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मेरा सबसे वाइड एक्सपोजर तो इंस्टीट्युशन्स के साथ हुआ : स्वामी सानंद

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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 18वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:

.निलय के बाद बोर्ड मीटिंग की अध्यक्षता कौन करे? मौजूद सदस्यों में कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के हनुमत राव ही सीनियर मोस्ट थे। उन्होंने ही चेयर किया। कार्य समिति ने केस करने हेतु अप्रूव कर दिया। अगले दो दिन में मैंने मिनिट्स (बैठक की कार्यवाही रिपोर्ट) तैयार कर दिये। मिनिट्स को साइन के लिये निलय चौधरी के पास भेजा।

आमतौर पर वह किसी भी फाइल में अधिकतम 15 दिन में साइन कर देते थे। मिनिट्स पढ़कर वह बोले कि इसे रहने ही दो। मैंने ऐसा करने से मना किया, तो बोले - ‘अच्छा इसमें बदलो। लिखो कि इस पर अगली बोर्ड बैठक में निर्णय किया जाएगा।’इससे देरी होगी; जानने के बावजूद मैंने मंजूर कर लिया।

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बेरुखी झेलती झील

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Author: 
प्रयाग पांडे
Source: 
शुक्रवार, अप्रैल 2016

.देशी-विदेशी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र और नैनीताल की संजीवनी नैनी झील सूखने के कगार पर है। इस बार ठंड के मौसम में ही झील के जलस्तर में जबरदस्त गिरावट आ गई। नैनी झील के पानी का स्तर करीब चार फीट नीचे पहुँच गया है। झील के जलस्तर में पिछले साल के मुकाबले करीब 9 फीट और 2014 के मुकाबले 7.5 फीट ज्यादा गिरावट आ गई है।

जलस्तर में गिरावट का यह सिलसिला लगातार जारी है। जानकारों के मुताबिक झील का जलस्तर रोजाना करीब 15 से 30 सेंटीमीटर गिर रहा है। जाड़ों के मौसम में झील के जलस्तर में इस कदर गिरावट इससे पहले कभी नहीं देखी गई।

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जंगल में आग - वनों को मानव-शून्य बनाने का परिणाम

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Author: 
प्रमोद भार्गव

.मनुष्य का जन्म प्रकृति में हुआ और उसका विकास भी प्रकृति के सानिध्य में हुआ। इसीलिये प्रकृति और मनुष्य के बीच हजारों साल से सह-अस्तित्व की भूमिका बनी चली आई। गोया, मनुष्य ने सभ्यता के विकासक्रम में मनुष्येतर प्राणियों और पेड़-पौधों के महत्त्व को समझा तो कई जीवों और पेड़ों को देव-तुल्य मानकर उनके संरक्षण के व्यापक उपाय किये। किन्तु जब हमने जीवन में पाश्चात्य शैली और विकास के लिये पूँजी व बाजारवादी अवधारणा का अनुसरण किया तो यूरोप की तर्ज पर अपने जंगलों में बिल्डरनेस की आवधारणा थोप दी।

बिल्डरनेस के मायने हैं, मानवविहीन सन्नाटा, निर्वात अथवा शून्यता! जंगल के आदिवासियों को विस्थापित करके जिस तरह वनों को मानवविहीन किया गया है, उसी का परिणाम उत्तराखण्ड, हिमाचल-प्रदेश और जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के जंगलों में की आग थी।

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पाबन्दी जरूरी है प्लास्टिक बोतलों पर

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.हाल ही में केन्द्र सरकार ने आदेश दिया है कि अब सरकारी आयोजनों में टेबल पर बोतलबन्द पानी की बोतलें नहीं सजाई जाएँगी, इसके स्थान पर साफ पानी को पारम्परिक तरीके से गिलास में परोसा जाएगा। सरकार का यह शानदार कदम असल में केवल प्लास्टिक बोतलों के बढ़ते कचरे पर नियंत्रण मात्र नहीं है, बल्कि साफ पीने का पानी को आम लोगों तक पहुँचाने की एक पहल भी है।

सनद रहे पिछले साल अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को नगर में सरकार व नागरिकों ने मिलकर तय किया कि अब उनके यहाँ किसी भी किस्म का बोतलबन्द पानी नहीं बिकेगा। एक तो जो पानी बाजार में बिक रहा था उसकी शुद्धता संदिग्ध थी, फिर बोतलबन्द पानी के चलते खाली बोतलों का अम्बार व कचरा आफत बनता जा रहा था।

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एक बहस-समवर्ती सूची में पानी

