Author:
रामवृक्ष बेनीपुरी
जब बाढ़ अपने ओज पर होती, वह बिसेसर को नाव पर बिठाकर चल पड़ते चौर की ओर! दिन में ही नहीं; अंधेरी रात को भी। ‘डरना मत बेटे, बाढ़ में देवी-देवता होते हैं, भूत-पिशाच नहीं।’ जब नाव बीच चौर में पहुँचती, बूढ़ा पतवार चलाना छोड़ देता, नाव को स्थिर कर देता और उसकी मांगी पर जाल लिए खड़ा होकर पानी की ओर एकटक घूरता! नाव धीरे-धीरे आप ही फिसल रही और बूढ़ा पानी की ओर इस तरह देख रहा होता, मानो अपनी नजर उसके भीतर तक घुसा देना चाहता हो! उस समय उसकी सूरत-लगता, नाव की मांगी पर तांबे की मूर्ति खड़ी है - निस्पंद निर्निमेष!‘बाढ़ आ रही है,’ सुकिया ने कहा। बिसेसर ने जरा सिर उठाकर उसकी ओर देखा और फिर अपने जाल की मरम्मत में लगा रहा।
बाढ़ आ रही है - क्या बिसेसर यह नहीं जानता? आज चार दिनों से जो उमस-उमस रही, उत्तर ओर, हिमालय की तराई में जो लगातार बिजली चमकती रही, बादल गरजते रहे, वे क्या सूचना नहीं देते थे कि बाढ़ आएगी ही।
बाढ़ उसके लिए कोई नई चीज है?
बचपन से ही वह बाढ़ देखता आया है। देखता आया है, उससे खेलता आया है।
बीच चौर में है उसका यह गांव। चार महीने तक तो यह एक टापू ही बना रहता है और कहीं वर्षा से बाढ़ आती हो, यहां तो सूखे से भी बाढ़ आती रही है।
गांव सूखा, खेत सूखे, तालाब सूखे, नाले सूखे; कि एक दिन अचानक शोर मचा, बाढ़ आई, बाढ़ आई!
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