Quantcast
Channel: Front Page Feed
Viewing all 2534 articles
Browse latest View live

कुंभ में उठी नदियों की जीवंतता को संवैधानिक दर्जे की मांग

$
0
0
आज भी भारत में नदियों को ‘वाटरबॉडी’ नहीं, मां कहा जाता है। क्या ऐसे भारत देश में नदियों को ‘नैचुरल पर्सन’ संवैधानिक दर्जा नहीं मिलना चाहिए? बहन मीनाक्षी द्वारा उछाले इस सवाल से मुझे नदियों की सेहत सुनिश्चित करने वाली एक खिड़की खुलती दिखाई दी। नदियों को मां कहने वाले देश में तो नदियों को ‘नैचुरल पर्सन’ से दो कदम आगे बढ़कर ‘नैचुरल मदर’ के संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए।कुंभ को शुरू हुए एक पखवाड़ा पूरा होने को है। इस बीच कुंभ के गलियारे में ख़बरें तो कई आई। दो शंकराचार्यों के बीच बद्रिकाश्रम पीठ पर दावे पर शास्त्रार्थ की चुनौती, चतुष्पथ को लेकर शंकराचार्य के कुंभ छोड़ने से लेकर सपा सांसद रेवती रमण सिंह के एक फोन पर कुंभ वापस आने तक, अजन्मी बेटियों की हत्या से लेकर बढ़ते पश्चिमी दुनिया के भारतीय संस्कृति पर दुष्प्रभाव की चिंता तक; लेकिन नदी की चिंता करने वाली ख़बरें सीमित ही थी। नदी की चिंता के कारण किसी शंकराचार्य ने कुंभ नहीं छोड़ा। खैर, नदी की चिंता करने वाली ख़बरें सीमित सही, पर अब आने लगी हैं। ‘ग्लोबल ग्रीन’ संस्था द्वारा इलाहाबाद नगर निगम के साथ मिलकर लिया गया ग्रीन कुंभ का सपना! इस सपने को सच करने को लेकर हाईकोर्ट द्वारा लगाया गया पॉली पन्नियों के उपयोग पर प्रतिबंध!...यह दोनों ख़बरें कुंभ शुरू होने से पहले ही आ गई थीं।

read more


क्षमा करें मगर सीवर तक में हैं सियासत

$
0
0
Author: 
सुनीता नारायण
Source: 
हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, अप्रैल 12, 2007, सुनीता नारायण की पुस्तक 'पर्यावरण की राजनीति' से साभार
हर समाज को यह समझना होगा कि उसके द्वारा छोड़े जा रहे कचरे का प्रबंधन उसे कैसे करना है। इससे हमें कई अहम चीजों और विषयों के बारे में सीखने को मिलता है। कचरा प्रबंधन की शिक्षा मुझे संयोग से ही मिली थी। चंद वर्षों पहले जिस कमेटी के साथ मैं काम कर रही थी उसे सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह नदियों में गंदगी छोड़कर उन्हें नारकीय हालात में पहुंचाने वाले शहर के नालों की सफाई इंतजामों पर राज्य सरकारों की कोशिशों की निगरानी करे। सरकार ने एक कार्ययोजना पेश की। इसमें उन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों को बनाने, मौजूदा प्लांट बेहतर करने, आवासीय कॉलोनियों में नाले-नालियों का निर्माण और कचरे को सीवेज प्लांट तक पहुंचाने वाली व्यवस्था की मरम्मत का काम करना था।

read more

यमुना का संकट, जल का संकट

$
0
0
Author: 
सुनीता नारायण
Source: 
दैनिक भास्कर, नई दिल्ली, मई 27, 2007, सुनीता नारायण की पुस्तक 'पर्यावरण की राजनीति' से साभार

यमुना सात राज्यों से होकर बहती है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में इसका हिस्सा 21 फीसदी है, इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में 1.6 फीसदी, हरियाणा में 6.1 फीसदी, राजस्थान में 29.8 फीसदी, मध्यप्रदेश में 40 फीसदी और दिल्ली में सबसे कम 0.4 फीसदी। इस तरह से गंगा बेसिन का 40 फीसदी इलाका इसके जल क्षेत्र में आता है और इस तरह से यह देश की सबसे पवित्र गंगा नदी की सबसे बड़ी ट्रिब्यूटरी है।

read more

धरती चुकाती है बोतलबंद पानी की कीमत

$
0
0
Author: 
सुनीता नारायण
Source: 
हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, सितम्बर 4, 2007, सुनीता नारायण की पुस्तक 'पर्यावरण की राजनीति' से साभार

