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पानी व पर्यावरण की फिक्रमंद फिल्मकारों की नयी फसल

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Author: 
उमेश कुमार राय

.मार्च में झारखंड का मौसम खुशगवार रहता है, लेकिन मार्च 2014 का मौसम झारखंड में कुछ अलग ही था। कैमरा व फिल्म की शूटिंग का अन्य साज-ओ-सामान लेकर भटक रहे क्रू के सदस्य दृश्य फिल्माने के लिये पलामू, हरिहरगंज, लातेहार, नेतारहाट व महुआडांड़ तक की खाक छान आये। इन जगहों पर शूटिंग करते हुए क्रू के सदस्यों व फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन व उनकी पत्नी मेघा श्रीराम डाल्टन ने महसूस किया कि इन क्षेत्रों में पानी की घोर किल्लत है। पानी के साथ ही इन इलाकों से जंगल भी गायब हो रहे थे और उनकी जगह कंक्रीट उग रहे थे।

मूलरूप से झारखंड के रहने वाले श्रीराम डाल्टन की पहचान फिल्म डायरेक्टर व प्रोड्यूसर के रूप में है। फिल्म ‘द लॉस्ट बहुरूपिया’ के लिये 61वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है।

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चक्रवात के चक्रव्यूह में जीवन के चमत्कार

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Source: 
राइजिंग टू द काल, 2014

अनुवाद - संजय तिवारी

.छह साल का बुल्लू खेलकूद के साथ-साथ एक काम रोज बहुत नियम से करता है। जब भी उसके पिता नाव लेकर आते या जाते हैं तो वह उस नाव की रस्सी को पेड़ से बाँधने खोलने का काम करता है। ऐसा करते हुए उसके पैर भले ही कीचड़ में गंदे हो जाते हैं लेकिन उसे मजा आता है। तटीय उड़ीसा के प्रहराजपुर के निवासी उसके पिता सुधीर पात्रा कहते हैं कि “ऐसा करना उसके अनुभव के लिये जरूरी है। आपको कुछ पता नहीं है कि कब समुद्र आपके दरवाजे पर दस्तक दे दे।”

तटीय उड़ीसा का समुद्री किनारा 480 किलोमीटर लंबा है। राज्य की 36 प्रतिशत आबादी राज्य के नौ तटवर्ती जिलोंं में निवास करती है। ये तटवर्ती जिले जलवायु परिवर्तन के सीधे प्रभाव क्षेत्र में पड़ते हैं। उड़ीसा के क्लाइमेटचैंज एक्शन प्लान 2010-15 के मुताबिक इन पाँच सालोंं के दौरान बंगाल की खाड़ी में औसतन हर साल पाँच चक्रवात आये हैं जिनमें से तीन उड़ीसा के तटवर्ती इलाकोंं तक पहुँचे हैं। राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का कहना है कि इनमें केन्द्रपाड़ा जिला सबसे ज्यादा प्रभावित होता है।

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इक्कतिस हजार तेईस परिवारों की सभ्यता समा जायेंगी पंचेश्वर बाँध में

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.सत्तर के दशक के बाद जब टिहरी बाँध का सपना लोगों को दिखाया गया उस वक्त एक बारगी टिहरीवासी इस तरह से उत्साहित थे कि मानों अब प्रत्येक टिहरीवासी को रोजगार और सुख-सुविधा के लिये कहीं और नहीं जाना पड़ेगा। हालाँकि हुआ इसका उल्टा। लोगों को अपनी जान और जीविका टिहरी बाँध की भेंट चढ़ानी पड़ी। दुनियाँ में टिहरी बाँध के विरोध का समर्थन मिला, मगर टिहरी बाँध बनकर 2003 में तैयार हो गया। अपने वायदे के अनुरूप टिहरी बाँध अब तक उतनी बिजली का उत्पादन नहीं कर पाया। खैर! उससे भी बड़ा बाँध काली नदी पर ‘पंचेश्वर बाँध’ (पंचेश्वर जलविद्युत परियोजना) भारत और नेपाल के बीच बनने जा रहा है। यह भी शुरुआती दौर से विवादों में चलता आ रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक टिहरी बाँध से 125 गाँव पूर्ण रूप से प्रभावित हुए थे, अब पंचेश्वर बाँध से 60 गाँवों के 31023 परिवार पूर्ण प्रभावित हो रहे हैं। यानि भारत के 60 गाँव जलमग्न हो जाएँगे।

