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पाटुड़ी के ग्रामीणों ने जोड़े पानी के बूँद-बूँद

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Author: 
राकेश बहुगुणा

पटुड़ी गाँव का जलस्रोतपटुड़ी गाँव का जलस्रोतउत्तराखण्ड की दुर्गम पहाड़ियों के बीच बसा एक बहुत ही छोटा गाँव पाटुड़ी की कहानी भी कुछ ऐसी है। जल संकट और इससे उबरने की इस गाँव की कहानी बेहद दिलचस्प और प्रेरणा देने वाली है।

इस गाँव के लोगों ने 1998-1999 में ही जल संकट का इतना खतरनाक खौफ देखा जो किसी आपदा से कमतर नहीं थी, खैर लोगों ने संयम बाँधा डटकर जल संकट से बाहर आने की भरसक कोशिश की। इसी के बदौलत इस संकट से ऊबरे और आज यह गाँव खुशहाल है। गाँव के लोगों ने मिलकर एक संगठन का निर्माण किया, टैंक बनवाये, खुद ही फंड इकट्ठा किया और बिना सरकारी मदद के असम्भव को सम्भव बना दिया।

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क्या 20 साल में खत्म हो जाएगी भोपाल की बड़ी झील

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भोपाल लेकभोपाल लेकयह सुनकर हर कोई स्तब्ध है कि अपनी बेमिसाल खूबसूरती और भीमकाय आकार जैसी खासियतों वाला एशिया के बड़े जलस्रोतों में पहचाना जाने वाला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर के बीचोंबीच स्थित बड़ी झील 20 साल बाद शायद ही बच सके। यह कोई कल्पना नहीं है, बल्कि जल संसाधनों का गहराई से अध्ययन करने वाले एक बड़े वैज्ञानिक ने इसका दावा किया है।

करीब एक हजार साल पहले बनाए गए दुनिया भर में अपनी अप्रतिम पहचान रखने वाला 31 किमी क्षेत्रफल में फैले इस बड़े ताल के आसपास पूरा भोपाल शहर बसा है। शहर के बीचोंबीच जब इसका नीला पानी ठाठे मारता है तो पूरे शहर के बाशिन्दे अपना तनाव भूलकर इसकी ऊँची-ऊँची लहरों को उठते-गिरते टकटकी लगाए देखने लगते हैं।

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वक्रेश्वर के स्प्रिंग्स से मिला था हिलियम का पता

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Author: 
उमेश कुमार राय

वक्रेश्वर का एक स्प्रिंगवक्रेश्वर का एक स्प्रिंगपश्चिम बंगाल के लाल माटी वाले जिले बीरभूम में स्थित वक्रेश्वर केवल धार्मिक कारणों से ही मशहूर नहीं है, बल्कि यहाँ के गर्म स्प्रिंग्स भी इसे खास पहचान देते हैं।

वक्रेश्वर में 10 स्प्रिंग्स स्थित हैं जहाँ से आठों पहर गर्म पानी की धाराएँ निकलती रहती हैं। कुछेक धाराओं से निकलने वाली पानी का तापमान तो 70 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक है।।

कोलकाता से लगभग 220 किलोमीटर दूर स्थित वक्रेश्वर के इन्हीं गर्म स्प्रिंग्स से पहली बार पता चला था कि भूगर्भ में हिलियम मौजूद है।

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सर-बडियाड़ के सात जल धारे

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सर बडियाड़ गाँव में बहता धारासर बडियाड़ गाँव में बहता धारायूँ तो उत्तराखण्ड में जब भी पानी की बात आती है तो उसके साथ देवी-देवता या नाग देवता की कहानी का होना आवश्यक होता है। ऐसा कोई धारा, नौला, बावड़ी या ताल-तलैया नहीं है जिसके साथ उत्तराखण्ड में किसी देवता का प्रसंग न जुड़ा हो। यही वजह है कि जहाँ-जहाँ पर लोग देवताओं के नाम से जल की महत्ता को समझ रहे हैं वहाँ-वहाँ पानी का संरक्षण हो रहा है।