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.प्यास किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। अपने पानी के इन्तजाम के लिये हमें भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करनी है। हमें अपनी जरूरत के पानी का इन्तजाम खुद करना है। देवउठनी ग्यारस का अबूझ सावा आये, तो नए जोहड़, कुण्ड और बावड़ियाँ बनाने का मुहूर्त करना है। आखा तीज का अबूझ सावा आये, तो समस्त पुरानी जल संरचनाओं की गाद निकालनी है; पाल और मेड़बन्दियाँ दुरुस्त करनी हैं, ताकि बारिश आये, तो पानी का कोई कटोरा खाली न रहे।

जल नीति और नेताओं के वादे ने फिलहाल इस एहसास पर धूल चाहे जो डाल दी हो, किन्तु भारत के गाँव-समाज को अपना यह दायित्व हमेशा से स्पष्ट था। जब तक हमारे शहरों में पानी की पाइप लाइन नहीं पहुँची थी, तब तक यह दायित्वपूर्ति शहरी भारतीय समुदाय को भी स्पष्ट थी, किन्तु पानी के अधिकार को लेकर अस्पष्टता हमेशा बनी रही।

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गायब होती जीवनरेखा

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रीवा जिले की जीवन रेखा कही जाने वाली बिछिया नदी बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। आधी नदी के सूख जाने से लोगों ने उसे खेत बना डाला है जबकि बचे खुचे हिस्से पर जलकुम्भी ने कब्जा कर रखा है।

.विन्ध्य और कैमूर पहाड़ियों की गोद में बसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है बिछिया नदी। शहर को बीच से बिल्कुल किसी बिच्छू की तरह काटती। लेकिन देश की अधिकांश छोटी बड़ी नदियों की तरह बिछिया की हालत भी खराब है। निजी-सरकारी तमाम प्रयासों के बावजूद बिछिया नदी धीरे-धीरे एक निश्चित मौत की ओर बढ़ रही है।

देश के तमाम अन्य इलाकों की तरह रीवा में भी अप्रैल की शुरुआत में ही जलस्रोतों पर धारा 144 लगा दी गई। यानी किसी भी सार्वजनिक जलस्रोत पर चार से अधिक लोग एक साथ खड़े नहीं होंगे। जिला प्रशासन का कहना है कि सब कुछ सामान्य रहा तो यह आदेश 30 जून को हटा लिया जाएगा। सामान्य से उनका तात्पर्य यकीनन सामान्य बारिश से ही होगा।

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साधुओं ने गंगा जी के लिये क्या किया - स्वामी सानंद

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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 19वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है:

.मैं मानता हूँ कि मैं कड़ा हूँ। मतभेद रखने में कतराता नहीं हूँ। स्पष्टवादिता, मेरा स्वभाव है। इसके कारण कई नाराज हुए, तो लम्बे समय तक कई से प्यार भी मिला।

दिखावे के विरुद्ध


मैं दिखावे के समर्थन के भी विरुद्ध हूँ। जो ऐसे लोग मेरे सम्पर्क में आते हैं; उन्हें कड़ा कहता हूँ। मेरा उनसे विवाद हो जाता है। मैं कहता हूँ कि नहीं करना हो, तो मत करो; लेकिन दिखावा न करो। ‘मार्च ऑन द स्पॉट’ यानी एक जगह पैर पीटते रहना। यह भी मुझे पसन्द नहीं है।

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सूखती नदियों के बीच हलक तर करने की चिन्ता

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Author: 
अमरनाथ

.विशाला नदी के तट पर खड़ा हूँ। इसी नदी के तट पर वैशाली नगर बसा। वैशाली का वैभव जैसे-जैसे मिटता गया, विशाला सिकुड़ती गई और इसका नाम भी बाया हो गया। गंगा आज भी उत्तरवाहिनी होकर इसे अपने आगोश में समेटती है, पर बाया अर्थात विशाला में इस वर्ष कहीं-कहीं और छोटी-छोटी कुंडियों में ही पानी बचा है।

बिहार के तकरीबन हर जिले की छोटी-छोटी नदियाँ सूख गई हैं। इसका असर अपेक्षाकृत बड़ी नदियों पर भी पड़ा है। महानन्दा के बाद बागमती और कमला की धाराएँ जगह-जगह सूख गई हैं। प्राचीन साहित्य में सदानीरा कहलाने वाली गंडक में भी कई स्थलों पर इतना कम पानी बचा था कि लोग पैदल टहलते हुए पार कर जाते थे। बिहार की नदियों की इस दुर्दशा का असर गंगा पर भी दिख रहा है।