पानी के क्षेत्र में और आर्थिक रूप से संपन्न इलाकों में बोतलबंद पानी की शुरूआत विलासिता के रूप में हुई थी जो कि सामाजिक रुतबे, स्वास्थ्य या इच्छाओं के मद्देनजर अनावश्यक सी चीज है। पानी खूबसूरत पर्वतीय जलधाराओं से आता है, जिसे वे बोतलबंद कर खनिजयुक्त (मिनरल) पानी कहकर बेचते हैं। यह नल के पानी से एकदम भिन्न मीठा और कोकाकोला का एक ‘स्वस्थ्य अभिजात्य विकल्प’ था, लेकिन जल्द ही जिस तरह से इसका बाजार फैला, कंपनियों ने पहाड़ी झरनों से न लेकर नगरपालिका की टंकी का सामान्य पानी ही बोतलबंद कर बेचना शुरू कर दिया।

read more

पंजाब पर कैंसर का कहर

$
0
0
Source: 
आईबीएन-7, 28 जनवरी 2013

देश के सबसे समृद्ध और खुशहाल समझे जाने वाले पंजाब के बारे में खुद पंजाब सरकार की एक डरा देने वाली रिपोर्ट सामने आई है। पंजाब में पिछले पांच साल में 33 हजार 318 लोगों की कैंसर से मौत हो चुकी है यानि हर रोज पंजाब में कैंसर 18 से ज्यादा लोगों को मौत के आगोश में ले लेता है।
इस खबर के स्रोत का लिंक: 

http://khabar.ibnlive.in.com

read more

क्या बच पाएगी नर्मदा की मेला संस्कृति

$
0
0
नर्मदा पर नया संकट आ गया है। कुछ थर्मल पावर प्लांट व एक परमाणु बिजलीघर बनने वाला है। उसके पानी को शहरों में ले जाने की योजनाएं बन रही हैं। पानी के निजीकरण की कोशिशें की जा रही हैं। उसकी सहायक नदियां पहले ही दम तोड़ती जा रही हैं। अगर आगे नर्मदा खत्म होती है, तो उसके आसपास का जनजीवन व मेला संस्कृति भी खतरे में पड़ जाएगी। मैं सोच रहा था क्या हम नर्मदा व उसकी मेला संस्कृति को बचा सकते हैं जिससे हमें जीवनशक्ति मिलती है। उसके सौंदर्य को बचा पाएंगे। नर्मदा जो सबके दुख-दर्द हरती है, क्या उसके दुख को और संकट को हम दूर कर पाएंगे?इस बार पिछले रविवार को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के बरमान मेले में जाना हुआ। वैसे तो यह मेला मकर संक्राति से शुरू होकर महीने भर तक चलता है। लेकिन मैं अपने परिवार के साथ चार दिन बाद पहुंचा। नरसिंहपुर में बहन के घर रात्रि विश्राम के बाद हम बरमान मेले के लिए रवाना हुए। दोपहर करीब 12 बजे के आसपास पहुंच गए। रास्ते में वाहनों की भारी आवक-जावक थी। बस, जीप, कार, मोटर साइकिल और पैदल यात्री नर्मदा मैया की ओर चले जा रहे थे। न टूटने वाली जनधारा नर्मदा की ओर बहती चली जा रही थी। बिना रुके, धीरे-धीरे यात्रियों की टोलियां अपने अपने झोले व पोटलियां उठाए खिंचती जा रही थी। नर्मदा मैया के जयकारे के साथ आगे बढ़ी जा रही थी। कुछ लोग अपने बच्चों को कंधों पर बिठाकर व उनकी अंगुली पकड़कर चल रहे थे। उन्हें कुछ लोग सावधानी रखने की हिदायत दे रहे थे। मेले में छोटे बच्चे इधर-उधर गुम हो जाते हैं, जो बाद में ढूंढने पर मिल जाते हैं।

