਂ, ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਆਜੀਵਿਕਾ ਦੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਗੈਰ ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਸਥਾ ਥਨਲ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਦੋ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਮਹਿਲਾ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ|

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ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਰਾਹੀ ਕੁਪੋਸ਼ਣ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਮਾਤ

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ਹੁਮਲਾ ਜਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਔਰਤਾਂ ਦੇ ਗਰੁੱਪ ਨੇ ਆਫ ਸੀਜ਼ਨ ਵਿੱਚ ਜੈਵਿਕ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਉਗਾ ਕੇ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦੀ ਪਹੁੰਚ ਤੱਕ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤਾ ਬਲਕਿ ਟਿਕਾਊ ਆਜੀਵਿਕਾ ਦੀ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ|

ਪ੍ਰੰਪਰਿਕ ਰੂਪ ਵਿੱਚ, ਨੇਪਾਲ ਦੇ ਦੂਰ-ਦਰਾਜ ਦੇ ਹਿਮਾਲਿਆ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹੁਮਲਾ ਜਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਸਾਲ ਦੇ ਸਿਰਫ਼ ਤਿੰਨ ਮਹੀਨੇ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਅਤੇ ਉਪਭੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ|ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਅਤੇ ਜਰੂਰੀ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਗੈਰ ਮੌਜ਼ੂਦਗੀ ਦੇ ਚਲਦਿਆਂ ਹੁਮਲਾ ਜਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਕਿਸਾਨ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦੀ ਖੇਤੀ ਦੇ ਲਈ ਕੁਦਰਤੀ ਮੌਸਮੀ ਪੈਟਰਨ ਉੱਪਰ ਭਰੋਸਾ ਕਰਦੇ ਹਨ| ਔਰਤਾਂ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ, ਖ਼ਾਸ ਕਰਕੇ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦੀ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਬੜੀ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ|ਹਾਲਾਂਕਿ, ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਨੂੰ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਹੀ ਮਾਨਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ|ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਔਰਤਾਂ ਕੁਪੋਸ਼ਣ ਦੀਆਂ ਵੀ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹਨ|ਇਸ ਪਿਛੋਕੜ ਵਿੱਚ, ਫਾਊਂਡ੍ਹੇਸ਼ਨ ਨੇਪਾਲ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਸਹਿਯੋਗ ਦੇ ਨਾਲ ਕਾਮਨ ਫਾਰਮ ਫਾਰ ਡਿਵਲਪਮੈਂਟ (ਸੀ ਐਫ ਡੀ) ਨੇ ਹੁਮਲਾ ਜਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਪਾਇਲਟ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ|

ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਆਫ ਸੀਜ਼ਨ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਗਰੁੱਪ ਇੱਕ ਕਲੈਕਟਿਵ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਹੁਮਲਾ ਜਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਥੇਹੇ ਵੀ ਡੀ ਸੀ (ਗ੍ਰਾਮ ਵਿਕਾਸ ਕਮੇਟੀ) ਦੇ ਮਹਿਲਾ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਵਿੱਚ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ|ਇਸ ਉੱਦਮ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪੂਰਾ ਸਾਲ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਅਤੇ ਮੰਡੀਕਰਨ ਕਰਨਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਕਿ ਸਥਾਨਕ ਸਮੁਦਾਇਆਂ ਦੀ ਭੋਜਨ ਸੁਰੱਖਿਆ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਪੌਸ਼ਟਿਕਤਾ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ|ਪ੍ਰੰਪਰਿਕ ਰੂਪ ਵਿੱਚ, ਹੁਮਲਾ ਜਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਤਿੰਨ ਮਹੀਨੇ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ| ਉਦਮ ਨੇ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਖੇਤੀ ਆਫ ਸੀਜ਼ਨ ਵਿੱਚ, ਖ਼ਾਸ ਕਰਕੇ ਸੈਰ ਸਪਾਟਾ ਉਦਯੋਗ ਵਿੱਚ ਵਾਧੇ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਬਜੀ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਲੋੜ ਅਤੇ ਮੰਗ ਹੈ|

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न स्वैप, ना स्वजल, सिर्फ ग्राम जल

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Author: 
दिनेश कण्डवाल

गाड़नामे तोक गाँव में जलस्रोतगाड़नामे तोक गाँव में जलस्रोतउन्हें क्या मालूम था कि वे एक लम्बे समय तक पानी के संकट से जूझते रहेंगे। वे तो मोटर मार्ग के स्वार्थवश अपने गाँव की मूल थाती छोड़कर इसलिये चूरेड़धार पर आ बसे कि उन्हें भी यातायात का लाभ मिलेगा। यातायात का लाभ उन्हें जो भी मिला हो, पर वे उससे कई गुना अधिक पानी के संकट से जूझते रहे।

