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पंजाब चुनाव में पानी का मुद्दा, कितना कारगर

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विधानसभा चुनाव 2017 पर विशेष


सतलुज-यमुना लिंक नहरसतलुज-यमुना लिंक नहरपंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों में पानी के मुद्दे पर होड़ मची है लेकिन दुखद यह है कि इसमें पंजाब के लोगों के पानी की चिन्ता कम और अपना हित साधने की हड़बड़ी ज्यादा नजर आती है। पानी जैसे आम लोगों से जुड़े और जरूरी एवं अहम मुद्दे पर भी सिर्फ बयानबाजी ही की जा रही है।

महज सतलुज-यमुना लिंक नहर योजना के मुद्दे को ही पानी का समग्र मुद्दा मान लिया गया है। जबकि यह पूरे प्रदेश के पानी की किल्लत के मद्देनजर एक छोटा-सा अंश भर है। इस चिन्ता में न तो खेती में पानी को बचाने की तकनीकों की कोई बात है, न ही बारिश के पानी को जमीन में रिसाने की चिन्ता और न ही तेजी से खत्म होती जा रही पानी के परम्परागत संसाधनों को लेकर कोई बात है। पंजाब के सूखे इलाकों में पानी को लेकर दलों के पास फिलहाल कोई दृष्टि (विजन) नहीं है।

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बिन पानी का दृष्टि पत्र, संकल्प पत्र और घोषणा पत्र

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विधानसभा चुनाव 2017 पर विशेष


पानीपानी2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड में कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा सहित लगभग दो दर्जन से अधिक राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। कुल 70 विधानसभाओं के लिये 634 उम्मीदवार मैदान में हैं। कांग्रेस ने संकल्प पत्र और भाजपा ने दृष्टि पत्र तथा बाकि अन्य पार्टियों ने घोषणा पत्र जारी किया है।

पूर्व के चुनाव की भाँति इस बार भी लोक-लुभावन वायदे के साथ ये पार्टियाँ अपने-अपने घोषणा पत्र में विकास की इबारत लिखने की बात करने से बाज नहीं आये। ताज्जुब हो कि एक भी ऐसा वायदा नहीं है जिसके सुहावने सपने इनके घोषणा पत्र में अंकित ना हो। बस! एक बात को इन पार्टियों ने बेपरवाह कर दी कि जिन मुद्दों व वायदों के साथ आजकल ये पार्टियाँ लाउडस्पीकर लेकर घूम रहे हैं वे वायदे कैसे जीवित रहेंगे इसकी फिक्र शायद इन्हें नहीं है।

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वाराणसी के घाटों को नवजीवन दे रहीं तेमसुतुला

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Author: 
उमेश कुमार राय

तेमसुतुला इमसोंगतेमसुतुला इमसोंगअमूमन देखा जाता है कि कहीं गन्दगी पड़ी हो, तो लोग प्रशासन व स्थानीय लोगों को कोसते हुए मन-ही-मन यह बुदबुदाते हुए निकल जाते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता। लेकिन, बदलाव तब होता है, जब लोग यह सोचते हैं कि क्यों न इस गन्दगी को साफ कर लोगों को प्रेरित किया जाये।

34 वर्षीय तेमसुतुला इमसोंग उन विरले लोगों में है, जिन्होंने गन्दगी देखकर प्रशासन और सरकार को कोसने की जगह सफाई का जिम्मा अपने हाथों में ले लिया। इस काम में तेमसुतुला को दर्शिका शाह भी सहयोग कर रही हैं।

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अंटार्कटिका के रॉस सागर में बनेगा विश्व का सबसे बड़ा समुद्री-अभयारण्य (World's largest marine park created in Ross Sea in Antarctica)

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रॉस सागररॉस सागरविश्व की वर्तमान पर्यावरणीय स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए, विभिन्न पहलों और परियोजनाओं के माध्यम से पर्यावरण की बेहतरी के लिये वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से समय-समय पर पर्यावरणीय निर्णय लिये जाते रहते हैं। 28 अक्टूबर 2016 को सीसीएएमएलआर द्वारा अंटार्कटिका के रॉस सागर में सर्वसम्मति से सबसे बड़ा समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Area, MPA) सुनिश्चित कर पाना पूरी दुनिया के लिये किसी अश्वमेधी विजय से कम नहीं है।