read more

चीन के नये सामरिक हथियार : कचरा और पानी

$
0
0
चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर तीन नये बांधों की मंजूरी के ताजा खुलासे की खबर पर चिंता मीडिया में दिखी। सच पूछें तो भारत के प्रति चीन का समूचा रवैया ही चिंतित करने वाला है। सबसे ज्यादा चिंता रेडियोधर्मी कचरा और पानी को सामरिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होनी चाहिए; क्योंकि इससे पूरा उत्तर-पूर्व नई बर्बादी और आग की चपेट में आ जायेगा। यह किसी घोषित युद्ध से ज्यादा भयावह नतीजे देगा।किसने कल्पना की होगी कि कचरा और पानी सामरिक हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल हो सकते हैं ! लेकिन आज का सच यही है। पानी के लिए तीसरा विश्व युद्ध होगा, जब होगा, तब होगा; पानी व कचरे के जरिए एक अघोषित युद्ध तो अभी ही छिड़ चुका है। भारत के खिलाफ आज चीन के सबसे धारदार हथियार कचरा और पानी ही हैं। पानी और कचरे की इस सीधी लड़ाई में भारत हारेगा ही; क्योंकि यह ऐसा युद्ध है जिसमें धारा के ऊपरी हिस्से पर हावी योद्धा ही जीतता है। कचरा और पानी ऐसे दो धारी हथियार हैं... जो मारते भी हैं, बीमार भी करते हैं, आग भी लगाते है और एक नहीं, अनेक पीढियों को जड़ों से उजाड़ देते हैं। चीन ने भारत के खिलाफ इसका इस्तेमाल भी शुरु कर दिया है और तिब्बत की धरती बन गई है इन नये सामरिक हथियारों का चीनी अड्डा।

चीन तिब्बत का इस्तेमाल आणविक हथियारों से उत्पन्न रेडियोधर्मी कचरा फेंकने के लिए कूड़ादान की तरह कर रहा है। न सिर्फ चीन, बल्कि अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने भी तिब्बत में आणविक रेडियोधर्मी कचरा फेंकने की छूट हासिल कर ली है।

read more

कहानी का अंत ऐसा न हो!

$
0
0
Author: 
सुनीता नारायण
Source: 
हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, मार्च 22, 2008, सुनीता नारायण की पुस्तक 'पर्यावरण की राजनीति' से साभार
लोगों की ज़मीन, जंगल, जल और जीविका का क्या होगा, इसकी कोई चिंता नहीं दिख रही थी। इसके बाद मैंने रिपोर्ट देखी। रिपोर्ट में एक नक्शा तक नहीं था, जिसमें बसाहट या खेतों को दिखाया गया हो। रिपोर्ट में बड़े ही लापरवाह अंदाज में यह जिक्र है कि खनन परियोजना के ईर्द-गिर्द तालाब या नदी नहीं है। सड़कों और खदानों पर जल छिड़काव से लोगों को मिल रहे पानी की मात्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कुछ दूरी पर बहने वाली साल नदी और यहां तक कि अरब सागर पर पड़ने वाले असर के बारे में चर्चा की गई। लेकिन पहाड़ियों से निकलकर खेतों को सींचने वाली जलधाराओं का कोई जिक्र नहीं है।दक्षिणी गोवा का क्यूपेम तालुका। शांतादुर्गा मंदिर के सामुदायिक भवन की सारी कुर्सियां भर चुकी हैं। कुछ ही देर में शक्ति बॉक्साइट खदान के मामले में जन-सुनवाई शुरू होने वाली है। तभी फुसफुसाहट शुरू हो जाती है। मंदिर समिति को मंदिर प्रांगण में जनसुनवाई पर आपत्ति है। जनसुनवाई टाल दी जाती है। भीड़ छंट जाती है। इस बार भी तीस दिन पहले नोटिस देने के नियम को तोड़ा गया। महज दो दिन पहले पंचायत ने लोगों को बॉक्साइट परियोजना के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज करने के लिए बुलाया था। धान की खेती वाले गोवा के इस इलाके में बॉक्साइट खदान के विस्तार की योजना है और इसकी क्षमता एक लाख से बढ़ाकर दस लाख टन की जानी है। बॉक्साइट की खुदाई अब 26 हेक्टेयर से बढ़ाकर 826 हेक्टेयर क्षेत्र में की जानी है।

