कुंभ में उठी नदियों की जीवंतता को संवैधानिक दर्जे की मांग
क्षमा करें मगर सीवर तक में हैं सियासत
यमुना का संकट, जल का संकट
यमुना सात राज्यों से होकर बहती है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में इसका हिस्सा 21 फीसदी है, इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में 1.6 फीसदी, हरियाणा में 6.1 फीसदी, राजस्थान में 29.8 फीसदी, मध्यप्रदेश में 40 फीसदी और दिल्ली में सबसे कम 0.4 फीसदी। इस तरह से गंगा बेसिन का 40 फीसदी इलाका इसके जल क्षेत्र में आता है और इस तरह से यह देश की सबसे पवित्र गंगा नदी की सबसे बड़ी ट्रिब्यूटरी है।
धरती चुकाती है बोतलबंद पानी की कीमत
पानी के क्षेत्र में और आर्थिक रूप से संपन्न इलाकों में बोतलबंद पानी की शुरूआत विलासिता के रूप में हुई थी जो कि सामाजिक रुतबे, स्वास्थ्य या इच्छाओं के मद्देनजर अनावश्यक सी चीज है। पानी खूबसूरत पर्वतीय जलधाराओं से आता है, जिसे वे बोतलबंद कर खनिजयुक्त (मिनरल) पानी कहकर बेचते हैं। यह नल के पानी से एकदम भिन्न मीठा और कोकाकोला का एक ‘स्वस्थ्य अभिजात्य विकल्प’ था, लेकिन जल्द ही जिस तरह से इसका बाजार फैला, कंपनियों ने पहाड़ी झरनों से न लेकर नगरपालिका की टंकी का सामान्य पानी ही बोतलबंद कर बेचना शुरू कर दिया।
पंजाब पर कैंसर का कहर
देश के सबसे समृद्ध और खुशहाल समझे जाने वाले पंजाब के बारे में खुद पंजाब सरकार की एक डरा देने वाली रिपोर्ट सामने आई है। पंजाब में पिछले पांच साल में 33 हजार 318 लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है यानि हर रोज पंजाब में कैंसर 18 से ज्यादा लोगों को मौत के आगोश में ले लेता है।
क्या बच पाएगी नर्मदा की मेला संस्कृति
चीन के नये सामरिक हथियार : कचरा और पानी
चीन तिब्बत का इस्तेमाल आणविक हथियारों से उत्पन्न रेडियोधर्मी कचरा फेंकने के लिए कूड़ादान की तरह कर रहा है। न सिर्फ चीन, बल्कि अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने भी तिब्बत में आणविक रेडियोधर्मी कचरा फेंकने की छूट हासिल कर ली है।
कहानी का अंत ऐसा न हो!
गंगा का गला घोंटते बांध
भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और अध्यात्म की बातें गंगा की चर्चा किये बिना अधूरी हैं। सदियों से भारत की धरती पर बहती हुई गंगा इस देश की पहचान बनी हुई हैं, वह पहचान अब खोती जा रही है। धर्म ग्रथों में पढ़ते व महापुरुषों से सुनते आये हैं कि जब धरती से गंगा विलुप्त होंगी, तब प्रलयकाल निश्चित है। क्या पता वह प्रलयकाल अब आ गया हो! कहा गया है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि! हमारे देश की पहचान मिटाने वालों ने अब गंगा पर भी हमला बोल दिया।
समावेशी विकास का नया मंत्र
दिल्ली, आगरा के बाद अब इलाहाबाद में यमुना का अस्तित्व खतरे में
दो पावर प्लांटों के हैवी वाटर पंप, यमुना के कलेजे से खींच लेंगे सारा पानी
सरकार ने न तो यहां के किसानों से और न ही यमुना नदी के बल पर गुजारा करने वाले समुदाय से ही यह पूछने की जरूरत समझा कि यमुना नदी का पानी बेचना चाहिये या नहीं। जे.पी. ग्रुप ने पानी के लिये किससे अनुमति ली है, यह भी नहीं बताया जा रहा है। सरकार का दावा है कि इससे जनता को बिजली दी जायेगी और कंपनियों तथा इलाके में नौकरियों का विकास होगा। पर जनता समझने लगी है कि खाना-पानी छीनकर और खेती बर्बाद करके बिजली देना कौन सी समझदारी है? लोग भूखे पेट व प्यासे रहकर क्या करेंगे बिजली का?उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद जिले के बारा तहसील में जे.