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इज्जत और मर्यादा की खातिर बनवाया शौचालय

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Author: 
शालू अग्रवाल

स्वच्छता मिशन से प्रेरित होकर उठाया कदम
घर में शौचालय बनवाकर गाँव की ब्रांड एम्बेसडर बन रहीं महिलाएँ


.एनसीआर में शामिल महाभारतकालीन शहर मेरठ में भले ही विकास की अन्धाधुन्ध दौड़ क्यों न चल रही हो। लेकिन तेज रफ्तार भरे इस शहर के कई गाँव ऐसे हैं जो आज भी जिन्दगी की बुनियादी सुविधाओं के अभाव में गुजारने को मजबूर हैं। गंगा यमुना तहजीब की गवाह दोआबा भूमि कहलाने वाले मेरठ में गंगाजल से फसलें लहलहाती थीं।

विकास की दौड़ ने हवाईअड्डे, शॉपिंग मॉल और बहुमंजिला इमारतें तो शहर में खड़ी कर दीं। लेकिन इनके अन्धेरे में खेत-खलिहान खोते चले गए। खेतों में गेहूँ, गन्ने की जगह खड़ी होने वाली इमारतों, मॉल्स, फ्लाईओवर और सड़कों ने महज खाद्यान्न का संकट ही खड़ा नहीं किया, बल्कि उन तमाम ग्रामीण औरतों से शौचालय का वो अधिकार भी छीन लिया जो सवेरे चार बजे उठकर दिशा-मैदान के लिये सीधे इन खेतों की शरण में जाती थीं।

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जल स्तर उठाने के लिये करोड़ों स्वाहा, फिर भी पानी पहुँचा पाताल

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.जल स्तर ऊपर उठाने के लिये छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में एक साल के भीतर करीब दो सौ करोड़ रुपए खर्च कर राजाडेरा और बेलोरा में बड़े जलाशय बनाए गए। इसी मकसद से कुछ गाँवों में एक दर्जन एनीकट भी बनाए गए। अफसरों ने दावा किया गया था कि इसके बाद यहाँ का जलस्तर ऊपर उठेगा, लेकिन इसके उलट जिले में जलस्तर 5 मीटर तक नीचे चला गया है।

पीएचई विभाग के अनुसार धमतरी जिले में पिछले चार महीने में जलस्तर में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। मगर लोड ब्लाक जहाँ सबसे ज्यादा जलाशय और एनीकट बने हुए हैं, वहाँ दिसम्बर माह में जलस्तर 19.40 मीटर था, जो अब 23.11 मीटर नीचे चला गया है। इसी तरह, धमतरी का जलस्तर 19 मीटर से 23.90 मीटर तक पहुँच गया है।

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कंक्रीट के जंगलों के लिये जलाशयों की बलि

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Author: 
उमेश कुमार राय

.कलकत्ता हाईकोर्ट ने 6 मई 2016 को एक अहम फैसला सुनाते हुए पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की हिन्दमोटर फैक्टरी के कम्पाउंड में स्थित लगभग 100 एकड़ क्षेत्रफल में फैले जलाशय को हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिये पाटने पर स्थगनादेश लगा दिया।

जस्टिस मंजुला चेल्लूर ने अपने आदेश में कहा, अदालत अगर कम्पनी को हाउसिंग प्रोजेक्ट का काम शुरू करने की अनुमति देती है तो जलाशय को भरने की अनुमति भी देनी होगी।अदालत फिलहाल इसको लेकर कोई आदेश नहीं दे सकती है। मामले की अगली सुनवाई जून में मुकर्रर की गई है।

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पानी का अर्थशास्त्र

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Author: 
प्रमोद भार्गव

संदर्भ - विश्व बैंक की ‘हाई एंड ड्राईः क्लाईमेट चेंज, वाटर एंड दी इकॉनोमी रिपोर्ट’

.विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि जल संकट के कारण देशों की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है और लोगों का विस्थापन बढ़ सकता है। यह स्थिति भारत समेत पूरे विश्व में संघर्ष की समस्याएँ खड़ी कर सकती हैं। इस दृष्टि से जलवायु परिवर्तन, जल व अर्थव्यस्था पर विश्व बैंक की हाई एंड ड्राईः क्लाईमेट चेंज, वाटर एंड दी इकॉनोमी रिपोर्ट आई है। इसके अनुसार बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती आय और शहरों के विस्तार से पानी की माँग में भारी बढ़ोत्तरी होगी जबकि आपूर्ति अनियमित और अनिश्चित होगी।