आज जबकि सम्पूर्ण विश्व विभिन्न देशों के मध्य दूषित राजनीतिक सम्बन्धों के दौर से गुजर रहा है, ऐसे माहौल में अंटार्कटिक संधि तंत्र के 24 देशों और यूरोपीय संघ का रॉस सागर संरक्षण के विषय पर एकमत होकर सहमति देना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है।

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जैविक में है दम, सिक्किम बना प्रथम

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सिक्किम में जैविक खेतीसिक्किम में जैविक खेतीयदि हमारी खेती प्रमाणिक तौर पर 100 फीसदी जैविक हो जाये, तो क्या हो? यह सोचते ही मेरे मन में सबसे पहले जो कोलाज उभरता है, उसमें स्वाद भी है, गन्ध भी, सुगन्ध भी तथा इंसान, जानवर और खुद खेती की बेहतर होती सेहत भी। इस चित्र के लिये एक टैगलाइन भी लिखी है - “अब खेती और किसान पर कोई तोहमत न लगाए कि मिट्टी, भूजल और नदी को प्रदूषित करने में उनका भी योगदान है।’’

अभी यह सिर्फ एक कागजी कोलाज है। जमीन पर पूरी तरह कब उतरेगा, पता नहीं। किन्तु यह सम्भव है। सिक्किम ने इस बात का भरोसा दिला दिया है। उसने पहल कर दी है। जब भारत का कोई राज्य अपने किसी एक मण्डल को सौ फीसदी जैविक कृषि क्षेत्र घोषित करने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में कोई राज्य 100 फीसदी जैविक कृषि राज्य होने का दावा करे; यह बात हजम नहीं होती।

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देह के बाद अनुपम

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अनुपम मिश्रअनुपम मिश्रजब देह थी, तब अनुपम नहीं; अब देह नहीं, पर अनुपम हैं। आप इसे मेरा निकटदृष्टि दोष कहें या दूरदृष्टि दोष; जब तक अनुपम जी की देह थी, तब तक मैं उनमें अन्य कुछ अनुपम न देख सका, सिवाय नए मुहावरे गढ़ने वाली उनकी शब्दावली, गूढ़ से गूढ़ विषय को कहानी की तरह पेश करने की उनकी महारत और चीजों को सहेजकर सुरुचिपूर्ण ढंग से रखने की उनकी कला के।

डाक के लिफाफों से निकाली बेकार गाँधी टिकटों को एक साथ चिपकाकर कलाकृति का आकार देने की उनकी कला ने उनके जीते-जी ही मुझसे आकर्षित किया। दूसरों को असहज बना दे, ऐसे अति विनम्र अनुपम व्यवहार को भी मैंने उनकी देह में ही देखा।

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पानी व्यवस्था की प्रबन्धक भारतीय महिलाएँ

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अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च 2017 पर विशेष


पानी की व्यवस्था में लगीं महिलाएँपानी की व्यवस्था में लगीं महिलाएँमार्च का पहला सप्ताह 8 मार्च को मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के चलते विश्व स्तर पर नारीमय होने लगता है। हमारे भारत में भी इस समय महिला सशक्तिकरण सप्ताह मनाया जा रहा है। वैसे हमारी भारतीय महिलाओं के लिये किसी ने बहुत पहले कहा था कि यदि प्रबन्धन सीखना हो तो किसी भारतीय पत्‍नी से सीखो।

यह बात सौ प्रतिशत सच भी है, क्योंकि भारत में स्त्रियाँ जन्मजात प्रबन्धक होती हैं। वैसे तो एक कुशल प्रबन्धन समाज के हित में व्यक्ति का विकास करता है, लेकिन किसी समाज की सबसे आधारभूत इकाई, परिवार, में प्रबन्धन उस घर की मुख्य महिला ही करती है, जो भारत में दादी, माँ या पत्नी हो सकती है। इनके अलावा परिवार में जो अन्य महिला सदस्य होती हैं, वे प्रमुख महिला प्रबन्धक की सहायिकाओं के रूप में घरेलू प्रबन्धन में अपने-अपने अनुकूल हाथ बटाँती हैं।