read more


गंगा का गला घोंटते बांध

$
0
0
Source: 
लोकसभा टीवी

भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और अध्यात्म की बातें गंगा की चर्चा किये बिना अधूरी हैं। सदियों से भारत की धरती पर बहती हुई गंगा इस देश की पहचान बनी हुई हैं, वह पहचान अब खोती जा रही है। धर्म ग्रथों में पढ़ते व महापुरुषों से सुनते आये हैं कि जब धरती से गंगा विलुप्त होंगी, तब प्रलयकाल निश्चित है। क्या पता वह प्रलयकाल अब आ गया हो! कहा गया है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि! हमारे देश की पहचान मिटाने वालों ने अब गंगा पर भी हमला बोल दिया।
इस खबर के स्रोत का लिंक: 

http://www.youtube.com

read more

समावेशी विकास का नया मंत्र

$
0
0
Author: 
चंदन श्रीवास्तव
Source: 
दैनिक भास्कर (ईपेपर), 14 फरवरी 2013
आने वाले दस साल में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखने के लिए देश की बिजली उत्पादन की क्षमता 300,000 मेगावाट हो जानी चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि जल-विद्युत परियोजनाओं की तादाद ज्यादा बढ़े। ज्यादातर बांध जैव-विविधता वाले क्षेत्रों में बनेंगे, इसलिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि इलाके में जैव-विविधता घटकर एक तिहाई रह जाएगी और वनों के आकार में तकरीबन 1700 वर्ग किलोमीटर की कमी आएगी। लोगों की जीविका या संस्कृति के नाश या फिर विस्थापन की बात तो खैर है ही।वन और पर्यावरण मंत्रालय के बारे में उद्योग-जगत की आम धारणा है कि वह पर्यावरण पर होने वाले नुकसान के आकलन की आड़ में परियोजनाओं की मंजूरी में अड़ंगे लगाता है। उद्योग-जगत की इस राय से प्रधानमंत्री भी सहमत हैं। बीते नवंबर महीने में मंत्रिमंडल में नए चेहरे शामिल हुए तो उसके आगे प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को दोहराते हुए कहा था कि वित्तीय घाटा देशी और विदेशी निवेश की राह रोक रहा है और निवेश की राह में खड़ी बाधाओं में एक नाम उन्होंने 'एन्वायरनमेंटल क्लियरेंस'का भी गिनाया था। ऐसा कहते समय निश्चित ही प्रधानमंत्री की नजर में वन और पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ीं वे समितियां रही होंगी, जिनका गठन मंत्रालय ने 2006 की एक अधिसूचना के बाद किया था। यह अधिसूचना पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत जारी की गई। अधिसूचना के केंद्र में पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता तो थी ही, एक कोशिश 'विकास'की धारणा को समग्रता में देखने की भी थी और इसी के अनुकूल जारी अधिसूचना के उद्देश्य बड़े महत्वाकांक्षी थे।