पी. ग्रुप का ‘प्रयाग राज पावर कारपोरेशन’नाम से बिजली उत्पादन कारखाना लग रहा है। इस पावर प्लांट के लिए करीब 150 क्यूसेक प्रति घंटा से अधिक पानी चाहिये, जिसके लिए 6 फुट व्यास की लोहे की पाइप बिछायी जा रही है। बारा के करीब ही करछना में भी इसी ग्रुप का एक पावर प्लांट लगाने की तैयारी हो रही है। इस प्लांट के लिए इतना ही पानी यमुना से लिया जायेगा। कंपनी ने यमुना नदी से पानी लेने के लिए उचित अनुमति भी नहीं लिया है। जबकि बारा के पड़ुआ गांव में यमुना के पेटे में इस समय जेपी ग्रुप की हैवी वाटर पंप मशीन लगाने का काम तेजी के साथ हो रहा है। इस वाटर पंप के करीब 200 मीटर दूरी पर ही सिंचाई विभाग का एक पंप पहले से लगा हुआ है, जिससे करीब 30 किमी के दायरे में लाखों हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई होती है। इस सिंचाई पंप की स्थापना उस समय की गई थी, जब देश भयंकर सूखे की चपेट से जूझ रहा था और लोग अमेरिका की घटिया लाल दलिया खाने को मजबूर थे।
मनरेगा में महालूट
भारत के जिस महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा से हिन्दुस्तान की तस्वीर बदलने का दावा किया गया था, उसकी ज़मीनी हकीक़त को देखने के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पौने दो लाख करोड़ की जिस योजना ने कांग्रेस को दोबारा दिल्ली की सत्ता दिला दी, उस योजना में भ्रष्टाचार का दीमक लग गया है।
स्वामी सानंद के उपवास को समर्थन क्यों?
17 अप्रैल 2012 में राष्ट्रीय नदी गंगा घाटी प्राधिकरण की अंतिम बैठक में यह तय हुआ था की गंगा और उसके सहायक नदियों के न्यूनतम प्रवाह पर एक समिति बने। .सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो? यह तय करने के लिये योजना आयोग के सदस्य श्रीमान् बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है।
इसमें भी सरकार का रवैया बहुत ही घपले का रहा है क्योंकि बांधों पर कोई रोक लगाये बिना न्यूनतम प्रवाह की बात बेमानी सी लगती है। इस समिति की रिपोर्ट भी आगे सरकती जा रही है। सरकार ने बहुत चालाकी से रिपोर्ट निकालने का समय कुंभ के बाद का समय रखा है।
यमुना बचाने को हुई महासभा
किसान महापंचायत में गुरुवार को उमड़ी भीड़ को देखकर यमुना रक्षक दल के पदाधिकारियों, पुष्टिमार्ग के संत, भाकियू के पदाधिकारियों ने यमुना मुक्ति आंदोलन को विजयश्री मिलने का भाव जाहिर किया। आंदोलन के प्रणेता संत रमेश बाबा ने कहा कि विजयश्री मिलना निश्चित है। हम जानते हैं कि जीत चुके हैं। विमुख लोग जब तक हार नहीं मानेंगे, तब तक वह चलते रहेंगे। हम कमजोर हैं, लेकिन हमसे अधिक ताकतवर भी कोई नहीं है।
‘रेलनीर’ : जितना निकालें, उतना संजोयें
यमुना की सुरक्षा के लिए बनी रिवर पुलिस पिकेट
यमुना शुद्धिकरण के लिए चलाया हस्ताक्षर अभियान
संघर्ष अब आमने-सामने, यमुना सत्याग्रही भूख हड़ताल पर
जीवन बचाना है तो यमुना बचाओ
यमुना सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रति यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3,297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है।मथुरा से कोई सात-आठ हजार लोग दिल्ली की तरफ कूच कर चुके हैं ताकि यमुना की पवित्रता सुनिश्चित की जा सके। ये लोग 10 मार्च को दिल्ली पहुंच जाएंगे। कुछ अराजक लोग भी इस आंदोलन में जुड़ गए जिन्होंने पथराव व ट्रेनों में तोड़-फोड़ भी की। स्वतः स्फूर्त अभियान जन-जागरूकता का अच्छा प्रयास तो है लेकिन इससे यमुना की गंदगी मिट पाएगी ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए। सरकार में बैठे लोग नदी के सौंदर्यीकरण और उस पर लंबे-चौड़े बजट से नदी के पुनर्जन्म की योजना बनाते हैं जबकि हकीक़त यह है कि यमुना को पैसे से ज्यादा समझकर-रखरखाव की जरूरत है। एक सपना था कि कॉमनवेल्थ गेम्स यानी अक्टूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी। लेकिन अब सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, दावा है कि यमुना साफ तो होगी लेकिन समय लगेगा।