यहाँ हम बात कर रहे हैं उत्तरकाशी की यमुनाघाटी स्थित ‘सरबडियाड़’ गाँव की जहाँ आज भी पत्थरों से नक्कासी किये हुए गोमुखनुमा प्राकृतिक जलस्रोत का नजारा देखते ही बनता है। यहाँ के लोग कितने समृद्धशाली होंगे, जहाँ बरबस ही सात धारों का पानी बहता ही रहता है। स्थानीय लोग बोल-चाल में इन धारों को ‘सतनवा’ भी कहते हैं। यानि सात नौले।

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सिंधु जल समझौते की पृष्ठभूमि

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Author: 
अमरनाथ

सिंधु नदी बेसिनसिंधु नदी बेसिन‘सिंधु के मैदानों ने मनुष्य को वो परिस्थितियाँ सौंपी जिससे मनुष्य दुनिया का सबसे विशाल संलग्न सिंचाई नेटवर्क बना सका। कुदरत ने पृथ्वी पर कहीं भी पानी की ऐसी भारी-भरकम मात्रा नहीं दी है जिसे बगैर जलाशय में इकट्ठा किये केवल गुरुत्वाकर्षण के जरिए उपयोग में लाया जा सके।’ -एलॉयस आर्थर मिशेल ने अपनी पुस्तक ‘द इंडस रिवर्स: ए स्टडी ऑफ इफेक्ट ऑफ पार्टिशन में यही लिखा है। इस पुस्तक से उन परिस्थितियों की जानकारी मिलती है जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु और सिंधु घाटी की नदियों के जल के बँटवारे के लिये समझौता की जरूरत पड़ी।

दरअसल, भारत-विभाजन के वक्त जब सिंधु घाटी की नदियों पर बने अनेक सैलाबी नहरों में जलप्रवाह बन्द हो गया और नदी, नहर तथा सिंचित क्षेत्र अलग-अलग देशों में चले गए तब विश्व बैंक की मध्यस्थता में यह समझौता हो सका। 1948 से 1960 के बीच कई दौर में वार्ताएँ हुईं, दस्तावेजों और सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ।

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सिंधु जल समझौता - विवाद और विकल्प

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सिंधु नदी घाटीसिंधु नदी घाटीभारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर बढ़े तनाव के बीच दोनों देशों में करीब 60 साल पहले हुआ जल समझौता फिर से विवादों का कारण बन गया है। केन्द्र सरकार ने सिंधु जल समझौते के विकल्पों पर काम करना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विवाद के बीच कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते। इसके बाद से ही यह बहस तेज हो गई कि इसकी समीक्षा जरूरी है। हालांकि इसके सन्दर्भ में हुई बैठक में किसी बदलाव की जरूरत नहीं बताई गई।

कुछ नई बिजली परियोजनाएँ शुरू करने पर जोर दिया गया। तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू करके पाकिस्तान को ज्यादा पानी लेने से रोका जा सकता है। पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा सिंधु नदी के पानी पर आश्रित है। पाकिस्तान के बीच हुआ सिंधु जल समझौता विशेष ऐतिहासिक परिस्थिति की देन है, जिसमें विश्व बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

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पानी के शहर में प्यासे लोग

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पाताल देवी धारापाताल देवी धाराउत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल में नौलों की एक संस्कृति रही है। इस बार अल्मोड़ा यात्रा के दौरान उस संस्कृति से साक्षात्कार का अवसर मिला। मैंने वहाँ पाया कि कत्युरी राजाओं ने इस सन्दर्भ में बहुत काम किया है।

