लोगों को विकलांग बनाता पानी
जलनीति का मकड़जाल
प्रस्ताव की धारा 7.4 में जल वितरण के लिए शुल्क एकत्रित करने, उसका एक भाग शुल्क के रूप में रखने आदि के अलावा उन्हें वैधानिक अधिकार प्रदान करने की भी सिफारिश की गयी है। ऐसा होने पर तो पानी के प्रयोग को लेकर एक भी गलती होने पर कानूनी कार्यवाही भुगतनी पड़ेगी। ये सारे कानून आज लागू नहीं हैं तो भी पानी के लिए कितना मारा-मारी होती है। ऐसे कठोर नियंत्रण होने पर क्या होगा? जो निर्धन पानी नहीं ख़रीद सकेंगे उनका क्या होगा? किसान खेती कैसे करेंगे? नदियों के जल पर भी ठेका लेने वाली कंपनी के पूर्ण अधिकार का प्रावधान है।
भारत सरकार के विचार की दिशा, कार्य और चरित्र को समझने के लिए “राष्ट्रीय जल नीति-2012” एक प्रामाणिक दस्तावेज़ है। इस दस्तावेज़ से स्पष्ट रूप से समझ आ जाता है कि सरकार देश के नहीं, केवल मेगा कंपनियों और विदेशी निगमों के हित में कार्य कर रही है। देश की संपदा की असीमित लूट बड़ी क्रूरता से चल रही है। इस नीति के लागू होने के बाद आम आदमी पानी जैसी मूलभूत ज़रूरत के लिए तरस जाएगा। खेती तो क्या पीने को पानी दुर्लभ हो जाएगा।29 फरवरी तक इस नीति पर सुझाव मांगे गए थे। शायद ही किसी को इसके बारे में पता चला हो। उद्देश्य भी यही रहा होगा कि पता न चले और औपचारिकता पूरी हो जाए। अब जल आयोग इसे लागू करने को स्वतंत्र है और शायद लागू कर भी चुका है। इस नीति के लागू होने से पैदा भयावह स्थिति का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। विश्व में जिन देशों में जल के निजीकरण की यह नीति लागू हुई है, उसके कई उदहारण उपलब्ध हैं।
भोपाल के भूजल में बढ़ता जा रहा है प्रदूषण
परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने की चुनौती
पनचक्की से पूरी होंगी ऊर्जा जरूरतें
जल चालीसा
जीवन का पर्याय जल, सभी सुखों की खान।।
जल की महिमा क्या कहें, जाने सकल जहान।
बूंद-बूंद बहुमूल्य है, दें पूरा सम्मान।।
हिंडन को जानें
हिंडन की देह
कोई हिंडन का ख्याल रखे न रखे लेकिन हिंडन को अपने दायित्व का ख्याल हमेशा रहता है। इस पूरी यात्रा के दौरान हिंडन पांच हजार वर्ग किलोमीटर का विशाल खादर क्षेत्र रचती है। हिंडन का परमार्थ तो देखिए! वह यमुना में विलीन होते-होते भी हिंडन-यमुना संगम पर गांव अहा-चुहारपुर और गढ़ी समसपुर के शानदार खादर बनाना नहीं भूलती। ...और तो और हिंडन कट के नाम से एक नहर बनकर अपने ही खादर को सींचने भी खुद ही निकल पड़ती है।किसी जल प्रवाह को जानना, उसकी देह को जानने जैसा ही है। जिस देह के बारे में हम यहां लिख रहे हैं, उसे कभी किसी ने हरनेन्द्री कहा, तो कभी किसी ने हरिनन्दी... हरनन्दी यानी शिव का नन्दी। इसीलिए हरनन्दी को नदी नहीं, नद्य कहना उचित होगा। यदि नदी या नद्य के उद्गम को उसका चरण मानें, तो हरनन्दी के चरण वहां स्थित हैं, जहां कभी स्वर्ग धरती से मिलने आया करता था और धरती की संतानें परम पिता से मिलने सशरीर स्वर्ग जाया करते थे: हरिद्वार और सहारनपुर। एक शैव क्षेत्र का प्रवेश द्वार, तो दूसरा शिव के नंदी का आसन। ये ही क्षेत्र आज उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के संधि क्षेत्र हैं।इसी बीच काल ने करवट ली। नई पढ़ाई ने दस्तक दी। भारत... इंडिया हुआ और हरनन्दी... हिंडन। पहले नाम बदला और कालांतर में देह ही बदल गई। आइये जाने - हिंडन की देह: उद्गम से संगम तक। हिंडन उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके से निकलने वाली सबसे प्रमुख नद्य है।