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बढ़ती आबादी के कारण जीना होगा मुहाल

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विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई पर विशेष

.आज दुनिया बढ़ती आबादी के विकराल संकट का सामना कर रही है। यह समूची दुनिया के लिये भयावह चुनौती है। असलियत यह है कि इस सदी के अंत तक दुनिया की आबादी साढ़े बारह अरब का आंकड़ा पार कर जायेगी। विश्व की आबादी इस समय सात अरब को पार कर चुकी है और हर साल इसमें अस्सी लाख की बढ़ोत्तरी हो रही है। शायद यही वजह रही है जिसके चलते दुनिया के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा है कि पृथ्वी पर टिके रहने में हमारी प्रजाति का कोई दीर्घकालिक भविष्य नहीं है। यदि मनुष्य बचे रहना चाहता है तो उसे 200 से 500 साल के अंदर पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष में नया ठिकाना खोज लेना होगा। बढ़ती आबादी समूची दुनिया के लिये एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है। सदी के अंत तक आबादी की भयावहता की आशंका से सभी चिंतित हैं। दरअसल आने वाले 83 सालों के दौरान सबसे ज्यादा आबादी अफ्रीका में बढ़ेगी।

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मन्दिरों से जुड़ा जल प्रबन्ध

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Source: 
डाउन टू अर्थ, जुलाई, 2017

तिरुपति के निकट त्रिचानूर स्थित मन्दिर का तालाबतिरुपति के निकट त्रिचानूर स्थित मन्दिर का तालाबदक्षिण भारत में खेतों की सिंचाई पारम्परिक रूप में पानी के छोटे-छोटे स्रोतों से की जाती थी। सिंचाई के संसाधनों के संचालन में मन्दिरों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता था। हालांकि चोल (9वीं से 12वीं सदी) और विजयनगर दोनों ही साम्राज्यों ने कृषि को बढ़ावा दिया, फिर भी इनमें से किसी ने भी सिंचाई और सार्वजनिक कार्यों के लिये अलग से विभाग नहीं बनाया। इन कार्यों को सामान्य लोगों, गाँवों के संगठनों और मन्दिरों पर छोड़ दिया गया था, क्योंकि ये भी जरूरी संसाधनों को राज्य की तरह ही आसानी से जुटा सकते थे।

उदाहरण के तौर पर, आन्ध्र प्रदेश के तिरुपति के पास स्थित शहर कालहस्ती में बना शैव मन्दिर चढ़ावों का उपयोग सिंचाई के लिये नहरों की खुदाई और मन्दिरों की अधिकृत जमीनों पर फिर अधिकार प्राप्त करने के लिये करता था।

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गंगा को लेकर एनजीटी सख्त

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Author: 
अमरनाथ

गंगागंगागंगा शुद्धीकरण के बत्तीस वर्ष पुराने मामले में 543 पन्नों का विस्तृत आदेश देते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने गंगा की धारा से 500 मीटर के दायरे में कूड़ा-कचरा जमा करने पर रोक लगा दी है और ऐसा करने पर 50 हजार रुपए जुर्माना लगाने का आदेश दिया है। साथ ही धारा से 100 मीटर के दायरे को ‘कोई विकास नही’ क्षेत्र घोषित कर दिया है जिसे हरित पट्टी बनाया जाएगा। गंगा को निर्मल बनाने की सरकारी कवायद पर गम्भीर प्रश्न उठाते हुए अधिकरण ने साफ संकेत दिया है कि गंगा को गन्दा करना बन्द करें, वह शुद्ध और निर्मल तो अपने आप हो जाएगी।

गंगा-प्रदूषण मामले को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ता एमसी मेहता ने 1985 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। उन्हीं दिनों नए-नए प्रधानमंत्री बने राजीव गाँधी ने गंगा एक्शन प्लान आरम्भ करने की घोषणा की।