हिमालय क्षेत्र में जितने भी पुराने नौले हैं, वहाँ कत्युरी राजाओं की छाया देखी जा सकती है। नौलों में हमारी संस्कृति भी दिखती है, जितने नौले हैं, वहाँ यक्ष देवता की मूर्ति हर नौले में रखी हुई दिख जाएगी। पुराने समय के लोग यह बताते हैं कि इस क्षेत्र में यक्ष देवता को प्रणाम करने के बाद ही पानी लेने का विधान रहा है।

नौलों में जूता पहनकर जाने की सख्त मनाही थी, इसलिये पानी लेने आने वाला शख्स जूतों को खोलकर, जल में रखे गए देवता की मूर्ति को प्रणाम करके ही पानी लेेता था।

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खेती में बदलाव से सुलझेगा कावेरी विवाद

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Author: 
अमृता गुप्ता
Source: 
हिन्दुस्तान टाइम्स, 22 अक्टूबर 2016

कावेरी नदी जल बँटवारे पर विवादकावेरी नदी जल बँटवारे पर विवादपिछले दिनों कावेरी जल विवाद को लेकर हुई हिंसक झड़प से पता चलता है कि पानी कितना जरूरी है। यह झड़प इस ओर भी इशारा करता है कि आने वाले दिनों में पानी को लेकर किस हद तक संघर्ष हो सकता है।

कावेरी मुद्दे को ध्यान में रखते हुए अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि पानी की किल्लत की समस्या को गम्भीरता से लिया जाये और इसका माकूल हल तलाशा जाये ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

कावेरी जल विवाद के पीछे मोटे तौर पर इस नदी के पानी पर तमिलनाडु और कर्नाटक का मालिकाना हक वजह है।

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जल संरक्षण का लोकपर्व

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Author: 
प्रेम प्रकाश
Source: 
दैनिक जागरण, 05 नवम्बर, 2016

छठ पूजाछठ पूजाभारतीय संस्कृति में परम्परा की पैरोकारी रामचन्द्र शुक्ल से लेकर वासुदेवशरण अग्रवाल तक तमाम साहित्य-संस्कृति मर्मज्ञों ने की है। समाज और परम्परा के साझे को समझे बिना भारतीय चित्त तथा मानस को समझना मुश्किल है। आज जब पानी की स्वच्छता के साथ उसके संरक्षण का सवाल इतना बड़ा हो गया है कि इसे अगले विश्वयुद्ध तक की वजह बताया जा रहा है, तो यह देखना काफी दिलचस्प है कि भारतीय परम्परा में इसके समाधान के कई तत्व हैं।

जल संरक्षण को लेकर छठ पर्व एक ऐसे ही सांस्कृतिक समाधान का नाम है। अच्छी बात है भारतीय डायस्पोरा के अखिल विस्तार के साथ यह पर्व देश-दुनिया के तमाम हिस्सों को भारतीय जल चिन्तन के सांस्कृतिक पक्ष से अवगत करा रहा है।

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जंगलों के अभाव में कैसे जिएँगे हम

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उपेक्षित होते जंगलउपेक्षित होते जंगलआज समूची दुनिया में जंगल जिस तेजी से खत्म हो रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि वह दिन अब दूर नहीं जब जंगलों के न रहने की स्थिति में धरती पर पाई जाने वाली वह बहुमूल्य जैव सम्पदा बहुत बड़ी तादाद में नष्ट हो जाएगी जिसकी भरपाई फिर कभी नहीं हो पाएगी।

करंट बायोलॉजी नामक एक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक ताजे अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि दुनिया में यदि जंगलों के खात्मे की यही गति जारी रही तो 2100 तक समूची दुनिया से जंगलों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा। आज भले हम यह दावा करें कि अभी भी दुनिया में कुल मिलाकर 301 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल बचा है जो पूरी दुनिया की धरती का 23 फीसदी हिस्सा है।

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बारिश के अभाव में बाढ़ का नजारा