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गाँधी-मार्ग का अभिभावक

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Author: 
मनोज कुमार झा

अनुपम मिश्रअनुपम मिश्ररचनात्मक संस्थाओं के सम्पर्क में अस्सी के दशक से हूँ। मेरे लिये अच्छी बात यह रही कि इस दौरान जो भी सम्पर्क बना या जो भी काम किया वह वैसा ही काम था जिसे हम गाँधीवादी दृष्टि से देखते हैं। हालांकि गाँधीवाद शब्द इस्तेमाल करना खुद मुझे अच्छा नहीं लग रहा क्योंकि यह कभी राष्ट्रपिता को भी पसन्द नहीं आया था।

खैर! यह तो रही बातों को थोड़ी गहराई से समझने की बात। अपनी बात को आगे बढ़ाऊँ तो मेरे जीवन में जो सबसे बड़ी शख्सियत आये जिनके साथ मिलकर काम करने का अवसर मिला- वे थे प्रेमभाई। प्रेमभाई के साथ ही पहली बार दिल्ली आया। और इस तरह कह सकते हैं कि दिल्ली में अनुपम भाई से मुझे प्रेमभाई ने ही मिलाया।

अनुपम भाई पहली ही भेंट में मन पर गहरी छाप छोड़ गए। साहित्य की बहुत ज्यादा समझ नहीं पर यह समझता था कि अनुपम भाई जो लिखते हैं वह वाकई हर लिहाज से अनुपम ही होता है। सोचता था इनके साथ मिलकर कभी काम करने का मौका मिले तो जैसे एक पिपासु छात्र को श्रेष्ठ शिक्षक मिल जाएगा।

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सिक्किम सिखा रहा स्प्रिंग्स सहेजना

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Author: 
उमेश कुमार राय

मेल्ली गाँव की धारामेल्ली गाँव की धारापूर्वोत्तर हिमालय में लगभग 7096 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला सिक्किम वैसे तो है बहुत छोटा राज्य, लेकिन इस छोटे राज्य ने स्प्रिंग्स को सहेजने के लिये जो बड़ा काम किया है, उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है। सिक्किम ने स्प्रिंग्स को सहेजकर अपने लोगों के लिये पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित कर दी है। मजेदार बात यह है कि सिक्किम ने सरकारी योजनाओं के बूते ही स्प्रिंग्स (धारा) को संरक्षित कर लिया है। सरकारी योजनाओं के सम्बन्ध में अक्सर कहा जाता है कि इसमें लूटखसोट होती है व इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पाता है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि सिक्किम ने इस मिथक को भी तोड़ा है।

सिक्किम की आबादी 5 लाख 40 हजार है। यहाँ के गाँवों में रहने वाली आबादी का 80 प्रतिशत (65000) हिस्सा पीने व अन्य जरूरतों के लिये स्प्रिंग्स के पानी पर निर्भर है। इससे समझा जा सकता है कि स्प्रिंग्स यहाँ के लिये कितना जरूरी है, लेकिन रख-रखाव के अभाव व स्प्रिंग्स को बचाने की कोई मजबूत व दूरदर्शी योजना नहीं होने के कारण यहाँ के स्प्रिंग्स बेहद दयनीय हालत में पहुँच गए थे।

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फ्लोराइड के साथ जीने को मजबूर आगरा के गाँव

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Source: 
लोकसभा टीवी



‘जिन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा है, जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे होते हैं।’मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने ये पंक्तियाँ किन हालातों में लिखी होगी पता नहीं। लेकिन ताज नगरी आगरा से 20-25 किमी. दूर गाँव पचगाँय में बसे लोगों की जिन्दगी सचमुच उस गरीब के कबा या कपड़ों जैसी है जिनमें हर पल दर्द के पैबन्द लगाए जाते हैं।

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फ्लोरोसिस से पीड़ित कई पीढ़ियाँ

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Author: 
संदीप कुमार

फ्लोरोसिस की बीमारी से पीड़ित औरत और बच्चेफ्लोरोसिस की बीमारी से पीड़ित औरत और बच्चेएक ओर जहाँ बिहार में फ्लोराइड प्रभावित चार सौ टोलों में मार्च के अन्त तक फ्लोराइडग्रस्त टोलों में घर-घर पीने का पानी पहुँचाने का काम शुरू हो जाएगा। वही पाइप से पानी का कनेक्शन देने के काम में आधा दर्जन एजेंसियों ने दिलचस्पी दिखाई है। बिहार सरकार की हर घर नल का जल योजना के तहत घरों में पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिये तैयारी चल रही है। इतना ही नहीं इन टोलों में ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर पानी को शुद्ध कर पहुँचाया जाएगा।

