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आखिर कब शुद्ध होगी हमारी गंगा मइया

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.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के देश की सत्ता पर काबिज होते ही गंगा सफाई के अपने वादे को पूरा करने में केन्द्र सरकार अपने पूरे जोशो-खरोश के साथ जी-जान से जुट तो गई है और नमामि गंगे मिशन की कामयाबी के लिये सरकार के सात मंत्रालय यथा जल संसाधन, शहरी विकास, ग्रामीण विकास, पेयजल व स्वच्छता, पर्यटन, मानव संसाधन विकास, आयुष व नौवहन मंत्रालय इस चुनौती का मुकाबला करने की दिशा में कोई कोर-कसर भी नहीं रख रहे हैं।

गंगा की शुद्धि के लिये केन्द्र सरकार ने बजट में 20 हजार करोड़ की राशि आवंटित की है। लेकिन इस सबके बावजूद गंगा के भविष्य को लेकर शंका बरकरार है और यह भी कि केन्द्र सरकार के लक्ष्य के अनुरूप गंगा प्रदूषण मुक्त हो पाएगी, इसमें भी सन्देह है।

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परिवार व यूनिवर्सिटी ने मिलकर गढ़ा गंगा व्यक्तित्व

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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 15वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
.सन 1932 में प्रोग्रेसिव सोच के जमींदार परिवार में मेरा जन्म हुआ। उत्तर प्रदेश, जिला मुजफ्फरनगर, तहसील कांधला के एक खेतिहर परिवार में मैं जन्मा। मेरे बाबा श्री बुधसिंह जी आर्यसमाजी थे। उनके ससुर डिप्टी कलक्टर और ससुर के छोटे भाई बैरिस्टर थे। सो, मेरे बाबाजी भी इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टर बनना चाहते थे। उन्होंने घर से पैसा निकाल लिया। जहाज का टिकट लेकर इंग्लैण्ड रवाना हो गए।

परिवार के लोग यह नहीं चाहते थे कि वह इंग्लैण्ड जाएँ। लिहाजा, उनके ससुर को कम्पलेन्ट की कि वह चोरी करके गए हैं।परिणाम यह हुआ कि उन्हें जहाज में ही गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच एक अंग्रेज से उनकी दोस्ती हो गई।

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सूखा बुन्देलखण्ड

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.अवर्षा, असमय वर्षा, अल्प वर्षा इन सब में सूखा आता है। बुन्देलखण्ड में पिछले लगभग एक दशक में सबसे अच्छी वर्षा 2012 और 2013 में ही हुई। बाकी के साल अल्प वर्षा के रहे। 2013 का साल अति वर्षा का रहा, और 2012-13 मे भी आँधी-तूफान और ओला वर्षा ने फसलों का काफी नुकसान किया। यानी कह सकते हैं कि बुन्देलखण्ड में किसानी के लिये पिछला दशक ही अच्छा नहीं रहा है। 10-12 सालों से अल्प वर्षा और कभी- कभार अति वर्षा और ओला वर्षा की मार झेलते- झेलते बुन्देलखण्ड के किसान और किसानी दोनों टूट गये हैं।

बुन्देलखण्ड में किसानी सबसे बुरे दौर में है। आये दिन सूखी फसलों को देखकर सदमे से किसानों की मौत हो रही है। जालौन के सिरसाकलार थाना क्षेत्र के गाँव पिथऊपुर के किसान लालाराम ने 10 बीघा जमीन में गेहूँ की फसल लगायी थी, फसल अच्छी नहीं हुई, जिससे दुखी होकर लालाराम ने खाना-पीना छोड़ दिया और 22 अप्रैल को सदमे में उसकी मौत हो गयी।

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पानी के संकट में फँसा हुआ देश