read more

दिल्ली, आगरा के बाद अब इलाहाबाद में यमुना का अस्तित्व खतरे में

$
0
0
Author: 
राजीव चन्देल

दो पावर प्लांटों के हैवी वाटर पंप, यमुना के कलेजे से खींच लेंगे सारा पानी


सरकार ने न तो यहां के किसानों से और न ही यमुना नदी के बल पर गुजारा करने वाले समुदाय से ही यह पूछने की जरूरत समझा कि यमुना नदी का पानी बेचना चाहिये या नहीं। जे.पी. ग्रुप ने पानी के लिये किससे अनुमति ली है, यह भी नहीं बताया जा रहा है। सरकार का दावा है कि इससे जनता को बिजली दी जायेगी और कंपनियों तथा इलाके में नौकरियों का विकास होगा। पर जनता समझने लगी है कि खाना-पानी छीनकर और खेती बर्बाद करके बिजली देना कौन सी समझदारी है? लोग भूखे पेट व प्यासे रहकर क्या करेंगे बिजली का?उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद जिले के बारा तहसील में जे.पी. ग्रुप का ‘प्रयाग राज पावर कारपोरेशन’नाम से बिजली उत्पादन कारखाना लग रहा है। इस पावर प्लांट के लिए करीब 150 क्यूसेक प्रति घंटा से अधिक पानी चाहिये, जिसके लिए 6 फुट व्यास की लोहे की पाइप बिछायी जा रही है। बारा के करीब ही करछना में भी इसी ग्रुप का एक पावर प्लांट लगाने की तैयारी हो रही है। इस प्लांट के लिए इतना ही पानी यमुना से लिया जायेगा। कंपनी ने यमुना नदी से पानी लेने के लिए उचित अनुमति भी नहीं लिया है। जबकि बारा के पड़ुआ गांव में यमुना के पेटे में इस समय जेपी ग्रुप की हैवी वाटर पंप मशीन लगाने का काम तेजी के साथ हो रहा है। इस वाटर पंप के करीब 200 मीटर दूरी पर ही सिंचाई विभाग का एक पंप पहले से लगा हुआ है, जिससे करीब 30 किमी के दायरे में लाखों हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई होती है। इस सिंचाई पंप की स्थापना उस समय की गई थी, जब देश भयंकर सूखे की चपेट से जूझ रहा था और लोग अमेरिका की घटिया लाल दलिया खाने को मजबूर थे।

read more

मनरेगा में महालूट

$
0
0
Source: 
आज तक, 20 फरवरी 2013

भारत के जिस महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा से हिन्दुस्तान की तस्वीर बदलने का दावा किया गया था, उसकी ज़मीनी हकीक़त को देखने के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पौने दो लाख करोड़ की जिस योजना ने कांग्रेस को दोबारा दिल्ली की सत्ता दिला दी, उस योजना में भ्रष्टाचार का दीमक लग गया है।
इस खबर के स्रोत का लिंक: 

http://aajtak.intoday.in

read more

स्वामी सानंद के उपवास को समर्थन क्यों?

$
0
0
Author: 
विमलभाई, माटू जनसंगठन
सानंद जी का निर्णय भले ही एकल हो किन्तु वह सरकारी कार्यनीति पर कड़ा प्रहार है। कांग्रेस व भाजपा दोनों राजनैतिक दलों की गंगा के प्रति झूठी आस्था की भी पोल खोलने के साथ कुंभ में जुटे संत समाज और गंगा को लेकर होने वाले सेमिनारों की ओर भी कड़ा इशारा है।स्वामी सानंद 26 जनवरी 2013 से तपस्या में हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश में शहडौल जिले के अमरकंटक स्थान से राष्ट्रीय नदी गंगा पर निर्माणाधीन बांधों को लेकर तपस्या शुरू की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वे अभी बनारस गये है। उनकी यह तपस्या सरकार के गंगा पर बांधों की ढुलमुल नीति को लेकर है। उनका कहना है कि उत्तराखंड में गंगा के पांचों प्रयागों के ऊपर सभी निर्माणधीन बांधों पर सरकार रोक लगाये। श्री जीडी अग्रवाल जी जो कि अब सन्यास लेकर स्वामी सानंद बन गये हैं।

17 अप्रैल 2012 में राष्ट्रीय नदी गंगा घाटी प्राधिकरण की अंतिम बैठक में यह तय हुआ था की गंगा और उसके सहायक नदियों के न्यूनतम प्रवाह पर एक समिति बने। .सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो? यह तय करने के लिये योजना आयोग के सदस्य श्रीमान् बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है।

इसमें भी सरकार का रवैया बहुत ही घपले का रहा है क्योंकि बांधों पर कोई रोक लगाये बिना न्यूनतम प्रवाह की बात बेमानी सी लगती है। इस समिति की रिपोर्ट भी आगे सरकती जा रही है। सरकार ने बहुत चालाकी से रिपोर्ट निकालने का समय कुंभ के बाद का समय रखा है।

read more

यमुना बचाने को हुई महासभा

$
0
0
Source: 
जागरण.कॉम मथुरा, 28 फरवरी 2013
यमुना महापंचायतयमुना महापंचायतबरसाना के विरक्त संत रमेश बाबा का यमुना बचाओ अभियान का कारवां एक बार फिर मथुरा से दिल्ली वाली सड़क कल से दिखेगा। लाखों लोगों को पदयात्रा में शामिल कर दिल्ली पहुंचने का लक्ष्य रखा गया है। वृन्दावन के छंटीकरा के मैदान में पहुंचे किसानों के संगठनों ने यमुना महापंचायत का आयोजन किया।