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Author: 
अमरनाथ

बिहार में बाढ़ से बेघर लोगबिहार में बाढ़ से बेघर लोगइस बार बिहार की बाढ़ अजीब थी। राज्य के हर हिस्से में बाढ़ आई, लेकिन राज्य के किसी हिस्से में सामान्य से अधिक वर्षा नहीं हुई थी। बाढ़ पूरी तरह पड़ोसी राज्यों में हुई वर्षा की वजह से आई थी। बिहार पूरे राज्य में सामान्य से कम वर्षा हुई।

कुछ जिलों में यह कमी पचास प्रतिशत से अधिक रही। लेकिन नेपाल, झारखण्ड और मध्य प्रदेश में हुई वर्षा की वजह से यहाँ चार चरणों में बाढ़ आई। कई जगह तो बारिश की कमी की वजह से खेत परती पड़े थे, खेती नहीं हुई थी। कुछ सम्पन्न किसानों ने नलकूपों के सहारे खेती की थी कि बाढ़ आ गई और फसल डूब गई। यह सामान्य बाढ़ नहीं थी।

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आसान नहीं एसवाईएल नहर विवाद का हल

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सतलुज-यमुना लिंक नहरसतलुज-यमुना लिंक नहरबीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार द्वारा बनाए गए सतलुज यमुना लिंक नहर समझौते को निरस्त करने वाले कानून को असंवैधानिक करार दे दिया। इससे सुप्रीम कोर्ट का सन 2002 और 2004 का आदेश प्रभावी हो गया है जिसमें कहा गया था कि केन्द्र सरकार नहर का कब्जा लेकर लिंक नहर का बकाया निर्माण पूरा कराए।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दवे की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय पीठ ने यह फैसला देश के राष्ट्रपति के सन्दर्भ पर दिया है। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि पंजाब एसवाईएल के जल बँटवारे के बारे में हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली समेत अन्य राज्यों के साथ हुए समझौते को एकतरफा रद्द करने का फैसला नहीं कर सकता है।

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सतलुज-यमुना जल विवाद

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सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजनासतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजनापंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना के जल-बँटवारे को लेकर विवाद पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से गहराया हुआ है। पंजाब सरकार का कहना है कि राज्य में जल का स्तर बहुत कम है। गोया हम सतलुज-यमुना नहर के जरिए हरियाणा को पानी देते हैं तो पंजाब में पानी का संकट पैदा हो जाएगा। वहीं हरियाणा सरकार सतलुज के पानी पर अपना अधिकार जता रही है।

ताजा विवाद सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर गहराया है। न्यायालय ने पंजाब सरकार को बड़ा झटका देते हुए, सतलुज का पानी हरियाणा को देने का आदेश दे दिया है। इसके चलते पंजाब में राजनीति गरमा गई और पंजाब के सभी 42 विधायकों ने इस मुद्दे पर अपने इस्तीफे विधानसभा सचिव को सौंप दिये। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता चरणजीत सिंह चन्नी भी शामिल हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस सांसद और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

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नदी जोड़ परियोजना को प्राथमिकता

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Author: 
अमरनाथ

.नमामि गंगे परियोजना की प्रगति से उमा भारती चाहे जितनी आशावादी हों, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मन्त्रालय ने नदियों को आपस में जोड़ने के काम को प्राथमिकता दी है। एक राष्ट्रीय परिदृश्य योजना तैयार की गई है। इसके अन्तर्गत जल-आधिक्य वाले इलाके से जल-न्यूनता वाले इलाके में जल स्थान्तरित करने पर जोर दिया जाएगा। मन्त्रालय ने चार जून को एक विज्ञप्ति जारी कर अपनी उपलब्धियों का विवरण दिया है।