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.देश में पानी की उपलब्धता का आकलन करने और एकत्रित सूचना के आधार पर रिपोर्ट तैयार करने के उद्देश्य से केन्द्रीय जल आयोग की टीम पूरे देश में भेजी गई है। इस बात से आपको देश में जल संकट की वर्तमान स्थिति की गम्भीरता का अनुमान हो गया होगा। सूखा, बाढ़ और चक्रवात ने पिछले कुछ सालों में देश के अलग-अलग हिस्सों में जिस तरह कहर बरपाया है और हाल के दशकों में इस तरह की घटनाओं में जिस तरह वृद्धि हुई है, यह सब आने वाले किसी बड़े खतरे का संकेत जैसा ही है।

केन्द्र सरकार पहले मान चुकी है कि देश गम्भीर सूखे की चपेट में है। इस सूखे की चपेट में देश की 33 करोड़ आबादी है। उत्तर प्रदेश के पचास जिलों में साठ फीसदी से कम बारिश हुई। इन जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया है।

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सुखाड़ की तपिश झेलती औरतें

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Author: 
डॉ. कुमुदिनी पति
Source: 
राष्ट्रीय सहारा, 27 अप्रैल, 2016

.जब देश का बड़ा भूभाग सूखे की चपेट में आ गया हो, तो हम कल्पना कर सकते हैं कि महिलाओं को कितना कष्ट झेलना पड़ रहा होगा। आज सरकारी आँकड़े बता रहे हैं कि देश के 256 जिलों में सूखा पड़ा हुआ है और इससे लगभग 33 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। मीकांग बेसिन, यानी म्यांमार, थाईलैंड, कम्बोडिया, लाओस और वियतनाम बुरी तरह सूखा प्रभावित हैं।

दूसरी ओर भारत में मराठवाड़ा, विदर्भ, बुन्देलखण्ड, उत्तरी कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में सूखे का कहर है। सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि लगातार कई वर्षों से इस स्थिति के चलते खाद्य सुरक्षा प्रभावित है। हम जहाँ यह जानते हैं कि सभी को इसका प्रभाव झेलना पड़ता है, यह स्पष्ट है कि महिलाओं और बच्चों का कष्ट सबसे अधिक होगा, क्योंकि वे कहीं जा नहीं सकते।

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इस मैदान में एक झील दफन है, उसे हमने मारा है

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Author: 
जीशान अख्तर

.झील-झरनों का जिक्र ही मन में ठंडक भर देता है। अगर आपने झील-झरनों के सानिध्य में कुछ पल बिताए हैं तो आनन्द के चरम को महसूस भी किया होगा। करीब 5 साल पहले मैंने भी ऐसे ही चरम को महसूस किया। मन काफी समृद्ध महसूस करता था कि झाँसी से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर बरुआसागर कस्बे में एक झील (इसे स्वर्गाश्रम झरना भी कहते हैं) है, जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य, मनोहारी दृश्य का लुत्फ उठा सकते थे। मन होने पर कल-कल बहते झरने में नहा भी सकते थे। 10 से 15 फीट तक इसमें पानी रहता था।

दरअसल, आज जिस मैदान के बीचों-बीच मैं खड़ा हूँ, ये वही झील है, जो बुन्देलखण्ड के सबसे समृद्ध शहर झाँसी के बरुआसागर में है। 237 हेक्टेयर में फैली झील के मैदान में किसान खेती कर रहे हैं। खुरपी, फावड़े से फसल ठीक कर रहे हैं। एक युवक इसमें बने आशियाने में सो रहा है तो कोई इसमें बनाए गए कुओं से गन्दा पानी भर रहा है।

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डीएनए टेस्टः स्वच्छ भारत मिशन स्वच्छता स्टेटस रिपोर्ट 2016

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Author: 
सुष्मिता सेनगुफ्ता
Source: 
डाउन टू अर्थ

The rapid survey suggests that 42.5 per cent of rural household toilets and 87.9 per cent of urban household toilets have access to water (Photo Jitendra)भारत सरकार के स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन मंत्रालय (एमओएसपीआई- Ministry of Statistics and Programme Implementation) की तरफ से जारी की गई स्वच्छता स्टेट्स रिपोर्ट 2016 के मुताबिक भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों का इस्तेमाल का आँकड़ा 95.6 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 98.8 प्रतिशत है।

नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ- National Sample Survey Office) द्वारा भारत में ये सर्वेक्षण मई-जून 2015 के दौरान किया गया जिसमें 73,176 ग्रामीण और 41,538 शहरी घरेलू आबादी को कवर किया गया।

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सर गाँव के सात जलधारे

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.यूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।

यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गौमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले। वर्तमान में आठ धारे हो गए हैं।

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दक्षिणी राजस्थान में फ्लोरोसिस (Fluorosis in southern Rajasthan)

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Author: 
अखिलेश पाठक

क्षेत्र में एनपीपीसीएफ का क्रियान्वयन और जटिलताएँ
क्षेत्र में फ्लोरोसिस के सम्बन्ध में किये गए शोध


.पूरी दुनिया में फ्लोरोसिस पेयजल से जुड़ी एक प्रमुख व्याधि मानी जाती है। एशिया में भारत और चीन सबसे ज्यादा इस समस्या से जूझ रहे हैं। वैसे तो फ्लोरोसिस की बीमारी कई कारणों से हो सकती है जैसे भोजन अथवा औद्योगिक उत्सर्जन या किसी अन्य माध्यम से शरीर में फ्लोराइड की ग्राह्यता, लेकिन फ्लोराइडयुक्त पेयजल से होने वाला फ्लोरोसिस सबसे आम और गम्भीर होता है।

ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टैंडर्ड और इण्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार जल में फ्लोराइड की अधिकतम स्वीकार्य मात्रा 1.0 मिलीग्राम प्रति लीटर या 1.0 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे अधिक मात्रा होने पर उस जल को ग्रहण करने वाले पर फ्लोरोसिस होने का जोखिम मँडराता है।

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यह वक्त भविष्य सँवारने का है

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.देश में इस समय गर्मी चरम पर है और साथ ही आजादी के बाद के भयंकरतम सूखे की त्रासदी भी विकट रूप से सामने आ रही है। ऐसी विपरीत परिस्थितयों में भी कुछ गाँव-मजरे ऐसे भी हैं जो रेगिस्तान में ‘नखलिस्तान’ की तरह इस जलसंकट से निरापद हैं। असल में वे लोग पानी जैसी जरूरतों के लिये सरकार पर निर्भरता और प्रकृति को कोसने की आदतों से पहले ही मुक्त हो चुके थे।

ये वे लोग थे जिन्होंने आज की बड़ी-बड़ी इंजीनियरिंग की डिग्री धारी ज्ञान की बनिस्पत अपने पूर्वजों के देशज ज्ञान पर ज्यादा भरोसा किया। पानी की कमी के चले पयालन, प्रदर्शन आत्महत्या जैसी बहुत सी खबरें इस समय तैर रही हैं, लेकिन यह समय हताशा या निराशा का नहीं अपने आने वाले दिनों को पानीदार बनाने का है।

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जलसंकट कैसे दूर करें (How to overcome the water crisis)

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.इन दिनों पानी का संकट गहरा रहा है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और कई राज्यों में पीने के पानी की किल्लत हो रही है। यह समस्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। अब यह संकट स्थायी हो गया है। यह समस्या प्रकृति से ज्यादा मानव निर्मित है, इसका हल भी हमें ही निकालना होगा।

बहुत ज्यादा लम्बा अरसा नहीं हुआ मध्य प्रदेश की सतपुड़ा घाटी में बहुत समृद्ध वन थे। सदानीरा नदियाँ थीं। गाँव में कुएँ, तालाब, बावड़ियाँ थीं। नदी-नालों में पानी की बहुतायत थी। वर्षाजल को छोटे-छोटे बन्धानों में एकत्र किया जाता था जिससे सिंचाई, घरेलू निस्तार और मवेशियों को पानी मिल जाता था। किसान पहले बैलों से चलने वाली मोट से सिंचाई करते थे।