इन चार सौ टोलों में पाइप से पहुँचाने पर लगभग दो सौ करोड़ खर्च होंगे। टेंडर में सफल एजेंसी को एक साल में पाइप बिछाकर घर-घर जलापूर्ति का काम पूरा करना है। एजेंसी को डिजाइन के अलावा निर्माण, आपूर्ति व चालू करने के साथ पाँच साल तक उसका रख-रखाव भी करना है।

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एक नदी के नागरिक अधिकार

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विश्व जल दिवस, 22 मार्च 2017 पर विशेष



वांगानुई नदीवांगानुई नदीन्यूजीलैंड की संसद द्वारा वांगानुई नदी को इंसानी अधिकार देने के फैसले से प्रेरित होकर उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने भी गंगा और यमुना नदियों को जीवित व्यक्तियों जैसे अधिकार देने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इन अधिकारों को सुरक्षित बनाए रखने के लिये गंगा प्रबन्धन बोर्ड बनाया जाएगा। इससे नदियों के जलग्रहण क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने व गन्दगी बहाने वालों को प्रतिबन्धित करना आसान होगा।

फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि इस फैसले का असर कितना होगा। क्योंकि इसके पहले हमारी नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाए रखने की दृष्टि से सर्वोच्च व उच्च न्यायालय कई निर्णय सुना व निर्देश दे चुके हैं, लेकिन ज्यादातर निर्देश व निर्णय निष्प्रभावी रहे। गंगा का कल्याण राष्ट्रीय नदी घोषित कर देने के पश्चात भी सम्भव नहीं हुआ। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के सचेत बने रहने के बावजूद नदियों में कूड़ा-कचरा बहाए जाने का सिलसिला निरन्तर बना हुआ है।

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नदी जीवन को मिला अदालती आधार

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विश्व जल दिवस, 22 मार्च 2017 पर विशेष


गंगागंगासयुक्त राष्ट्र संघ ने मलीन जल को विश्व जल दिवस - 2017 का मुख्य विचारणीय विषय घोषित किया है और जल की मलीनता की सबसे बड़ी शिकार आज हमारी नदियाँ ही हैं। इस लिहाज से विश्व जल दिवस - 2017 का सबसे बड़ा तोहफा इस बार उत्तराखण्ड हाईकोर्ट की तरफ से आया है।

तय हुआ गंगा-यमुना का जीवित दर्जा, अधिकार और अभिभावक


नैनीताल स्थित उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने गंगा, यमुना और इनकी सहायक नदियों को 'जीवित व्यक्ति'का दर्जा और अधिकार देते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 'पैरेंट पैट्रिआई लीगल राइट'को आधार बनाते हुए यह फैसला सुनाया है।

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एक नदी के ‘इंसान’ होने के मायने

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Author: 
सुशील कुमार

यमुना नदीयमुना नदीविश्व जल दिवस 2017 से दो दिन पूर्व उत्तराखण्ड हाईकोर्ट का नदियों के सम्बन्ध में आया फैसला काफी महत्त्वपूर्ण है। हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले में गंगा, यमुना तथा उसकी सहायक नदियों को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया है। न्यायालय का ऐसा करने का अर्थ बिलकुल स्पष्ट है, वह नदियों को जीवित के समान अधिकार देकर लोगों से इन नदियों के प्रति मनुष्यों के समान व्यवहार करने की अपेक्षा रखती है।

आधुनिक पूँजीवादी युग ने नदी, पानी, तथा अनाज जैसी दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर अपना नियंत्रण कर लिया है। ये वर्ग अपने निजी लाभ के लिये बड़े पैमाने पर प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं। पहाड़ से लेकर रेगिस्तान तक का प्राकृतिक असन्तुलन बिगाड़ने में पूँजीवादी वर्ग जिम्मेदार हैं। नदियों में बढ़ता प्रदूषण का स्तर, जंगलों का विनाश, पहाड़ों पर तोड़-फोड़ इनमें प्रमुख हैं।

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सरकारी लापरवाही की नजीर पेश करता एक शोध