यह कोई नई कहानी नहीं यह तो हकीकत की पड़ताल करती हुई टिहरी जनपद के अन्तर्गत चूरेड़धार गाँव की तस्वीर का चरित्र-चित्रण है। बता दें कि 1952 से पूर्व चूरेड़धार गाँव गाड़नामे तोक पर था, जिसे तब गाड़नामे गाँव से ही जाना जाता था। हुआ यूँ कि 1953 में जब धनोल्टी-चम्बा मोटर मार्ग बना तो ग्रामीण मूल गाँव से स्वःविस्थापित होकर सड़क की सुविधा बावत चूरेड़धार जगह पर आ बसे।

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ਵਰਖਾ ਜਲ ਸੰਗ੍ਰਿਹਣ ਦੀਆਂ ਰਵਾਇਤੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ ਨਵਾਂ ਜੀਵਨ

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ਖੇਤੀਬਾੜੀ, ਖੇਤੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਆਜੀਵਿਕਾ ਨੂੰ ਟਿਕਾਊ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਜਲ ਸੋਮਿਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵੀ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਬੇਹੱਦ ਅਹਿਮ ਹੈ|ਵਰਖਾ ਦਾ ਪਾਣੀ ਸਹੇਜਣ ਵਾਲੇ ਖਾਦਿਨਾਂ ਅਤੇ ਨਾਡੀਆਂ ਵਰਗੇ ਰਵਾਇਤੀ ਢਾਂਚਿਆ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਕਰਕੇ ਬਾੜਮੇਰ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੇ ਬ੍ਹੇੱਕ ਇਹ ਸਿੱਧ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ 200 ਤੋਂ 250 ਮਿਲੀ ਮੀਟਰ ਦੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਵਰਖਾ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਬਰਾਨੀ ਖੇਤੀ ਵੀ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅੰਨ ਸੁਰੱਖਿਆ ਵਿੱਚ ਭਰਪੂਰ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਚੁੱਕਣ ਵਿੱਚ ਅਹਿਮ ਰੋਲ ਅਦਾ ਕਰ ਸਕਦੀ ਹੈ|

ਪੱਛਮੀ ਰਾਜਸਥਾਨ ਸਥਿਤ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਾਰਡਰ ਨਾਲ ਲੱਗਦਾ ਬਾੜਮੇਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਭਾਰਤ ਦੇ ਮਹਾਨ ਥਾਰ ਮਾਰੂਥਲ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹੈ| ਇਹ ਰੇਤੀਲੇ ਟਿੱਬਿਆਂ, ਘੱਟ ਉਪਜਾਊ ਪਹਾੜੀਆਂ ਅਤੇ ਸਮੁਦਾਇਆਂ ਦੁਆਰਾ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਖਿੱਤਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕੰਡਿਆਲੀਆਂ ਝਾੜੀਆਂ ਵਾਲੀ ਵਨਸਪਤੀ ਵਾਲਾ ਇਲਾਕਾ ਹੈ| ਜੀਵਨ ਲਈ ਬੇਹੱਦ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਾਲਾ ਇਹ ਮਾਰੂਥਲੀ ਈਕੋ ਸਿਸਟਮ ਮਰਦਮ੍ਸ਼ੁਮਾਰੀ - 2011 ਅਨੁਸਾਰ ਬਾੜਮੇਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿਚ 93% ਪੇਂਡੂ ਵਸੋਂ ਸਮੇਤ ਕੁੱਲ 2 ਕਰੋੜ 6 ਲੱਖ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਭਰਣ-ਪੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ|ਪਿੰਡਾ ਲੂੰਹਦੀ ਗਰਮੀ ਅਤੇ ਰੇਤੀਲੇ ਤੁਫਾਨਾਂ, ਖੂਨ ਜਮਾਊ ਠੰਡ, ਸੋਕੇ ਅਤੇ ਅਸਾਵੇਂ ਮਾਨਸੂਨ ਵਾਲੀ ਇਸ ਭੂਮੀ 'ਤੇ ਪਿੰਡਾਂ 'ਚ ਵਸਣ ਵਾਲੇ 82 ਫੀਸਦੀ ਤੋਂ ਵੀ ਜਿਆਦਾ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਹੈ|ਅਚੰਭੇ ਦੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇੱਥੋਂ ਦਾ 80% ਰਕਬਾ ਵਰਖਾ ਆਧਾਰਿਤ ਬਰਾਨੀ ਖੇਤੀ ਹੇਠ ਹੈ|

ਗਰਮੀ ਦੀ ਮਹੀਨਿਆਂ ਦੌਰਾਨ ਪੂਰੇ ਖਿੱਤੇ 'ਚ ਖੇਤੀ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸਭ ਲਈ ਪੀਣ ਵਾਲਾ ਪਾਣੀ ਜੁਟਾਉਣਾ ਵੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ| ਸਮੁੱਚੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਕੁੱਲ 15 ਦਿਨ ਔਸਤਨ 270 ਤੋਂ 300 ਮਿਲੀਮੀਟਰ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ|ਜੇਕਰ ਇਹਨਾਂ 15 ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਂਹ ਦਾ ਪਾਣੀ ਸਹੇਜ ਕੇ ਸੰਭਾਲਿਆ ਨਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਸਾਲ ਭਰ ਲਈ ਪਾਣੀ ਦੀ ਆਪੂਰਤੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਚੁਣੌਤੀ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ| ਬਾੜਮਾਰੇ 'ਚ ਪਾਣੀ ਦੀ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਬੂੰਦ ਬੇਸ਼ਕੀਮਤੀ ਹੈ|