किसान महापंचायत में गुरुवार को उमड़ी भीड़ को देखकर यमुना रक्षक दल के पदाधिकारियों, पुष्टिमार्ग के संत, भाकियू के पदाधिकारियों ने यमुना मुक्ति आंदोलन को विजयश्री मिलने का भाव जाहिर किया। आंदोलन के प्रणेता संत रमेश बाबा ने कहा कि विजयश्री मिलना निश्चित है। हम जानते हैं कि जीत चुके हैं। विमुख लोग जब तक हार नहीं मानेंगे, तब तक वह चलते रहेंगे। हम कमजोर हैं, लेकिन हमसे अधिक ताकतवर भी कोई नहीं है।

read more

‘रेलनीर’ : जितना निकालें, उतना संजोयें

$
0
0
रेल, किराया और पानी के रिश्ते को ठीक से समझना हो, तो आप लंबी दूरी की जनरल बोगी में सफर अवश्य करें। एक ट्रेन में जनरल बोगी के डिब्बे भले ही चार से छह लगते हों, लेकिन उनमें लदी भीड़ क्षमता की ढाई गुनी तक होती है। प्लेटफॉर्म पर जाकर नल से पानी लाना तो दूर, कई बार डिब्बे में अपनी जगह से हिलने तक की नौबत नहीं होती। आखिर लोग रिजर्वेशन का पैसा बचाने के उद्देश्य से ही जनरल बोगी के कष्ट सहते हैं। खासकर लंबी दूरी की ट्रेनों की हकीक़त यह है कि यात्री जनरल में सफर से जितना पैसा बचाते नहीं, उतना पैसा उन्हें बोतलबंद पानी खरीदकर पीने में खर्च करना पड़ता है।माननीय रेलमंत्री जनाब पवन कुमार बंसल जी संप्रग सरकार के इसी पंचवर्षीय कार्यकाल में एक नहीं, दो-दो बार जलसंसाधन मंत्री भी रह चुके हैं। श्री बंसल की छवि दायित्व के प्रति गंभीर रहने वाले व्यक्ति की हैं। अतः रेल बजट 2013-14 ने प्लेटफॉर्म क्षीर की चिंता भले ही न की हो,रेलनीर को आठ रुपये की घटी हुई कीमत पर मुहैया कराने की चिंता अवश्य की है। इसके लिए छह जगह रेल नीर बॉटलिंग संयंत्र लगाने की घोषणा भी कर दी है। गरीब के पानी की चिंता नहीं, मजबूरी के पानी पर नज़रे-इनायत! खैर! आपत्तिजनक यह है कि मंत्री जी ने वहां से भी पानी निकाल लेने की ‘बहादुरी’ दिखाई है, बेपानी होने के कारण जिस इलाके में आत्महत्याएँ हुईं...पलायन हुए। प्रश्न यह है कि क्या पूर्व में लगे रेलनीर संयंत्र जितना पानी निकालते हैं, उतना पानी धरती को वापस लौटा रहे हैं? क्या जिनके हिस्से का पानी निकालकर रेलनीर बोतलों में बंद होता है, रेलवे.. रेलनीर की कमाई का कोई जायज़ और तयशुदा हिस्सा उनकी खेती-पानी-आजीविका को बेहतर बनाने में खर्च करता है? यह सब नहीं होना आपत्तिजनक है।

read more


यमुना की सुरक्षा के लिए बनी रिवर पुलिस पिकेट

$
0
0
Source: 
इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)
रिवर पुलिस आगरा यमुना में कचरा व प्रदूषण करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करती हुईरिवर पुलिस आगरा यमुना में कचरा व प्रदूषण करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करती हुईकरीब 15 साल पहले मथुरा के नेता गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी की ओर से दायर याचिका में यमुना प्रदूषण के मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने यमुना नदी में मछली समेत किसी भी तरह के जलचर को पकड़ने पर रोक लगा दी थी इसी के साथ यमुना नदी के किनारे के सभी जिलों के पुलिस प्रशासन को इस रोक पर कार्रवाई करने के आदेश दिए थे।