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आज भी अनसुलझा है गंगा की प्रदूषण मुक्ति का सवाल

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गंगा नदीगंगा नदीआज गंगा की प्रदूषण मुक्ति का सवाल उलझ कर रह गया है। 2014 में राजग सरकार के अस्तित्व में आने के बाद से ही गंगा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकताओं में सर्वोपरि है। नमामि गंगे मिशन उसी की परिणति है। आज राजग सरकार अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर चुकी है लेकिन हालात इसके गवाह हैं कि गंगा बीते तीन सालों में सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी प्रदूषण से मुक्त नहीं हो पाई है।

वह बात दीगर है कि गंगा की सफाई को लेकर सरकार के मंत्रियों ने बयानों के मामले में कीर्तिमान बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। इस मामले में केन्द्रीय जल संसाधन, गंगा संरक्षण एवं नदी विकास मंत्री उमा भारती शीर्ष पर हैं। जबकि हकीकत यह है कि गंगा की सफाई को लेकर सरकार की हर कोशिश बेकार रही है।

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बाढ़ से निपटने के लिये तैयार (Flood-ready)

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Source: 
राइजिंग टू द काल, 2014

अनुवाद - संजय तिवारी

.जिबोन पेयांग पैंतालीस साल के हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि बाढ़ से कैसे निपटेंगे तो जवाब देने के लिये उनके मन में कोई निराशा नहीं होती। वो बहुत आत्मविश्वास से जवाब देते हैं कि बाढ़ से बचने के लिये क्या-क्या करना है। उनका पूरा परिवार बाढ़ से निपटने के लिये तैयार है। जब हमने उनसे पूछा कि ये बातें किसने बताई तो वो बहुत गर्व से बताते हैं, ‘मेरे बेटे केशव ने।’

उत्तर आसाम के धेमाजी जिले में दिहरी गाँव के रहने वाले पेयांग के गाँव में पहले बाढ़ नहीं आती थी। लेकिन अब बीते कुछ सालों से बाढ़ का पानी उनके गाँव को भी घेरने लगा है। साल में दो से तीन बार उनका गाँव बाढ़ के पानी से घिर जाता है और लगातार बाढ़ का पानी घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है।

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मायके से ही मैली होकर चलती है गंगा

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Author: 
अमरनाथ

गंगा नदीगंगा नदीगंगा अपने मायके में ही मैली हो जाती है। गोमुख से उत्तरकाशी के बीच दस छोटे-बड़े कस्बे हैं। तीर्थयात्रा-काल में इन स्थानों पर औसतन एक लाख लोग होते हैं। इनमें से कहीं भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। करीब छह हजार की स्थायी आबादी वाले देवप्रयाग कस्बे में भागीरथी और अलकनंदा के मिलने के बाद गंगा बनती है। इस कस्बे में छह नाले सीधे गंगा में गिरते हैं, ट्रीटमेंट प्लांट 2010 से बन ही रहा है। ऋषिकेश में 12 नाले गंगा में जाते हैं, वहाँ लक्ष्मण झूला और त्रिवेणी घाट के बीच ट्रीटमेंट प्लांट तो बन गया है, पर उसके संचालन में कठिनाई है और मलजल सीधे गंगा में प्रवाहित करने का आसान रास्ता अपनाया जाता है।

समाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई बताते हैं कि उत्तराखण्ड के 76 कस्बों व शहरों से रोजाना लगभग 860 लाख लीटर मलजल गंगा में बहाया जाता है। इसके अलावा 17 नगर निकायों से निकला लगभग 70 टन कचरा भी गंगा के हिस्से आता है।

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कुपोषण के कारण फैल रहा है बच्चों में फ्लोरोसिस

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स्केलेटल फ्लोरोसिस से पीड़ित बच्चास्केलेटल फ्लोरोसिस से पीड़ित बच्चाधार। जिले के ग्रामीण क्षेत्र में फ्लोराइड को लेकर जिस तरह की जागरुकता की आवश्यकता है, वह मैदानी स्तर पर नहीं दिख रही है।