यह जल संकट भारत साहित कई देशों की आर्थिक वृद्धि में तो रोड़ा बनेगा ही, विश्व की स्थिरता के लिये भी बड़ा खतरा साबित होगा। साफ है, भविष्य में देश की अर्थव्यवस्था को पानी प्रभावित कर सकता है। इससे निपटने के लिये बेहतर जल प्रबन्धन की जरूरत तो है ही, पानी की फिजूलखर्ची पर अंकुश की भी जरूरत है।

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हरियाली को बेरंग करती बिजली

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बुन्देलखण्ड का गाँव ग्याजीतपुरा सूखे और मौसम से जीतने में कामयाब रहा लेकिन व्यवस्था के हाथों वह मजबूर है।

.मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की मोहनगढ़ तहसील की बहादुरपुरा पंचायत का गाँव ग्याजीतपुरा। पिछले काफी समय से जल संरक्षण के अपने निजी उपायों और पारम्परिक और नगदी फसलों के मिश्रण के जरिए लाभ की खेती के चलते खबरों में बना यह गाँव अब व्यवस्था की मार झेल रहा है। आप प्रकृति से जीत सकते हैं लेकिन सरकारी मशीनरी से आसानी से नहीं।

यह बात ग्याजीतपुरा के निवासियों से ज्यादा भला कौन समझेगा? सूखे को ठेंगा दिखाकर अपनी हरियाली से सूरज को मुँह चिढ़ा रहा यह गाँव बिजली विभाग के हाथों मजबूर हो गया है। महज तीन लाख रुपए के बकाये के चलते न केवल गाँव की बिजली काट दी गई है बल्कि यहाँ का ट्रांसफॉर्मर ही स्थायी रूप से हटा दिया गया है। नतीजा सिंचाई के लिये पानी की कमी और हरी-भरी फसलों के सूखने की शुरुआत।

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इस सूखे के लिये हम ही हैं जिम्मेदार

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.देश के विभिन्न हिस्से इन दिनों सूखे की चपेट में है। कई लोगों की जान भी जा चुकी है। हर साल यही होता है। कुछ दिन के लिये संसद, विधानसभाओं और मीडिया में हंगामा और बरसात के उतरते ही हम बाढ़ से जूझने में व्यस्त हो जाते हैं। सूखे की चुनौती देश के लिये नई नहीं है, लेकिन इतने वर्षों में हमने इससे कोई सबक नहीं लिया। इससे निपटने के लिये कोई नया रास्ता नहीं ढूँढा।

सूखे की समस्या प्रकृति व मौसम में आये बदलाव के साथ साथ मानवीय भूल का भी नतीजा है, इसलिये इसमें सुधार भी मानवीय प्रयासों से ही सम्भव है। आज देश में भूजल की स्थिति बेहद चिन्ताजनक है। इसके लिये प्राकृतिक जलस्रोतों की सम्भाल न करना और तकनीक के सहारे अत्यधिक दोहन जैसे कारण जिम्मेदार हैं।

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राष्ट्रीय फ्लोरोसिस रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम (NPPCF) के बारे में सूचना के लिए आवेदन (Right to Information Application for NPPCF)

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सेवा में, दिनांकः

 

जनसूचना अधिकारी

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उत्तराखण्ड के 3100 हेक्टेयर जंगल आग में स्वाहा

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.उत्तराखण्ड के जंगलों में लगी आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है। 1993 के बाद एक बार फिर जंगलों में लगी आग को बुझाने के लिये सेना का हेलीकाप्टर उतारा गया। जिला प्रशासन ने पहले चरण में उन जगहों को चिन्हीकरण किया है, जहाँ आग आबादी की ओर बढ़ रही है।

पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़ जिलों सहित हरिद्वार और ऋषिकेश के जंगलों में 15 दिनों तक लगातार आग धधकती रही। इस मौसम में अब तक आग की 213 घटनाएँ हो चुकी हैं। राज्य के गढ़वाल और कुमाऊँ कमिश्नरी में 3100 हेक्टेयर जंगल आग लगने से राख हो चुके हैं। यही नहीं राजाजी और कार्बेट पार्क का 145 हेक्टेयर हिस्सा आग ने अपने हवाले कर दिया।

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गाँव बरेवाँ - निर्मल ग्राम खिताब बचाने की जद्दोजहद

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.बीती 26 मई को मोदी शासनकाल ने अपने दो साल पूरे किये। दो साल पूरे करने से पहले स्वच्छता पखवाड़ा मनाया। गाँवों को ‘राष्ट्रीय निर्मल गाँव पुरस्कार’ बाँटने के बाद अब सरकार ने शहरों की स्वच्छता रैंकिंग करने की तैयारी कर ली है। ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ का एक चरण पूरा हो चुका है। दूसरे चरण की तैयारी चल रही है। रैंकिंग और पुरस्कार बाँटने के काम पर सरकार बड़ी रकम खर्च कर रही है।