read more

यमुना शुद्धिकरण के लिए चलाया हस्ताक्षर अभियान

$
0
0
Source: 
इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)
यमुना शुद्धिकरण के लिए स्टॉल लगाकर हस्ताक्षर करवाए गएयमुना शुद्धिकरण के लिए स्टॉल लगाकर हस्ताक्षर करवाए गएयमुना शुद्धिकरण और यमुना की निर्मलता, अविरलता के लिए आगरा में हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। 2008-10 तक लगभग 35 हजार लोगों ने यमुना के शुद्धिकरण के लिए अपने हस्ताक्षर कर अपनी मंशा जाहिर की।

read more

संघर्ष अब आमने-सामने, यमुना सत्याग्रही भूख हड़ताल पर

$
0
0
Author: 
द्वारकेश बर्मन
यमुना पदयात्रायमुना पदयात्रायमुना मुक्ति पदयात्रा का आज 12वां दिन है। 1 मार्च को वृंदावन से शुरू हुई इस यात्रा में किसानों, संतों दोनों की भागीदारी हो रही है। वृंदावन से 10-15 हजार लोगों की शुरू हुई यह यात्रा 12वें दिन दिल्ली पहुंच चुकी है। सरिता विहार के पास आली गांव में यात्री पड़ाव डाले हुए हैं।

read more

जीवन बचाना है तो यमुना बचाओ

$
0
0
Author: 
पंकज चतुर्वेदी
Source: 
नेशनल दुनिया, 10 मार्च 2013
विकास की बुलंदियों की ओर उछलते देश में अमृत बांटने वाली यमुना आज खुद जहर पीने को अभिशप्त है। यमुना की दुर्दशा तो और भी अधिक विचारणीय है, कारण- यह देश के शक्ति-केंद्र दिल्ली में ही सबसे अधिक दूषित होती है। यमुना की पावन धारा दिल्ली में आकर एक नाला बन जाती है। आंकड़ों और कागज़ों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उस धन से एक समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी। ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइड्स और लोहा, जिंक आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं।

यमुना सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो फीसदी है जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रति यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3,297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेश उत्तर में बसे पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूषण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता है।मथुरा से कोई सात-आठ हजार लोग दिल्ली की तरफ कूच कर चुके हैं ताकि यमुना की पवित्रता सुनिश्चित की जा सके। ये लोग 10 मार्च को दिल्ली पहुंच जाएंगे। कुछ अराजक लोग भी इस आंदोलन में जुड़ गए जिन्होंने पथराव व ट्रेनों में तोड़-फोड़ भी की। स्वतः स्फूर्त अभियान जन-जागरूकता का अच्छा प्रयास तो है लेकिन इससे यमुना की गंदगी मिट पाएगी ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए। सरकार में बैठे लोग नदी के सौंदर्यीकरण और उस पर लंबे-चौड़े बजट से नदी के पुनर्जन्म की योजना बनाते हैं जबकि हकीक़त यह है कि यमुना को पैसे से ज्यादा समझकर-रखरखाव की जरूरत है। एक सपना था कि कॉमनवेल्थ गेम्स यानी अक्टूबर-2010 तक लंदन की टेम्स नदी की ही तरह देश की राजधानी दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी। लेकिन अब सरकार ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं, दावा है कि यमुना साफ तो होगी लेकिन समय लगेगा।

read more

बच्चों ने मनाया ईको फ्रेंडली होली

$
0
0
ईको फ्रेंडली होलीईको फ्रेंडली होलीभारत उदय एजुकेशन सोसाइटी ने 22 मार्च विश्व जल दिवस के उपलक्ष्य में जल साक्षरता अभियान में के.एल.सी. प्ले स्कूल सरधना बाईपास कंकरखेड़ा में बच्चों को जल की महत्ता के बारे में बताया गया। इस अभियान के अंतर्गत बच्चों के बीच जैव विविधता, जल, कचरा प्रबंधन आदि विषय पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया।

read more

Viewing all 2534 articles
Browse latest View live




Latest Images