साधारण - सा जीवन : असाधारण किताबें
युद्ध की हिंसा से तो जोसेफ बच गए पर अपनी अंतरआत्मा से नहीं। उन्हें ये मंजूर नहीं था कि उनकी कमाई से वसूले कर का इस्तेमाल अमेरिकी सरकार युद्ध के लिए करे। उन्होंने गरीबी में रहने का प्रण लिया ताकि उन्हें सरकार को कर चुकाना ही न पड़े।
सिर पर स्लेट पत्थर की छत और पांव के नीचे अपने ही मल-मूत्र से बनी जमीन! जोसेफ जेंकिन्स का बस ही तो है संक्षिप्त परिचय। श्री जोसेफ ने पन्द्रह साल पहले एक पुस्तक लिखी थी ‘द स्लेट रूफ बाइबल’। 17 साल पहले लिखी थी ‘द ह्यूमन्योर हैंडबुक’। दोनों किताबों ने हजारों लोगों को प्रभावित किया है, प्रेरणा दी है। वे दूसरों को बताते नहीं हैं कि उनकी नीति क्या होनी चाहिए, उन्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। वे खुद ही वैसा जीवन जीते हैं और अपने जीवन की कथा सहज और सरल आवाज में बताते जाते हैं।जोसेफ जेंकिन्स की अहिंसक यात्रा एक युद्ध से ही शुरू हुई थी। उनके पिता अमेरिकी सेना में काम करते थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे जर्मनी में तैनात थे। वहीं श्री जोसेफ का जन्म सन् 1952 में हुआ था। सेना की नौकरी। हर कभी पिताजी का तबादला हो जाता। बालक जोसेफ हर साल-दो-साल में खुद को एक नए शहर में पाता, नए लोगों के बीच, नए संस्कारों में।
कुंभ से अमृत छलकाने की तैयारी
इलाहाबाद में संगम पर आस्था का सैलाब उमड़ने को तैयार है। सरकार भी जी-जान से तैयारियों में जुटी है। दंडी स्वामियों के साधना-स्थल पर कार्य गतिशील है। अखाड़ों के विशालकाय प्रवेश-द्वार वाले बैनर टंग चुके हैं। बांस की सीमा-रेखा बनाकर, टिन से घेर कर तंबुओं की परिधि बनाने में संन्यासी जुटे दिखने लगे हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा ईशान कोण में फहरा रही हैं। कई प्रख्यात धर्माचार्यों के पंडाल और प्रवेश-द्वार चकाचौंध पैदा कर रहे हैं। लैपटॉप और मोबाइल लिए साधु अपने निर्माण कार्य की निगरानी करते तथा परंपरा और आधुनिकता की संस्कृति में रचे-बसे दिख रहे हैं। सारा वातावरण किसी विशाल यज्ञ की तैयारियों में जुटा जान पड़ता है।
भारतीय जनमानस की अंतश्चेतना में आधुनिकता के मोहपाश के बावजूद धर्म और अध्यात्म के प्रति आस्था की जड़ें कितनी मजबूत हैं, इसका साक्षात्कार रेत पर बसे आस्था के शहर से गुजरते हुए आसानी से हो सकता है। कुंभ के लिए बसाए गए इस शहर में-‘चंवर जमुन अरु गंग तरंगा।
देखि होहिं दुख दारिद भंगा’।।
की पवित्र भावना से लोक-परलोक सुधारने के लिए जुटे श्रद्धालुओं, संतों-महात्माओं, नागाओं और धर्मभीरुओं की आस्थाएं न डगमगाएं इसलिए सरकार ने भी खासी मेहनत-मशक्कत कर रखी है। लंबी तैयारी है। लेकिन स्नान से पहले इन तैयारियों की परीक्षा संभव नहीं है।
महाकुंभ
इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर 14 जनवरी, मकर संक्रांति से दुनिया का सबसे बड़ा मेला होने को है, इसमें जमीन के हर जर्रे से 7 करोड़ लोग शामिल होंगे। यह मेला प्रति 12 वर्षों के अन्तराल पर आयोजित किया जाता है।
कुंभ निवेदन
ए नदिया जी के कुंभ बता!
उजरे-कारे सब मन बता!!
क्या गंगदीप जलाना याद तुम्हें
या कुंभ जगाना भूल गये ?
या भूल गये कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं,
गंगा यूं ही है महान नहीं।
नदी सभ्यतायें तो कई जनी,
पर संस्कृति गंग ही परवान चढ़ी।
क्यों जानना जरूरी है कुंभ परिचय
को कहि सकहिं, प्रयाग प्रभाऊं...