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Author: 
उमेश कुमार राय

कुछ दिन पहले जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट स्टडीज के डायरेक्टर प्रो. तरित रायचौधरी ने पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट ब्लॉक-1 स्थित गाँव चक कमारडांगा के चक कमारडांगा फ्री प्राइमरी स्कूल में मौजूद दो ट्यूबवेल के पानी की जाँच की थी। जाँच का मुख्य बिन्दू था यह पता लगाना कि इन दोनों जलस्रोतों में आर्सेनिक है या नहीं। इस जाँच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। इसके बाद उन्होंने उन बच्चों के घरों के जलस्रोतों की भी जाँच की। जाँच में न केवल स्कूल के जलस्रोत बल्कि बच्चों के घरों के ट्यूबवेल में भी आर्सेनिक की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई। मगर आश्चर्य की बात है कि सरकार को न तो इसकी जानकारी है और न ही उन्होंने कभी जानकारी लेने की कोशिश की।



आर्सेनिकयुक्त पानी से खाना बना रही एक महिलाआर्सेनिकयुक्त पानी से खाना बना रही एक महिलाचक कमारडांगा फ्री प्राइमरी स्कूल की छात्रा सहाना खातून को जब प्यास लगती है, तो वह स्कूल के दो ट्यूबवेल में से उस ट्यूबवेल का पानी पीती है जिसमें फिल्टर लगा हुआ है। उसे लगता है कि फिल्टर लगा ट्यूबवेल का पानी साफ है।

सहाना की तरह ही स्कूल में पढ़ने वाले 200 से अधिक बच्चे यही मानते हैं कि फिल्टर लगे ट्यूबवेल का पानी सुरक्षित है। लेकिन, जादवपुर विश्वविद्यालय की ओर से किये गए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि जिस पानी को बच्चे अमृत समझ कर पी रहे हैं, वह अमृत नहीं जहर है।

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बागमती तटबन्ध गैरजरूरी और नुकसानदेह भी

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Author: 
अमरनाथ

सिरनियां के पास बागमती और दरभंगा बागमती का संगम स्थलसिरनियां के पास बागमती और दरभंगा बागमती का संगम स्थलबिहार की सबसे उपजाऊ इलाके से प्रवाहित नदी है बागमती। इस नदी पर तटबन्ध बनाने का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही विवादग्रस्त भी। ताजा विवाद दशकों से बन्द पड़ी परियोजना को अचानक फिर से आरम्भ करने से उत्पन्न हुआ है। इसे लेकर आयोजित जन सुनवाई में तटबन्ध निर्माण पर तत्काल रोक लगाने और परियोजना की समीक्षा के लिये कमेटी का गठन करने की माँग की गई। कहा गया कि अगर एक महीने के भीतर सरकार समीक्षा समिति का गठन नहीं करती है तो जनता की ओर से समीक्षा कमेटी का गठन किया जाएगा और जन महापंचायत का आयोजन किया जाएगा।

चास-वास जीवन बचाओ-बागमती संघर्ष मोर्चा का कहना है कि पिछले पचास-साठ वर्षों में बागमती नदी की संरचना और बहाव में बड़ा परिवर्तन आया है। इससे पुरानी योजना अप्रासंगिक हो गई है। वैसे उस योजना के आधार पर जहाँ तटबन्ध बने हैं, वहाँ उनका विनाशकारी स्वरूप ही सामने आया है।

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गंगा-यमुना जैसा अधिकार नर्मदा को क्यों नहीं

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नर्मदा नदीनर्मदा नदीहाल ही में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने देश की गंगा-यमुना नदियों को जीवित इकाई मानते हुए इन्हें वही अधिकार दी है, जो एक जीवित व्यक्ति को हमारे संविधान से स्वतः हासिल हैं। इससे पहले न्यूजीलैंड की नदी वांगानुई को भी ऐसा ही अधिकार मिल चुका है। हालांकि यह नदी वहाँ के माओरी अदिवासी समुदाय की आस्था की प्रतीक रही है और वे लोग इसे बचाने के लिये करीब डेढ़ सदी से संघर्ष कर रहे थे। 290 किमी लम्बी यह नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही थी। बेतहाशा खनन और औद्योगिकीकरण से नदी के खत्म होने का खतरा बढ़ गया था। यहाँ की संसद ने इसके लिये बाकायदा माफी माँगते हुए कानून बदला और अन्ततः इसे जीवित इंसान की तरह का दर्जा देकर इसे प्रदूषण से बचाने की दुनिया में अपनी तरह की अनूठी पहल की।