दरअसल कुपोषण और फ्लोराइड दोनों का आपस में सम्बन्ध है। जिले में कुपोषण के कारण कई बच्चे इसका शिकार होते जा रहे हैं। वहीं अभी भी लड़के और लड़कियों में खानपान में भेदभाव किया जा रहा है। इसी वजह से फ्लोराइड प्रभावित क्षेत्रों में जहाँ कुपोषण है, वहाँ पर बच्चों की स्थिति चिन्ताजनक है। माना जा रहा है कि कैल्शियम, विटामिन सी से लेकर अन्य कई जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं इसीलिये इस तरह की स्थिति बनी है।

फ्लोराइड की मात्रा पानी में अधिक होने के कारण बच्चे दन्तीय फ्लोरोसिस से प्रभावित हो रहे हैं। इस तरह के हालात में कहीं-न-कहीं बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

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निर्मल हिण्डन उद्गम यात्रा से प्रमाणित हुआ हिण्डन का वास्तविक उद्गम

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Author: 
रमन कान्त

.पचास के दशक से यमुना नदी की प्रमुख सहायक नदी हिण्डन का उद्गम सहारनपुर में पुर का टांडा गाँव के जंगल को माना जाता रहा है, लेकिन नई खोज से हिण्डन नदी के उद्गम को लेकर चल रही जद्दोजहद आखिर अब समाप्त हो चुकी है। ब्रिटिश गजेटियर, सेटेलाइट मैपिंग और ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हायड्रोलॉजी’, रुड़की के अनुसार हिण्डन का वास्तविक स्थल शिवालिक हिल्स के नीचे की पहाड़ियाँ हैं। यहाँ पानी घने जंगल और कुछ झरनों से बहता है, जिससे कि हिण्डन नदी बनती है। यह नदी सहारनपुर जनपद की बेहट तहसील के मुजफ्फराबाद ब्लॉक के ऊपरी भाग के निचले हिस्से से निकलती है। इस धारा को यहाँ बसे वन गुर्जर कालूवाला खोल व गुलेरिया के नाम से जानते हैं जोकि आगे चलने पर हिण्डन बनती है,

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टॉयलेट, एक प्रेम कथा - Toilet, Ek Prem Katha : शौच और सोच के बीच एक व्यंग्यकथा

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Author: 
उमेश कुमार राय

डायरेक्टर :श्री नारायण सिंह
लेखक: सिद्धार्थ-गरिमा
कलाकार :अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सुधीर पांडेय और अनुपम खेर
मूवी टाइप :ड्रामा
अवधि : 2 घंटा 35 मिनट

.आज भी खुले में शौच बड़ा मुद्दा है, अभी भी देश में साठ फीसदी से ज्यादा लोग खुले में शौच के आदी हैं। ‘खुले में शौच’ एक आदत है, साथ ही एक सोच है, जिसने भारत को गंदगी का नाबदान बना रखा है। फिल्म खेतों और खुले में शौच करने की आदत पर करारा व्यंग्य है।

कहानी की शुरुआत


मथुरा का नंदगाँव अभी पूरी तरह नींद की आगोश में है। रात का अंतिम पहर खत्म होने में कुछेक घंटे बाकी हैं। इससे पहले महिलाएँ हाथों में लोटा और लालटेन लेकर निकल पड़ी हैं। रास्ते में वे एक-दूसरे से खूब हँसी-मजाक करती हैं। यह वक्त उनके लिये आजादी का वक्त है।

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कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा : भरी बारिश में जल संकट

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.तेजी से बिगड़ते पर्यावरण के नुकसान अब हमें साफ़–साफ़ दिखने लगे हैं। इस मानसून में देश के अलग–अलग हिस्सों में कहीं भयावह बाढ़ के हालातों का सामना करना पड़ रहा है तो कहीं लोग पीने के पानी तक को मोहताज हुए जा रहे हैं। मानसून का आधे से ज़्यादा मौसम बीत गया है लेकिन इतनी भी बारिश नहीं हुई है कि नदी–नाले, कुएँ–बावड़ी और तालाब भर सकें। अकेले मध्यप्रदेश के आधे से ज़्यादा जिलों में पर्याप्त बारिश नहीं हो सकी है। कुछ दिनों में हालात नहीं सुधरे तो स्थिति बिगड़ सकती है। अभी यह दृश्य है तो इस पूरे साल पानी के भयावह संकट की कल्पना से ही सिहरन होने लगती है।