प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर साधु-संतों का आगमन बढ़ने लगा है। इसी क्रम में श्री शंभू पंचाग्नि अखाड़े की शोभायात्रा शाही अंदाज में निकाली गई। अखाड़ों की परंपरा से अलग हटकर पहली बार अग्नि अखाड़े ने अपने महामंडलेश्वरों की अलग से शोभायात्रा निकाली है। इस यात्रा को दर्जनों डीजे व हाथी-घोड़ों के साथ कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला गया। शोभा यात्रा में शामिल महामंडलेश्वरों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। यह शोभा यात्रा भारी सजावट के साथ हाथी, घोड़ों व चार पहिया वाहन को साथ लेकर हिंदी साहित्य सम्मेलन से निकली।को कहि सकहिं, प्रयाग प्रभाऊं...। इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार मानस की इन लाइनों को साकार करने में शिद्दत से जुटी है। इसकी वजह भी साफ है कि जब तक प्रयाग के प्रभाव का जिक्र नहीं होगा तब तक कुंभ की सफलता को लेकर पीठ नहीं थपथपाई जा सकेगी क्योंकि कुंभ महज प्रदेश का पर्व नहीं है, राष्ट्रीय जमावड़ा नहीं बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का सबब है। दुनिया भर की निगाह कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथ ही साथ इस आयोजन के बंदोबस्त को लेकर की गई व्यवस्था पर भी होती है। एक तरफ जहां कुंभ देश के धार्मिक समागम की अभिव्यक्ति होता है, वहीं साधु-संतों, नागाओं-हठयोगियों की परंपरा का ऐसा वाहक होता है जो न केवल हमें विस्मित करता है बल्कि हमारी संपन्न धार्मिक विरासत से भी हमें रू-ब-रू कराता है। साधना और प्रार्थना के साधनों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध भारत के हठयोगी कुंभ में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन बैठे हैं।
नोएडा-ग्रेनो बिल्डर्स भूजल दोहन स्थगनादेश
आज नोएडा, नोएडा एक्सटेंशन, ग्रेटर नोएडा के इलाकों में सैंकड़ों बिल्डर्स भूजल को मुफ्त का समझकर अंधाधुंध खींच रहे हैं। मुफ्त पानी से निर्माण की लागत घटती है, बिल्डर्स का मुनाफ़ा बढ़ता है; लेकिन मकान खरीदने वाले का कोई फायदा नहीं होता। उसे घाटा ही घाटा है। हम क्यों भूल जाते हैं कि इससे ग्रेटर नोएडा व नोएडा का भूजल उतरकर कई फीट और गहरे चला जाने वाला है। कल को यही इलाके पानी की कमी वाले इलाकों में तब्दील होने वाले हैं। बिल्डर्स तो इमारत बनाकर और मुनाफ़ा कमाकर चले जायेंगे, आगे चलकर इन बहुमंजिली इमारतों में रहने वालों को पानी कहां से मिलेगा?
नोएडा और ग्रेटर नोएडा के सभी बिल्डर्स पर निर्माण या किसी अन्य उद्देश्य हेतु भूमिगत जल निकालने पर जारी स्थगनादेश जल संरक्षण की गुहार बनकर एक बार फिर सामने है। जी हां! तब तक यह गुहार ही रहेगी, जब तक इसकी अनुपालना सुनिश्चित नहीं हो जाती। यूं तो 11 जनवरी, 2013 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्थगनादेश जारी कर दिया है। ट्रिब्यूनल के अगले निर्णय तक यह स्थगनादेश बरकरार भी रहेगा। इस स्थगनादेश की अनुपालना कराने की जिम्मेदारी भारत सरकार के केन्द्रीय भूजल प्राधिकरण की है। उसने नोएडा व ग्रेटर नोएडा के स्थानीय प्रशासन तथा विकास प्राधिकरणों को उक्त स्थगनादेश की पालना सुनिश्चित कराने का एक आदेश भेजने के अलावा अखबारों में एक सार्वजनिक सूचना भी जारी कर दी है। स्थगनादेश की पालना न करने वाले बिल्डर्स की बिजली आपूर्ति आदि बंद कर देने की कार्रवाई का अधिकार भी इस आदेश का हिस्सा है। लेकिन क्या कागज़ पर दर्ज इन आदेशों को जारी कर देने मात्र से इन इलाकों में चल रहे अंधाधुंध जलदोहन पर रोक लग जायेगी?गंगा : एक परिचय
पतित पावनी, गंगा मइया।
जगत जननी तु गंगा मइया।।
सुरसरि मां, गंगा मइया।
जगत जननी तु गंगा मइया।।
हिंडन नदी मामले में उ. प्र. सिंचाई सचिव तलब
ਦੇਵਾਸ: ਪਸੀਨੇ ਨਾਲ ਉਠਿਆ ਜਲਸਤਰ
जयाप्रभा ग्राम विकास मंडल
काम के मुद्दे
Animal Husbandry, Dairying & Fisheries, Agriculture, Children, Civic Issues, Disaster Management, Dalit Upliftment, Drinking Water, Education & Literacy, Food Processing, Health & Family Welfare, HIV/AIDS, Human Rights, Legal Awareness & Aid, Labour & Employment, Micro Finance (SHGs), Minority Issues, Micro Small & Medium Enterprises, Nutrition, Panchayati Raj, Right to Information & Advocacy, Rural Development & Poverty Alleviation, Tribal Affairs, Vocational Training, Water Resources, Women's Development & Empowerment
जागो जन जन
काम के मुद्दे
Animal Husbandry, Dairying & Fisheries, Aged/Elderly, Agriculture, Art & Culture, Biotechnology, Children, Civic Issues, Differently Abled, Disaster Management, Dalit Upliftment, Drinking Water, Education & Literacy, Environment & Forests, Food Processing, Health & Family Welfare, HIV/AIDS, Housing, Human Rights, Information & Communication Technology, Legal Awareness & Aid, Labour & Employment, Land Resources, Micro Finance (SHGs), Minority Issues, Micro Small & Medium Enterprises