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गाँव सरकार, सबसे निकम्मी

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Author: 
मीनाक्षी अरोरा और केसर

.पंचायत राज दिवस यानि 24 अप्रैल 2016 को ‘ग्रामोदय से भारत उदय अभियान’ का नारा दिया गया। झारखण्ड के जमशेदपुर के जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गाँव पंचायतों को खुद अपनी योजना बनाने और लागू करने को ललकारा। पीएम ने दिल्ली की संसद से बड़ी गाँव की ग्रामसभा को बताते हुए कहा कि अब गाँवों के लिये अलग बजट आता है इसलिये गाँवों के लिये पैसों की कमी नहीं है।

केन्द्र सरकार की ‘ग्रामोदय से भारत उदय’ अभियान के तहत संकल्पना है कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के साथ ही ‘गाँव सरकार’ का चेहरा सबको दिखने लगे यानि उनके अधिकार को और स्पष्ट किया जाये। जिससे गाँव सरकार अपने निर्णय खुद करने लगें।

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बिन पानी जीवन कहाँ

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Author: 
अरुण कुमार ‘पानीबाबा’
Source: 
शुक्रवार, अप्रैल 2016

.यह निर्णय सरल नही कि वर्तमान जल संकट के विश्लेषण की प्रक्रिया का विषय प्रवेश किस बिन्दु से करें। जल संकट का मुद्दा जितना विकट, विकराल और संवेदनशील है उससे सैकड़ों गुना जटिल है। यह पतंग के माँझे की तरह उलझा हुआ विषय है। जितना सुलझाओ उतना और उलझ जाता है।

देश भर में सरकारी प्रयासों के अलावा, चार-पाँच हजार गैर-सरकारी संस्थाएँ तो अवश्य संलग्न हैं जो जल संकट के निराकरण का सतत अभ्यास कर रही हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पहले दो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे राष्ट्रीय नेता रहे हैं जिन्होंने ‘जी जान’ लगाकर इस समस्या के ‘निराकरण’ का हर सम्भव प्रयास किया था।

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The Right to Information Act, 2005

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article_source: 
http://righttoinformation.gov.in/rtiact.htm

No. 22 of 2005

[15th June, 2005]

An Act to provide for setting out the practical regime of right to information for citizens to secure access to information under the control of public authorities, in order to promote transparency and accountability in the working of every public authority, the constitution of a Central Information Commission and State Information Commissions and for matters connected therewith or incidental thereto.

Whereas the Constitution of India has established democratic Republic;

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जलसंकट है तो करें आरटीआई (RTI in Water Crisis)

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article_source: 
http://www.chauthiduniya.com/2016/03/rti.html

आवेदन का प्रारूप

सेवा में,

लोक सूचना अधिकारी

(विभाग का नाम)

(विभाग का पता)

 

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झिरियों, तालों के शहर में सूखे का कहर

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मध्य प्रदेश का रीवा जिला जो कभी 6000 तालाबों से आबाद था, जिसके आसपास के गाँवों में तमाम प्राकृतिक जलस्रोत उपलब्ध थे, वह आज जल संकट का शिकार है।

.देश के तमाम अन्य हिस्सों की तरह ही मध्य प्रदेश का रीवा जिला और बघेलखण्ड के तहत आने वाला उसके आसपास का पूरा क्षेत्र इन दिनों भीषण जल संकट से जूझ रहा है।

हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि स्थानीय मऊगंज तहसील की आबादी और वहाँ के विधायक सुखेंद्र सिंह ने पानी को लेकर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से उलझने तक की तैयारी कर ली है। उनका कहना है कि बाणसागर परियोजना से नहर के जरिए उत्तर प्रदेश जाने वाले पानी को तब तक जाने नहीं दिया जाएगा जब तक कि स्थानीय जरूरतें पूरी नहीं हो जातीं।उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो जनता नहर को तोड़ने तक से गुरेज नहीं करेगी।पानी की समस्या इंसानों, पशुओं और फसलों को समान रूप से कष्ट पहुँचा रही है।