विज्ञप्ति के अनुसार, केन-बेतवा परियोजना का तेजी से कार्यान्वयन होगा। दमन गंगा-पिंजल की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई है। पार-तापी-नर्मदा लिंक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को अन्तिम रूप दिया जा रहा है। महानदी-गोदावरी बाढ़ नियन्त्रण परियोजना शुरू की गई है। बिहार की दो परियोजनाएँ- बूढ़ी गण्डक नून बाया लिंक और कोसी मेची लिंक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पूरी की गई है।

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नदियों को उनका अधिकार वापस देना होगा-राजेन्द्र सिंह

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Author: 
अमरनाथ

नदी संवाद यात्रा -2


.कमला के तट पर बड़ा शहर है। झंझारपुर यह मिथिलांचल की राजनीति का केन्द्र भी है। यहाँ जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने ‘नदियों के अधिकार’का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि नदियों की विनाशलीला से बचने और नदियों को सूखने से बचाने के लिये उनका अधिकार वापस लौटाना होगा।

नदी क्षेत्र का विस्तार उसकी मूल धारा से लेकर वहाँ तक होता है, जहाँ तक उसका पानी जाता है। इस अति बाढ़ प्रवण और बाढ़ प्रवण क्षेत्र में कायदे से कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए और अगर अनिवार्य हो तो ध्यान रखना चाहिए कि नदी के स्वाभाविक प्रवाह में अड़चन न आए। परन्तु लोगों ने उन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। इसे रोकना और हटाना होगा।

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उत्तर प्रदेश में आर्सेनिक का कहर

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उत्तर प्रदेश के गाँवों में जहर बाँटता हैण्डपम्पउत्तर प्रदेश के गाँवों में जहर बाँटता हैण्डपम्पपानी में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने की बात अब केवल पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों तक सीमित नहीं है। पूरे देश में आर्सेनिक का फैलाव न केवल बढ़ता जा रहा है बल्कि इसका दुष्प्रभाव भी देखने को आ रहा है। देश में बढ़ते आर्सेनिक ने जहाँ मानव स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है वहीं पर अभी भी शासन इसके रोकथाम पर उतना संजीदा नहीं है जितना जरूरी है।

देश के अधिकांश राज्यों के भूजल में आर्सेनिक घुला है। जिससे देश में ग्राउंड वाटर पर निर्भर करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा मँडरा रहा है, क्योंकि कई जगहों पर पानी में आर्सेनिक की मात्रा काफी ज्यादा है। संसदीय समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि 12 राज्यों के 96 जिलों के ग्राउंड वाटर में आर्सेनिक की मात्रा काफी ज्यादा है।

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गैस रिसी हवा में पर जमीनी पानी अब भी जहरीला

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भोपाल गैस त्रासदी के 32 वर्ष पूरे होने पर विशेष


यूनियन कार्बाइड का कचरा नौनिहालों को अपने कब्जे में ले रहा हैयूनियन कार्बाइड का कचरा नौनिहालों को अपने कब्जे में ले रहा है32 साल का वक्त कोई छोटा नहीं होता, लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के लिये इन 32 सालों में कुछ नहीं बदला। हजारों लोगों की मौतें, कई लोगों को बाकी बची पूरी जिन्दगी अपाहिज और अन्धा बना देने और उसकी अगली पीढ़ी को भी उस जहरीली गैस की भेंट चढ़ जाने की भयावह त्रासदी के बाद भी हमने उससे अब तक कोई सबक नहीं लिया है। यहाँ की 22 बस्तियों के करीब दस हजार से ज्यादा लोग अब भी साफ पानी तक को मोहताज है।

02-03 दिसम्बर 1984 की काली रात यहाँ मौत का तांडव हुआ था। इस खूबसूरत शहर के बीचोंबीच कीटनाशक बनाने वाले मल्टीनेशनल कारखाने यूनियन कार्बाइड से निकली जानलेवा मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस के रिसाव होने से 3000 से ज्यादा लोगों की जाने गईं थीं।

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मैले पानी का सुनहरा सच

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सोपान जोशी
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जल थल मल किताब से साभार