अब न्यायालय से गंगा-यमुना को जीवित इकाई मान लिये जाने के फैसले के बाद देश के नदियों, विविध जलस्रोतों और उसके पर्यावरणीय तंत्र से जुड़े जंगल, पहाड़ और तालाबों को भी इसी तरह की इकाई मानकर उन्हें प्रदूषण से बचाने की माँग जगह-जगह से उठने लगी है। खासतौर पर मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा को भी यह दर्जा देने की माँग को लेकर कई जन संगठन सामने आये हैं।

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एकमात्र तैरती झील लोकटक

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लोकटक झीललोकटक झीललोकटक झील, भारत में ताजे पानी की सबसे बड़ी झील है। यह झील मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 53 किलोमीटर दूर और दीमापुर रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है। 34.4 डिग्री सेल्सियस का तापमान, 49 से 81 प्रतिशत तक की नमी, 1,183 मिलीमीटर का वार्षिक वर्षा औसत तथा पबोट, तोया और चिंगजाओ पहाड़ मिलकर इसका फैलाव तय करते हैं। इस पर तैरते विशाल हरित घेरों की वजह से इसे तैरती हुई झील कहा जाता है।

एक से चार फीट तक मोटे ये विशाल हरित घेरे वनस्पति मिट्टी और जैविक पदार्थों के मेल से निर्मित मोटी परतें हैं। परतों की मोटाई का 20 प्रतिशत हिस्सा पानी में डूबा रहता है; शेष 80 प्रतिशत सतह पर तैरता दिखाई देता है। ये परतें इतनी मजबूत होती हैं कि स्तनपायी जानवरों को वजन आराम से झेल लेती हैं। स्थानीय बोली में इन्हें फुुमदी कहते हैं।

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तीस्ता के जल बँटवारे का नहीं हुआ समाधान

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तीस्ता नदीतीस्ता नदीभारत एवं बांग्लादेश के बीच 22 समझौतों के जरिए सहयोग का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। दोनों देशों के बीच रक्षा, असैन्य परमाणु सहयोग, रेल एवं बस यात्रा शुरू करने समेत साइबर सुरक्षा से जुड़े अहम समझौते हुए हैं। भारत बांग्लादेश को 29 हजार करोड़ रुपए रियायती ब्याज दर पर कर्ज भी देगा। इसके अलावा बांग्लादेश को सैन्य आपूर्ति के लिये 50 करोड़ डॉलर का अतिरिक्त कर्ज देने की भी घोषणा की है।

भारत द्वारा इतनी उदारता बरती जाने के बावजूद पिछले सात वर्ष से अनसुलझा पड़ा तीस्ता जल बँटवारे का मुद्दा लम्बित ही रह गया। हालांकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भरोसा जताया है कि इस मुद्दे का हल जल्दी ही निकलेगा। तात्कालिक परिस्थितियों में भारत की इस उदारता को इसलिये औचित्यपूर्ण ठहराया जा सकता है, क्योंकि पड़ोसी देश पाकिस्तान भारत में जहाँ निरन्तर आतंक का निर्यात करने में लगा है, वहीं चीन तिब्बती धर्म-गुरू दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा पर भारत से आँखें तरेरे हुए है।

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प्रदूषित पानी आज भी एक भीषण समस्या

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दूषित पानी से पनप रही हैं बीमारियाँदूषित पानी से पनप रही हैं बीमारियाँआज समूची दुनिया प्रदूषित पानी की समस्या से जूझ रही है। हालात इतने विषम और भयावह हैं कि प्रदूषित पानी पीने से आज इंसान भयानक बीमारियों की चपेट में आकर अनचाहे मौत का शिकार हो रहा है। असलियत यह है कि पूरी दुनिया में जितनी मौतें सड़क दुर्घटना, एचआईवी या किसी और बीमारी से नहीं होतीं, उससे कई गुणा अधिक मौतें प्रदूषित पानी पीने से उपजी बीमारियों के कारण होती हैं।

यदि संयुक्त राष्ट्र की मानें तो समूची दुनिया में हर साल आठ लाख लोगों की मौत केवल प्रदूषित पानी पीने से होती है। संयुक्त राष्ट्र की बीते दिनों जारी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एशिया, लैटिन अमरीका और अफ्रीका में हर साल तकरीब 35 लाख लोगों की मौतें दूषित पानी के सम्पर्क में आने से होने वाली बीमारियों के चलते होती हैं। गरीब देशों में यह समस्या और गम्भीर है।

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