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सूखे पर सर्वोच्च न्यायालय सख्त

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.बिल्ली के आँख बन्द करने का किस्सा कुछ इस तरह का है कि बिल्ली कुछ खाते-पीते वक्त अपनी आँखें बन्द कर लेती है तो मानती है कि उसकी आँखों के आगे जैसा अन्धेरा छाया है, वैसा अन्धेरा आस-पास हर तरफ छाया होगा। इस तरह वह आराम से दूध पी सकती है क्योंकि वह किसी को देख नहीं रही है।

देश में जब हर तरफ सूखे की वजह से हाहाकार मचा हुआ है, किसानों की फसल बर्बाद हो रही है, पानी की किल्लत की खबर आ रही है और देश की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को मानों कोई परवाह ही नहीं है। वे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का इन्तजार कर रहे हैं।

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कमी भोजन की नहीं प्रबन्धन की है

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.सूखे और पानी से त्रस्त बुन्देलखण्ड में जहाँ भूख से मौतें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच पानी एक्सप्रेस को लेकर विवाद में मशगूल हैं।

जिस समय देश विकासोन्मुखी व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उभर कर आये नए भारत की वर्षगाँठ की बधाईयाँ लेने व देने में मशगूल था, ठीक उसी समय एक ऐसी भी खबर आई जो राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों से वंचित रह गई। वह खबर एक ऐसे राज्य से आई जहाँ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली व खाद्य सुरक्षा योजनाओं की बानगी देश-दुनिया में दी जाती रही है।

ललितपुर जिले के गुगुरवारा गाँव के एक 45 साल केे शख्स की भूख से मौत अभी छह मई को हो गई।

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नैनी झील सूखेगी तो तराई में होगा जल संकट

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.उत्तराखण्ड स्थित पर्यटकों के लिये दुनिया में अपनी पहचान रखने वाली सरोवर नगरी की नैनी झील इस वक्त अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रही है। झील के चारों तरफ डेल्टा उभर आये हैं। इस वर्ष के आरम्भ में बारिश और बर्फबारी में भारी कमी आई है। इस झील को तरोताजा रखने वाले जंगलों में मौजूद प्राकृतिक तालाब सूख चुके हैं।

स्थानीय लोग बता रहे हैं कि नैनी झील के जलस्तर का गिरना मौसम परिवर्तन का सन्देश है। स्थानीय व्यापारी मायूस हैं कि यदि झील का रवैया इसी तरह बढ़ता जाये तो उनके व्यवसाय पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। झील के पानी का लगातार गिरना पर्यावरण के लिये चिन्ता का विषय बन गया है।

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बीएमसी को एनजीटी की झाड़

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भानपुर खंती मामले में भोपाल नगर निगम को एनजीटी की फटकार, कहा दो सप्ताह के अन्दर सभी स्थानीय जलस्रोत सील कर मुहैया कराए स्वच्छ पेयजल। शहर के कचरे के कारण जहरीला हो चुका है डेढ़ किमी दायरे का पानी

.राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) ने पिछले दिनों भोपाल नगर निगम को आदेश दिया कि वह भानपुर खंती क्षेत्र से डेढ़ किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी बोरवेल और हैण्डपम्प की बिजली आपूर्ति खत्म करे ताकि कोई उनसे पानी न ले सके। निगम को इन सभी जगहों पर ऐसे नोटिस लगाने का आदेश भी दिया गया जिन पर लिखा हो कि यह पानी प्रदूषित है और पीने के लायक नहीं है। निगम को यह सारा काम 14 दिन के भीतर करना होगा।

भानपुर खंती राजधानी भोपाल शहर से लगा वह इलाका है जिसका इस्तेमाल नगर निगम शहर का कचरा ठिकाने लगाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक निगम हर रोज यहाँ तकरीबन 600 टन कचरा ठिकाने लगाता है। इससे सटे हुए ढेर सारे रिहाइशी इलाके हैं।

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