ਵਰਖਾ ਜਲ ਸਹੇਜਣ ਦੀ ਰਵਾਇਤੀ ਮੁਹਾਰਤ

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ਕ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੇਹਰੀਆ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਬਦਲਾਅ ਦੀ ਲਹਿਰ-ਕਮੀ ਤੋਂ ਬਹੁਲਤਾ ਵੱਲ

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ਪਾਣੀ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲ ਕਟਾਈ (ਹਾਰਵੈਸਟਿੰਗ) ਕਰਕੇ, ਮੱਧ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੇਹਰੀਆ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਮੁਦਾਇ ਨਾ ਸਿਰਫ ਪਿੰਡ ਦੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਮੌਜ਼ੂਦਾ ਜਰੂਰਤ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋਏ ਬਲਕਿ ਭਵਿੱਖ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਦੇ ਸਮਰੱਥ ਹੋ ਗਏ| ਸਥਾਨਕ ਮਜ਼ਬੂਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੇ ਇਸ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਵਿੱਚ ਸਮਰੱਥ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ ਪੂਰੀ ਮੱਦਦ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਨਾਲ ਇੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿੰਦਗੀਆਂ ਅਤੇ ਰੋਜ਼ੀ-ਰੋਟੀ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਹੋਇਆ|

ਮੱਧ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦੇ ਅਗਰ ਜਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਪਿੰਡ ਕਸਾਈ ਦੇਹਰੀਆ, ਜਿਸਨੂੰ ਪਹਿਲੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੇਹਰੀਆ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ, ਨੂੰ ਇਹ ਨਾਮ ਇਸ ਲਈ ਮਿਲਿਆ ਕਿ ਇਹ ਇੱਕ ਪਿਆਸੇ ਗਰੀਬ ਆਦਮੀ ਦੀ ਪਿਆਸ ਬੁਝਾਉਣ ਲਈ ਪਾਣੀ ਮੁਹੱਈਆ ਨਾ ਕਰਵਾ ਸਕਿਆ| ਕ੍ਰਿਸ਼ਨਾ ਦੇਹਰੀਆ, ਜਿਸ ਕੋਲ ਪਾਣੀ ਦੇ ਬੜੇ ਸ੍ਰੋਤ ਸਨ, ਵਿੱਚ 1942 ਵਿੱਚ ਭਿਆਨਕ ਸੋਕਾ ਪਿਆ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਉਪਲਬਧਤਾ ਇੱਕ ਚੁਣੌਤੀ ਬਣ ਗਈ| 2010 ਤੱਕ, ਇੱਥੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਵਰਖਾ ਆਧਾਰਿਤ ਖੇਤਰ, ਅਣਢਕੀ ਮਿੱਟੀ, ਖਰਾਬ ਜ਼ਮੀਨਾਂ, ਊਬੜ-ਖਾਬੜ ਇਲਾਕੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਇਸ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਪੀਣ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਨਾਲ ਸਿੰਚਾਈ ਲਈ ਵੀ ਪਾਣੀ ਨਹੀਂ ਸੀ| ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੀਣ ਵਾਲਾ ਪਾਣੀ ਲਿਆਉਣ ਲਈ 1-2 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਜਾਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ|

ਕਸਾਈ ਦੇਹਰੀਆ 127 ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਵਾਲਾ ਅਤੇ 532 ਹੈਕਟੇਅਰ ਖੇਤਰਫਲ ਵਾਲਾ ਪਿੰਡ ਹੈ| ਸਿਰਫ 27 ਹੈਕਟੇਅਰ ਜ਼ਮੀਨ ਚਾਰ ਛੋਟੇ ਤਾਲਾਬਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਚਿਤ ਹੈ| ਬਾਕੀ ਖੇਤਰ ਵਰਖਾ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ| ਇਸ ਕਰਕੇ ਕਿਸਾਨ ਕਣਕ ਅਤੇ ਸੋਇਆਬੀਨ ਜਿਹੀਆਂ ਫਸਲਾਂ ਨਹੀਂ ਬੀਜ ਸਕਦੇ ਜਿੰਨਾਂ ਲਈ ਸਿੰਚਾਈ ਦੀ ਲੋੜ ਪੈਂਦੀ ਹੈ| ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਕਸਰ ਰੋਜ਼ੀ-ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਦੂਸਰੇ ਰਾਜਾਂ ਅਤੇ ਜਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਜਾਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ|

ਪਹਿਲ

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