स्वच्छ भारत मिशन के विज्ञापन व प्रचार पर पैसा बहा रही है। आयोजन कर शासन-प्रशासन अपनी पीठ खुद ठोक रहे हैं; जबकि सच्चाई यह है कि पुरस्कार बाँटने के बाद किसी ने पलटकर नहीं देखा कि जिन गाँवों को ‘राष्ट्रीय निर्मल गाँव पुरस्कार’ से नवाजा गया है, उनका सूरते-हाल अब क्या है। उप्र राज्य मिर्जापुर जिला इसका जीता-जागता प्रमाण है।

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पटना से आरम्भ होता जल-संकट

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Author: 
अमरनाथ

.बिहार के जल संकट की कहानी का आरम्भ राजधानी पटना से होता है। गंगा के दक्षिण और पुनपुन के उत्तर स्थित पटना शहर के नीचे सोन नदी की प्राचीन धारा है और इसके अधिकांश भूगर्भीय जलकुण्डों का सम्पर्क सोन नदी से है। लेकिन हर वर्ष गर्मी आते ही पानी की मारामारी आरम्भ होती है। पानी की कमी और गन्दे पानी की सप्लाई को लेकर अक्सर इस या उस मुहल्ले में हाहाकार मचता है। पानी की अवस्था, आपूर्ति की व्यवस्था और प्रशासनिक कुव्यवस्था का जायजा लेना दिलचस्प है।

आधुनिक किस्म की सरकारी जलापूर्ति व्यवस्था शहर के 60 प्रतिशत से अधिक हिस्से को नहीं समेट पाता। जिस सिस्टम से जलापूर्ति होती है, वह पाइपलाइन आजादी के पाँच साल बाद 1952 में बिछी थी। तब से आबादी बढ़ती गई और पाइपलाइनें बूढ़ी होती गईं। उसका दायरा बढ़ाना तो दूर, देखरेख करने में गहरी लापरवाही बरती गई। पम्पों की संख्या बढ़कर तीन गुनी हो गई और उन्हें इन्हीं पुरानी पाइपलाइनों से जोड़ दिया गया।

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मानसूनी भविष्यवाणियों की दुविधा

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Author: 
प्रमोद भार्गव

.मानसून की नई भविष्यवाणियों ने लोगों को दुविधा में डाल दिया है। भारतीय मौसम विभाग ने ताजा जानकारी देते हुए कहा है कि मानसून 1 जून को आने की बजाय 7 जून को केरल में दस्तक देगा। इसके विपरीत मौसम की भविष्यवाणी करने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट का दावा है कि मानसून 29 या 30 मई को केरल पहुँच जाएगा।

हालांकि पिछले एक दशक में मौसम विभाग के अनुमान सटीक बैठे हैं। पिछले वर्ष जरूर 30 मई को मानसून आने की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन वह आया 5 जून को। अब जो सरकारी और निजी स्तर पर भविष्यवाणियाँ की गई हैं, उनमें 7 से 10 दिन का अन्तर है।

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फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में उत्तराखण्ड (Uttarakhand Cloud Burst)

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.टिहरी जनपद की भिंलगनाघाटी हमेशा से ही प्राकृतिक आपदाओं की शिकार हुई है। साल 1803 व 1991 का भूकम्प हो या 2003, 2010, 2011 या 2013 की आपदा हो, इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण भिंलगनाघाटी के लोग आपदा के निवाला बने हैं।

ज्ञात हो कि 28 मई 2016 को भिलंगना के सिल्यारा, कोठियाड़ा गाँव चन्द मिनटों में मलबे में तब्दील हो गया। तहसील घनसाली में घनसाली बाजार, चमियाला बाजार, सीताकोट, गिरगाँव, कोटियाड़ा, सिल्यारा, अरधांगी एवं कोट में लगभग 100 परिवारों के प्रभावित होने के साथ ही 110 मकानों, 34 पशुओं तथा एक व्यक्ति के बहने की सूचना है। ग्राम सीता कोट में चार बैल व पाँच भवनों की क्षति, ग्राम-कोटियाड़ा में 100 भवनों व 30 पशुओं की क्षति, ग्राम-गिरगाँव में एक भवन, ग्राम-सिल्यारा में तीन भवनों एवं ग्राम श्रीकोट में एक भवन की क्षति की सूचना है।

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