मध्यप्रदेश के मालवा–निमाड़ इलाके में जहाँ कुछ सालों पहले तक 'पग–पग रोटी, डग–डग नीर'से पहचाना जाता था, आज हालत यह हो चुकी है कि इस इलाके और आस-पास के करीब 20 जिलों में अभी से पानी को लेकर कोहराम शुरू हो गया है। यहाँ एक जून से लेकर 15 अगस्त तक महज सामान्य से 20 फीसदी बारिश ही हुई है। यहाँ के तमाम जलस्रोत सूखे पड़े हैं।

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मच्छर मारने के तरीके, कहीं आदमी तो नहीं मार रहे

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Author: 
वी.पी. शर्मा
Source: 
स्रोत फीचर्स, सितंबर 2001

‘विश्व मच्छर दिवस’ पर विशेष - Special on 'World Mosquito Day'


मच्छर से कौन परेशान नहीं! और क्या-क्या उपाय नहीं किए मच्छर भगाने के लिये- तेल, अगरबत्ती, टिकिया, डीडीटी का छिड़काव, वेपोराइजर्स। परन्तु मच्छर भगाने का कारगर उपाय ढूँढने में हम इतने मसरूफ रहे कि इन उपायों का हमारे शरीर और सेहत पर क्या असर पड़ता है, यह पक्ष बहुत हद तक अनदेखा रह गया। इसी पक्ष की पड़ताल करता यह लेख अन्त में मच्छर भगाने के सुरक्षित, सेहतमन्द विकल्पों की भी जानकारी देता है।

मच्छरमच्छरगर्मियों और सर्दियों के कुछ समय को छोड़ दिया जाय तो हमारे गाँव व शहरों में लगभग साल भर मच्छरों की भिनभिनाहट सुनी जा सकती है। मच्छर मलेरिया, हाथीपांव तथा कई प्रकार के वायरल रोग जैसे जापानी इनसेफेलाइटिस, डेंगू, दिमागी बुखार, पीत ज्वर (अफ्रीका में) आदि रोग फैलाते हैं।

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छोटी नदियों की वजह से आई यह बाढ़

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Author: 
अमरनाथ

.बिहार के पश्चिम-उत्तर छोर पर पश्चिम चंपारण जिले के एक चॅंवर से निकलती है नदी सिकरहना, जो नेपाल की ओर से आने वाली अनेक छोटी-छोटी जलधाराओं का पानी समेटते हुए चंपारण, मुजफफरपुर, समस्तीपुर जिलों से होकर खगड़िया जिले में गंगा में समाहित हो जाती है। यह पूरी तरह मैदानी नदी है और गंडक नदी के पूरब-उत्तर के पूरे इलाके में हुई बरसात के पानी की निकासी का साधन है। इस बार की बाढ़ की शुरूआत इसी सिकरहना नदी से हुई और चंपारण जिले के अनेक शहरों, कस्बों में पानी घूसा, सडकें टूट गई और रेलमार्ग बंद हो गया। यहाँ से पानी निकलेगा तो रास्ते के जिलों को डूबोते हुए बढ़ेगा।

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परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (Atomic energy rules in India in Hindi)

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(1962 का अधिनियम संख्यांक 33)


{15 सितम्बर, 1962}

भारत की जनता के कल्याण के लिये और अन्य शान्तिपूर्ण प्रयोजनों के लिये परमाणु ऊर्जा के विकास, नियंत्रण और उपयोग के लिये और उससे सम्बद्ध बातों के निमित्त उपबन्ध करने के लिये अधिनियम भारत गणराज्य के तेरहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ -


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 है।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख1को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