मछली पालन के लिये प्रसिद्ध कोलकाता झील स्थानीय स्तर पर भेरी के नाम से जाना जाता हैमछली पालन के लिये प्रसिद्ध कोलकाता झील स्थानीय स्तर पर भेरी के नाम से जाना जाता हैकोलकाता भी दूसरे बड़े शहरों की तरह एक बड़ी नदी के किनारे बसा है। गंगा से निकली एक धारा ही है हुगली नदी। लेकिन दूसरे कई नगरों की तरह कोलकाता में नदी का बहाव एकतरफा नहीं है। हुगली ज्वारी नदी है और बंगाल की खाड़ी से उसका मुहाना 140 किलोमीटर की दूरी पर ही है। हर रोज ज्वार के समय समुद्र नदी के पानी को वापस कोलकाता तक ठेलता है। ज्वार और भाटे के बीच जल स्तर एक ही दिन में कई फुट ऊपर-नीचे हो जाता है।

शहर के पश्चिम में बहने वाली हुगली नदी में कोलकाता अपना मैला पानी बहाकर उसे भुला नहीं सकता। नीचे बह जाने की बजाय क्या पता ज्वार के पानी के साथ मल-मूत्र वापस शहर लौट आये?

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आइये! नदियों को मर जाने दें - अनुपम मिश्र

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“नदियों को मर जाने दीजिए। एक दिन यह नदी नहीं, हमारे ही पुनर्जीवन का प्रश्न बन जायेगा।’’ – अनुपममिश्र

अनुपम मिश्रअनुपम मिश्रनदी पुनर्जीवन! इस विषय पर आयोजित एक व्याख्यान मौके पर बोलते हुए नामी पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र ने यह कठोर सच श्रोताओं के समक्ष उजागर किया।

यह आयोजन केन्द्र निदेशक लक्ष्मीशंकर बाजपेयी की पहल पर आकाशवाणी के नई दिल्ली केन्द्र द्वारा आयोजित किया गया। स्थान था-गुलमोहर हॉल, इंडिया हैबीटेट सेंटर, लोदी रोड, नई दिल्ली। तारीख - 15 मई, 2012. अच्छा लगा कि आकाशवाणी ने स्टुडियो में ही रहकर अपने तीन मूल उद्देश्यों में से एक “शिक्षित करना’’ की पूर्ति करने के लिए लीक तोड़कर खुली हवा में आना शुरू कर दिया है।

इस मौके पर अन्य दो प्रमुख वक्ता थे: मैगसेसे सम्मानित जलपुरुष राजेन्द्र सिंह और सैंड्रप के निदेशक व पानी के तकनीकी विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर।

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शब्दों की चौकीदारी संभव नहीं-अनुपम मिश्र

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Author: 
संजय तिवारी
Source: 
विस्फोट डॉट कॉम
अनुपम मिश्रअनुपम मिश्रअनुपम मिश्र पानी और पर्यावरण पर काम करने के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब के साथ उन्होंने एक ऐसा प्रयोग किया जिसका दूरगामी दृष्टि दिखती है। उन्होंने अपनी किताब पर किसी तरह का कापीराईट नहीं रखा। इस किताब की अब तक एक लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। मीडिया वर्तमान स्वरूप और कापीराईट के सवाल पर हमने विस्तृत बात की। यहां प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-

कापीराईट को लेकर आपका नजरिया यह क्यों है कि हमें अपने ही लिखे पर अपना दावा (कापीराईट) नहीं करना चाहिए?
कापीराईट क्या है इसके बारे में मैं बहुत जानता नहीं हूं। लेकिन मेरे मन में जो सवाल आये और उन सवालों के जवाब में मैंने जो जवाब तलाशे उसमें मैंने पाया कि आपका लिखा सिर्फ आपका नहीं है।
इस खबर के स्रोत का लिंक: 
http://visfot.com

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