2. परिभाषाएँ और निवर्चन


(1) इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो -

(क) ‘परमाणु ऊर्जा’ से परमाणु केन्द्रक द्वारा विखण्डन और संलयन की प्रक्रियाओं सहित किसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप निकली ऊर्जा अभिप्रेत है;
(ख) विखंड्य सामग्री से अभिप्रेत है यूरेनियम 233, यूरेनियम 235, प्लूटोनियम या कोई अन्य सामग्री जिसमें ये पदार्थ हैं या कोई ऐसी अन्य सामग्री है जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस रूप में घोषित करे;
2[(खख) “सरकारी कम्पनी” से ऐसी कम्पनी अभिप्रेत है, जिसमें -

(i) केन्द्रीय सरकार द्वारा इक्यावन प्रतिशत से अन्यून समादत्त शेयर पूँजीधारित की जाती है; या

(ii) सम्पूर्ण समादत्त शेयर पूँजी, उपखण्ड (i) में विनिर्दिष्ट एक या अधिक कम्पनियों द्वारा धारित की जाती है और इसके संगम अनुच्छेदों द्वारा केन्द्रीय सरकार को इसके निदेशक बोर्ड को गठित और पुनर्गठित करने के लिये सशक्त करती है;}

(ग) “खनिज” के अन्तर्गत ऐसे सभी पदार्थ हैं जो मृदा से (जिसके अन्तर्गत जलोढ़ या चट्टानें हैं) भूमिगत या सतह पर कार्यकरण द्वारा प्राप्त किये गए हैं या प्राप्त किये जा सकते हैं;

(घ) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;

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नलगोंडा का नायक

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Author: 
संजय तिवारी

करिंगू अजय सिर्फ चौदह साल के हैं लेकिन खेलने कूदने की इस उम्र में उनका शरीर एक जिन्दा लाश बनकर रह गया है। फ्लोरोसिस नामक जहरीली बीमारी ने उनके शरीर को एक गठरी बनाकर रख दिया है। उनके शरीर पर तकिया बाँधकर रखा जाता है ताकि हड्डियों का दर्द उन्हें कम तकलीफ दे। उन्हीं के पड़ोस की उन्नीस साल के वीरमाला राजिता की हड्डियाँ इस तरह से मुड़ गयी हैं कि वो मुश्किल से जमीन पर रेंगकर चल पाती हैं। राजिता कहती हैं, “मेरा कोई जीवन नहीं है। मैं हर समय घर पर रहती हूँ। कहीं जा नहीं सकती। बड़े लोग घर पर आते हैं जिनमें नेता और फिल्मी हस्तियाँ सभी शामिल हैं लेकिन मदद कोई नहीं करता। सब सहानुभूति दिखाकर चले जाते हैं।”

कांचुक्तला सुभाषराजिता और अजय की यह दर्दभरी कहानी न इकलौती है और न ही आखिरी। तेलंगाना के नलगोंडा जिले में सदियों से हड्डियों की यह चीख पुकार जारी है। इन्हीं दर्दभरी पुकारोंं में एक आवाज कंचुकटला सुभाष की भी है। अधेड़ हो चुके सुभाष के तन पर तो फ्लोरोसिस नामक घातक बीमारी का कोई असर नहीं है लेकिन उनके मन और जीवन पर फ्लोराइड का गहरा असर हुआ है।

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भाण्डागारण निगम अधिनियम, 1962 (General warehouse rules and regulations in India in Hindi)

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(1962 का अधिनियम संख्यांक 58)


{19 दिसम्बर, 1962}


कृषि उपज और कतिपय अन्य वस्तुओं के भाण्डागारण के प्रयोजन के लिये निगमों के निगमन और विनियमन का तथा उनसे सम्बन्धित विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

भारत गणराज्य के तेरहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भाण्डागारण निगम अधिनियम, 1962 है।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह ऐसी तारीख2को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:-

(क) “कृषि उपज” से निम्नलिखित वस्तु-वर्गों में से कोई वर्ग अभिप्रेत है, अर्थात:-

(i) खाद्य पदार्थ जिसके अन्तर्गत खाद्य तिलहन भी हैं,
(ii) पशुओं का चारा जिसके अन्तर्गत खली और अन्य सारकृत चारे भी हैं,
(iii) कच्ची कपास, चाहे वह ओटी हुई हो या न हो और बिनौला,
(iv) कच्चा पटसन, और
(v) वनस्पति तेल;
(ख) “समुचित सरकार” से केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार और राज्य भाण्डागारण निगम के सम्बन्ध में राज्य सरकार अभिप्रेत है;

(ग) “केन्द्रीय भाण्डागारण निगम” से धारा 3 के अधीन स्थापित केन्द्रीय भाण्डागारण निगम अभिप्रेत है;

(घ) “सहकारी सोसाइटी” से सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2) के अधीन या सहकारी सोसाइटियों से सम्बन्धित ऐसी किसी अन्य विधि के अधीन, जो किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त हो, रजिस्ट्रीकृत या रजिस्ट्रीकृत समझी जाने वाली ऐसी कोई सोसाइटी अभिप्रेत है, जो कृषि उपज या किसी अधिसूचित वस्तु के प्रसंस्करण, विपणन, भाण्डाकरण, निर्यात या आयात में या बीमा कारबार में लगी हुई है तथा इसके अन्तर्गत सहकारी भूमि बन्धक बैंक भी है;

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खाद्य निगम अधिनियम, 1964 (Food Corporation Act, 1964 in Hindi)

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(1964 का अधिनियम संख्यांक 37)


{10दिसम्बर, 1964}


खाद्यान्न और अन्य खाद्य पदार्थों में व्यापार करने के प्रयोजन के लिये तथा तत्सम्बन्धित और तदानुषंगिक विषयों के लिये खाद्य निगमों के स्थापनार्थ उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

भारत गणराज्य के पन्द्रहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) यह अधिनियम खाद्य निगम अधिनियम, 1964 कहा जा सकेगा।
(2) इसका विस्तार 1***सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख2को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(क) “निगम” से धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय खाद्य निगम अभिप्रेत है;
(ख) “खाद्य निगम” से धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय खाद्य निगम या धारा 17 के अधीन स्थापित राज्य खाद्य निगम अभिप्रेत है;
3{(खख) खाद्य पदार्थ में खाद्य तिलहन और तेल है;}
(ग) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(घ) “अनुसूचित बैंक” से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की द्वितीय अनुसूची में तत्समय अन्तर्विष्ट बैंक अभिप्रेत है;
(ङ) “राज्य खाद्य निगम” से धारा 17 के अधीन स्थापित राज्य खाद्य निगम अभिप्रेत है;
(च) “वर्ष” से वित्तीय वर्ष अभिप्रेत है।

अध्याय 2


भारतीय खाद्य निगम


3. भारतीय खाद्य निगम की स्थापना


(1) उस तारीख4जो केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये एक निगम की स्थापना करेगी जो भारतीय खाद्य निगम नाम से ज्ञात होगा।

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अनियंत्रित बरसात से बदल रहा है भूगोल

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.न मालूम प्रकृति का रूप बरसात को लेकर इतना विकराल क्यों होता जा रहा है। मानसून समाप्त होने पर भी यहाँ बरसात खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। उत्तराखण्ड हिमालय में तो इस वर्ष बरसात ने सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। हर तीसरे दिन मौसम विभाग अलर्ट जारी कर देता है कि फिर से 84 घण्टे राज्य में बड़ी तीव्र वर्षा होने वाली है। इस पर कई बार स्कूलों की छुट्टी हो चुकी है तो कई विकास के काम पीछड़ते जा रहे हैं और तो और कई प्रकार की फसलें अगाती-पछाती जा रही है। जिससे आने वाले समय में खाद्य सुरक्षा की स्थिति गड़बड़ा सकती है ऐसा एक अनुमान लगाया जा रहा है। वर्षा की तीव्रता इतनी है कि अगर खेतों में कोई बीज यदि किसान ने बो भी दिया तो वह अगले दिन बहकर दूसरे स्थान पर दिखाई दे रहा है। नदी, नाले छोटे-छोटे गदेरे इन दिनों उफान पर है। पर्यावरण के जानकार इस परिस्थिति को प्राकृतिक संसाधनों पर हो रहे अनियोजित विकास का प्रभाव मान रहे हैं।

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